सम्पादकीय

त्रासद लापरवाही

Subhi
2 Nov 2022 6:23 AM GMT
त्रासद लापरवाही
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‘ रविवार शाम जिस केबल पुल के टूटने से करीब डेढ़ सौ लोगों की मौत हुई, वह एक सौ चालीस साल पुराना है। हाल में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए खोला गया था।

Written by जनसत्ता: ' रविवार शाम जिस केबल पुल के टूटने से करीब डेढ़ सौ लोगों की मौत हुई, वह एक सौ चालीस साल पुराना है। हाल में मरम्मत और नवीनीकरण के बाद इसे जनता के लिए खोला गया था। हादसे के दिन पुल पर क्षमता से अधिक लोग पहुंच गए थे। अचानक पुल टूटा और करीब पांच सौ लोग लोग माच्छू नदी में गिर गए। मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी हैं।

एक प्राइवेट कंपनी ने लगभग छह महीने तक मरम्मत का काम किया था और 26 अक्तूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर इसे जनता के लिए फिर से खोला गया था। मगर इसका फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त किया गया था। रखरखाव के लिए लंबे समय तक यह पुल बंद रखा गया था और इसके बाद ही शुरू किया गया था।

घटना के बाद कहा जा रहा है कि क्षमता से अधिक लोग पुल पर पहुंच गए थे। सवाल है कि इस दिन लोग बड़ी संख्या में नदी के पुल के ऊपर पहुंचेंगे, इसकी पूरी संभावना थी, तो फिर शासन-प्रशासन ने पुल पर जाने वाले लोगों की संख्या सीमित क्यों नहीं रखी? प्रशासन की लापरवाही के कारण इतना बड़ा हृदय विदारक हादसा हो गया। इस पुल की मरम्मत में भारी भ्रष्टाचार की आशंका है। इसकी गहन जांच पड़ताल करके दोषी लोगों को सख्त सजा दी जानी चाहिए और देश भर में बने हुए इस प्रकार के पुलों की पूरी तरह दुरुस्त होने की सख्त जांच की जरूरत है, ताकि अन्य कहीं फिर से ऐसा हादसा न हो।

भारत में बीते वर्षों में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ी है। इस समय देश में लगभग सात सौ अट्ठाईस वृद्धाश्रम संचालित हैं। दुनिया में भारत दूसरा ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा आबादी साठ साल से अधिक उम्र के लोगों की है। यानी वरिष्ठ नागरिकों की। देश में पिछले कुछ वर्षों से वरिष्ठ नागरिकों पर होने वाले अपराधों में भी बढ़ोतरी हुई है। 2022 में जारी हुए राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं।

देश में तेजी से बढ़ते वृद्धाश्रमों ने हमारे समाज में एक तरह की अस्थिरता को जन्म दिया है। भारत की संस्कृति की एक पहचान इसके उत्कृष्ट संस्कार भी हैं। माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण एवं बेहतर भविष्य के लिए संतुलन बैठाते हुए जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाते हैं। उन्हें यह उम्मीद होती है कि इस अथक परिश्रम की रात के बाद एक नया सवेरा होगा और उनके जीवन की कठिनाइयां आसान हो जाएंगी। मगर सबके जीवन में नया सवेरा नहीं होता। अपनी ही संतान से दुत्कार दिए गए अनेक बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हो जाते हैं।

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा शहरों में रहता है और उससे कम ग्रामीण इलाकों में। वैश्विक जनसंख्या पर काम करने वाली संस्था पापुलेशन रिफरेन्स ब्यूरो के मुताबिक, भारत दुनिया के उन पांच देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा बुजुर्ग निवास करते हैं। दुनिया के जिन पांच देशों में सबसे ज्यादा बुजुर्गों की आबादी है, उनमें क्रमश: भारत, चीन, अमेरिका, जापान और रूस हैं। बीते वर्षों में भारत और अमेरिका में वृद्धाश्रमों का तेजी से विस्तार हुआ है।

हमारा देश अब अपने बुजुर्गों के सम्मान की दृष्टि से पिछड़ता जा रहा है। यह सिलसिला डेढ़ दशक से ज्यादा पुराना नहीं है। दुनिया में दिन प्रतिदिन बदलती विकास की परिभाषा ने हमारे संस्कारों और माता-पिता के प्रति कर्तव्यों की परिभाषा भी बदल दी है। इसी वर्ष भारतीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने देश के प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम होने पर जोर दिया है। सवाल है कि जो भी योजनाएं या नीतियां चल रही हैं, उससे भारत में बुजुर्गों की जिंदगी में क्या सुधार आएगा?


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