सम्पादकीय

त्रासदी है समभाव रखें

Gulabi
21 Sep 2021 8:34 AM GMT
त्रासदी है समभाव रखें
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उनका जीवन आज और हमेशा उस दर्द को भूल नहीं पायेगा.

खिलौना सी जिंदगी कहीं टूट गई, कहीं बिखर गई, किसने खोया किसने पाया, कोरोना में किस परिवार को कितने दुःखद मोड़ों से गुजरना पड़ा इसका अहसास उन्‍हें है, जिन्हें इस महामारी ने अपने आगोश में लिया है. कोई भी विपदा हो या महामारी, वो उस युग की सबसे बड़ी त्रासदी होती है. महामारी का दौर किसी अभिशाप से कम नहीं, जिनके अपने चले गये, उनका जीवन आज और हमेशा उस दर्द को भूल नहीं पायेगा.

बच्चों से मां-पिता छिन गये और माता-पिता के सामने उनकी संतान की जीवन-लीला का अंत हो गया उफ! कितना कष्टकारी है. आदमी एक-दूसरे से मिलने को लाचार हो गया, धरती शांत हो गई. कभी कहानी-किस्सों में पढ़ते थे कि सुंदरी के सोते ही सारा राज्य सो गया, ऐसा ही कोरोना ने लोगों के जीवन में कर दिया, वक्त का पहिया थम गया और जीवन में खामोशियां छा गईं.
कोरोना ने विकास के मार्ग पर आगे बढ़ती, कुलाचें मारती जिंदगी को ग्रहण लगा दिया है. काफी समय लगा खुद को समझाने में कि सब ठीक हो जायेगा, पर एक भय और सूनापन जिंदगी का हिस्सा ही बन गये. रिश्ते जो सिर्फ दूरियां बनकर रह गये थे और भी सिमट गये हैं, अब तो आस-पड़ोस भी पराया हो गया है, कोरोना ने जिंदगी से रस ही छीन लिया है, खुशियां, मुस्कान कहीं विलीन हो गई हैं.
प्रकृति से खिलवाड़ करने वाला मानव आज कितना लाचार हो गया है. दुनिया में हर क्षेत्र के व्यवसाय को कोरोना ने अपना शिकार बनाया है, हर घर – हर दिल को दर्द दिया है, उड़ानों को रोक दिया है और पैरों को जंजीरे दे दी हैं. मन को रिक्तता और आंखो को शून्य में निहारने के लिए छोड़ दिया है. असंख्‍य उपलब्धियों को हासिल करता हुआ मनुष्य जो स्वयं को जल, थल, नभ में देखकर गौरवान्वित महसूस करता था, आज छला सा गया है, कोरोना ने उसकी अभिलाषाओं पर रोक लगा दी है, उसकी कार्य क्षमता पर प्रश्न-चिन्ह लगा दिया है.
एक अदृश्य शक्ति ने जीवन में प्रवेश करके सबको अपने अधीन कर लिया है. कोई दुश्मन सामने हो तो उससे लड़कर उसे समाप्त भी कर दें, पर अदृश्य शत्रु जो अनेक मुखौटे लगाकर आया है, उससे कैसे निपटा जाये. उसे परास्त करने के समस्त प्रयास बार-बार विफल हो रहे हैं, लेकिन शीर्षस्थ पदों पर बैठे व्यक्ति आरम्भ से ही बिमारी का कारण व उपाय खोज रहे हैं. कोरोना काल में देश-हित में,जन-हित में जिन व्यक्तियों ने भी दूसरों की मदद के लिए हाथ बढ़ाए हैं,वो महान व्यक्तित्व धरती पर देवदूत के रुप में उभर कर आये हैं.
भूखों को भोजन खिलाने वाले, गरीबों को संभालने वाले, सद्विचारों की मशाल जलाने वाले इन लोगों का जीवन कोरोना के विषम से विषम संकट में भी नहीं डगमगाया, बल्कि इन्होंने अथक सेवा और परिश्रम के बल पर लोगों के प्राण बचाए. मानव हित के लिए इन्होने अपना सुख-चैन भी नहीं देखा. वहीं महामारी के इस नाजुक दौर में काला-बाजारी, भ्रष्टाचारी लोगों का निन्दनीय रुप भी सामने आया है.
