सम्पादकीय

दुखद हिंसा

Rani Sahu
19 Oct 2021 4:45 PM GMT
दुखद हिंसा
x
कश्मीर में आतंकी हमलों का नया दौर दुखद ही नहीं, शर्मनाक भी है। बाहरी लोगों और विशेष रूप से बिहारवासियों को जिस तरह से निशाना बनाया गया है

कश्मीर में आतंकी हमलों का नया दौर दुखद ही नहीं, शर्मनाक भी है। बाहरी लोगों और विशेष रूप से बिहारवासियों को जिस तरह से निशाना बनाया गया है, उससे चिंता का दायरा बहुत बढ़ जाता है। मजदूरों और छोटे-मोटे धंधे करने वाले लोगों को मारने से किसका गौरव बढ़ रहा है? गरीबों की हत्या को आखिर किस आधार पर जायज ठहराया जा सकता है? कौन सा मजहब या कौन से राज्य की संस्कृति ऐसी हत्याओं का पक्ष ले सकती है? एक संदिग्ध संगठन ने प्रवासी मजदूरों पर हुए ताजा हमलों की जिम्मेदारी ली है और जो बहाना बनाया गया है, वह निंदनीय व हास्यास्पद है। इंसानियत पर धब्बा साबित हुए आतंकी चाहते हैं कि प्रवासी कश्मीर छोड़ जाएं, मानो कश्मीर उनकी व्यक्तिगत जायदाद हो? यह भी कहा गया है कि चूंकि बिहार में मुस्लिमों की हत्या हुई है, उसी का बदला लिया जा रहा है। बिहार या इतने बड़े देश में कहीं भी मुस्लिमों को निशाना बनाने जैसी कोई घटना नहीं है, इक्का-दुक्का हिंसक घटनाएं जो सामान्य रूप से होती आई हैं, उनमें पुलिस यथोचित कार्रवाई कर रही है। यह नहीं कहा जा सकता कि कश्मीर से बाहर देश में कहीं भी धार्मिक आधार पर विद्वेष की हवा चल रही हो। फिर भी अगर मजहब ही हत्या का आधार है, तो फिर सहारनपुर के सगीर अहमद को क्यों मारा गया? अपनी कुत्सित सुविधा के अनुसार, कभी बाहरी लोगों को, तो कभी गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाना हर लिहाज से नाकाबिले बर्दाश्त है

इन वारदात को अंजाम देकर आखिर कहां मुंह छिपाएंगे आतंकी? उन्हें ठिकाने लगाए बिना भारत में न्यायप्रियता स्थापित नहीं हो सकती। उनके कुतर्कों का जवाब सजा से ही देना चाहिए। कश्मीर में इस महीने मारे गए सभी 11 नागरिकों को न्याय मिलना चाहिए। अब सदी बदल चुकी है, आतंकवाद को भारत में कतई कामयाबी नहीं मिलने वाली। जो लोग हिम्मत करके कश्मीर पहुंचे हैं, जो लोग वहां अर्थव्यवस्था को बल प्रदान कर रहे हैं, उनके साथ नाइंसाफी दरअसल कश्मीर के साथ नाइंसाफी है। कश्मीर के लोगों को स्वयं ऐसी हिंसा का विरोध करना चाहिए। मानवीय और तार्किक आधार पर सोचना चाहिए। कश्मीर के दुश्मन हैं वे लोग, जो बाहरी या मजहबी आधार पर हिंसा कर रहे हैं। उनका चेहरा आज से तीस साल पहले छिप गया था, लेकिन अब नहीं छिपना चाहिए। भारत में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी हिंसा या सांप्रदायिकता के खिलाफ सावधान रहे। जो लोग कश्मीर में अमन चाहते हैं, उनके लिए यह परीक्षा की घड़ी है। यह अच्छी बात है कि बिहार सरकार अब कश्मीर में मारे जा रहे बिहारवासियों के परिजनों के साथ खड़ी हो गई है। हर राज्य को अपने नागरिकों की सुरक्षा और सम्मान के प्रति सचेत रहना ही चाहिए। अगर बिहारवासी को कहीं सताया जा रहा है, तो इसकी चिंता बिहार के लोगों के साथ-साथ सरकार को भी होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के लोगों का इस देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है, इनके हित में देश में नई सजगता आनी चाहिए। कश्मीर में जो मजदूर मारे गए, उन्हें बिहार सरकार ही अकेले मुआवजा क्यों दे, क्या केंद्र सरकार को भी आगे नहीं आना चाहिए? कश्मीर में पूरी राजनीतिक बिरादरी को एकजुट होकर आगे आना होगा, ताकि हिंसा के नए दौर को समय रहते समाप्त किया जा सके और कश्मीरियत के दामन पर और दाग न लगे।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तन
Next Story