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रविवार को उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले के नेपाल सीमा से लगे तिकुनिया गांव में हुई हिंसा और आगजनी में आठ लोगों की मौत होना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, जिसमें कुछ किसान, कुछ भाजपा कार्यकर्ता, एक पत्रकार व एक ड्राइवर की मौत हो गई थी। निस्संदेह, इस दुर्भाग्यपूर्ण हिंसा में किसान आंदोलन से इतर स्थानीय राजनीतिक कारक भी थे, जो हाल ही में गृह राज्यमंत्री बने क्षेत्रीय सांसद अजय मिश्रा के बयानों से उपजे आक्रोश के रूप में सामने आये थे। दरअसल, तीन अक्तूबर को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य लखीमपुर खीरी के दौरे पर थे और उन्होंने तय कार्यक्रम के अनुसार वंदन गार्डन में कुछ सरकारी योजनाओं का शिलान्यास करना था। वे पहले हेलीकॉप्टर से आने वाले थे, लेकिन किसानों द्वारा हेलीपेड के घेराव के कार्यक्रम के चलते प्रोटोकॉल बदला गया और वे सड़क मार्ग से लखीमपुर पहुंचे। उस दिन किसानों ने उपमुख्यमंत्री व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के विरोध व काफिले के घेराव की कॉल दी थी। दोपहर में मौर्य शिलान्यास कार्यक्रम खत्म करके अजय मिश्रा के गांव बनवीरपुर के लिये रवाना हुए, जो तिकुनिया से महज चार किलोमीटर दूरी पर है। वे दो अक्तूबर को हुए दंगल विजेताओं के पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि थे। इसी दौरान यह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ। किसानों का आरोप था कि केंद्रीय मंत्री के पुत्र का वाहन किसानों पर चढ़ाने से हादसा हुआ, वहीं मंत्री का कहना है कि किसानों के हमले से चालक संतुलन खो बैठे। बहरहाल घटनाक्रम के बाद किसान संगठनों में उबाल और चुनावी मोड में जा रहे राज्य की सियासत में तूफान आ गया। प्रदेश ही नहीं, दिल्ली, छत्तीसगढ़ व पंजाब आदि राज्यों से विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता प्रदेश की योगी व केंद्र सरकार पर हमलावर हो गये। सारे घटनाक्रम में किसानों का मुद्दा गौण हो गया और राजनीतिक दलों की राजनीति तेज होने लगी। उसी तेजी से योगी सरकार डैमेज कंट्रोल में जुट गई।