समाज के सभ्य, सौम्य लोग जिन्होंने लोगों की जेबें काटकर अपना व्यवसाय चलाया है, उन्होंने ऐसे संकट के समय में भी मजबूरी में फंसे लोगों के जीवन से खेलना बंद नहीं किया. व्यापार में एक के ग्यारह बनाने वालों ने कोरोना का फायदा उठाते हुए लोगों के जीवन से सौदा किया और अपना रोजगार चमकाया. मरीजों के लिए प्रयुक्त होने वाली दवाइयों और अन्य उपकरणों में भी पैसा कमाया. नकली दवाइयां देकर लोगों के घरों के चिराग बुझा दिये.
धिक्कार है ऐसे नर पिशाचों को, जिन्‍होंने चंद सिक्कों की खातिर लोगों की भावनाओं और जीवन से खेला. ऐसे एक नहीं अनेक लोग हैं, जिनके नाम लेने से भी जिह्वा अपवित्र हो जाती है, कोरोना महामारी में लोगों की जिंदगी का सौदा करने और उनके परिवार को ठगने वाले इन अविश्वसनीय गद्दारों के काम बड़े घृणित हैं. ये वो ठग हैं, जो खुद को सिकन्दर समझते हैं, जो धरती से सब समेट कर ले जाएंगे.
हमारे एक करीबी हैं, कपड़ों का शोरुम है, हमने स्वयं वर्षों उनके यहां से खरीदारी की है, कोरोना के कारण जब लोगों के जीवन में हाहाकार मचा हुआ था, उन्‍होंने उस समय भी नकली इन्जैक्शन बेंचकर लोगों के साथ धोखा किया, आज उन पर बेहद आक्रोश और अफसोस है. जहां देश के डॉक्टर, नर्स, स्वयं-सेवक, सैनिक यहां तक की आम लोग भी मरीजों की जिन्दगियां बचा रहे हैं, वहां ऐसे निम्न और घृणित सोच वाले लोग अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं.समाज में ऊंचा कद रखने वाले, निम्न कोटि के काम करके दोहरा जीवन जीने वाले ये लोग कैसे अपने सगे-संबंधियों और सभ्य समाज से नजरें मिलाएंगे, कतरा-कतरा गिरते आंसुओं की जिन्‍होंने परवाह नहीं की, तड़पती जिंदगियों से पैसों का सौदा किया, इतना ही नहीं पैसा वसूलकर भी वादों को पूरा नहीं किया, मौत से जुझते लोगों की सांसे उखड़ गईं. दूसरों का जीवन छीनने वाले ये सफेदपोशी अन्दर से बेहद काले हैं, पीड़ितों की भावनाओं से खेलना कम गुनाह नहीं अपने भविष्य के लिए स्वपन देखने वाले ये नरक के अधिकारी हैं.बढ़ती महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए सरकारें, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक लगातार प्रयासरत हैं कि इस पर नियंत्रण पाया जा सके. सभी के सहयोग, आत्मसयंम, दृढ़ निश्चय व ईमानदारी से ही यह सम्भव हो सकता है. जरुरत है मन की कलुषता दूर करने की, देश और लोगों के हित में सोचने की, तिजोरियों की भूख कम करने की, लाचार, कमजोर, मजबूरों के साथ खड़े होने की. ये किसी एक की बिमारी नहीं, ये सब पर आयी आपदा है.
सहृदय और सच्चे मन से सहयोग करते हुए इस बुरे दौर को गुजारें, मास्क जो हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है, उसका प्रयोग करते हुए दूरी बनाकर भी मन से एक दूसरे के निकट रहें. कोरोना की वैक्सीन लगने के बाद आज सामान्य होती दुनिया में फिर में फिर से जीवन जीने की चाह उत्पन्न हुई है, इन खुशियों को समेट लें और नफरत, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, लालच जैसे शब्दों को अपने जीवन के शब्दकोश से हटा दें. मानवता का कल्याण करते हुए सहयोग और समभाव से अपना व सबका मार्ग प्रशस्त करें.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग, लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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