सम्पादकीय

ट्रैफिक व्यवस्था के सुराख

Rani Sahu
23 Sep 2021 6:40 PM GMT
ट्रैफिक व्यवस्था के सुराख
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गगरेट पुलिस चैक पोस्ट पर कानून के सन्नाटे को तोड़ता एक अज्ञात वाहन तीन जवानों को रौंद देता है

दिव्याहिमाचल गगरेट पुलिस चैक पोस्ट पर कानून के सन्नाटे को तोड़ता एक अज्ञात वाहन तीन जवानों को रौंद देता है और वहां खून के धब्बों की शिनाख्त में अपाहिज बेडि़यां नजर आती हैं। इसे वाहनों की टक्कर कहें, रात की चीख मानें या एक ही बाइक पर बिना हेल्मेट तीन सवार जवानों की दुखद मृत्यु के कारण जानें, लेकिन इस घटनाक्रम को निश्चित रूप से टाला जा सकता था। अगर रात के समय हाई-वे पैट्रोलिंग सुनिश्चित की जाए, ओवर स्पीड वाहनों के चालान काटे जाएं तथा बिना हेल्मेट बाइक सवार रोके जाएं, तो इस तरह की वारदात नहीं होगी। विडंबना यह है कि यातायात व्यवस्था अभी तक पुलिस, प्रशासन, पीडब्ल्यूडी व सरकार की प्राथमिकता में नहीं आई है। पुलिस जवानों को सड़क पर खड़ा कर देने से ट्रैफिक इंतजाम पूरे नहीं होंगे, बल्कि खास तरह की ट्रेनिंग, आधुनिक उपकरण व निगरानी वाहन उपलब्ध करा कर ही इसे पूरी तरह व्यवस्थित किया जा सकता है। सड़कों पर बढ़ता वाहन दबाव केवल दिन की गतिविधि नहीं, बल्कि रात्रि के समय भी भौगोलिक दूरियां मिटाने के लिए इनका अधिकतम उपयोग होने लगा है। अब हिमाचल रात को विश्राम नहीं करता, बल्कि रात के साये में पुलिस व्यवस्था को चौकन्ना करने की जरूरत है।

खासतौर पर बार्डर एरिया, पर्यटक व धार्मिक स्थलों पर पुलिस चौकसी के इंतजाम रात को बदल जाते हैं। रात्रिकालीन पुलिस व्यवस्था के तहत ट्रैफिक के अलावा आपराधिक गतिविधियों पर नकेल डालने के लिए नए मानदंड स्थापित करने होंगे। अभी हाल ही में वायरल वीडियो में एक धार्मिक स्थल पर यात्रियों और अधिकारी के बीच हो रहा विवाद चाहे किसी एक पक्ष को दोषी न मानें, लेकिन यह कहना पड़ेगा कि दिन ढलते ही हमारी व्यवस्था के सुराख सक्रिय हो जाते हैं। ड्यूटी के मायने अगर दिन में ही निठल्ले हैं, तो रात के वक्त अनुशासनहीनता बढ़ने के कई प्रमाण मिल जाते हैं। गगरेट की दुर्घटना दिल दहला देने वाली है, क्योंकि वहां तीन परिवारों के बच्चों ने जान नहीं गंवाई, बल्कि पुलिस महकमे ने भी अपने सामने जवानों की लाशों को देखा है। कमोबेश हर दिन का सूर्य कई घरों के चिराग बुझाकर लौटता है और हिमाचल के हर मोड़ पर कोई न कोई दुर्घटना पीछा करती है। वाहनों की बढ़ती तादाद और जीवन की भागदौड़ ने हर सड़क पर मरघट सजा दिए हैं। पंद्रह लाख के करीब पंजीकृत वाहनों के अलावा बाहरी गाडि़यों का आगमन अब सड़कों के होश फाख्ता करता है। सड़कों का विस्तार अपनी योजनाओं के नालायक फलक पर कमजोर है, खासतौर पर शहरी आवरण में परिदृश्य और भी विकराल है। हैरानी तो यह कि प्रदेश के प्रवेश द्वार ही वाहन आगमन का नैराश्य पक्ष पेश करते हैं।
है हिम्मत तो गगरेट, कांगड़ा, जोगिंद्रनगर, ज्वालामुखी, नयनादेवी, चिंतपूर्णी या बैजनाथ जैसे अनेक शहरों के प्रवेश द्वार से वाहन को आराम से निकाल के दिखाओ। दरअसल शहरीकरण व शहरी मानसिकता ने अपना विकास तो किया, लेकिन इस रफ्तार के प्रश्नों का हल यातायात के बढ़ते दबाव में नहीं समझा गया। नतीजतन शहर की डियोढ़ी पर सड़क दुर्घटनाओं की आशंका बिखरी हुई मिलती है। युवा पीढ़ी के रोमांच और वाहनों के बाजार में बढ़ती हिमाचल की भागीदारी ने सड़कों पर अनुशासनहीनता बढ़ा दी है। जरूरत यह है कि ट्रैफिक नियमों का कड़ाई से पालन करने के साथ-साथ सड़क अधोसंरचना को वाहनों की गति के अनुरूप मुकम्मल किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए मुख्य सड़कों पर संपर्क रास्तों से आते वाहनों के लिए न निर्देश, न ट्रैफिक लाइट्स और न ही चौराहे विकसित हुए हैं, जबकि बस स्टॉप का स्थान न तो तय है और न ही इसकी अधोसंरचना यात्री व वाहन चालकों की सुरक्षा की दृष्टि से हो रही है। ऐसे में सड़क अधोसंरचना के साथ-साथ ट्रैफिक पुलिस प्रबंधन को रात-दिन मुस्तैद करने के लिए नए मानक स्थापित करने होंगे। हाई-वे पैट्रोलिंग के जरिए ट्रैफिक नियमों की अनिवार्यता के साथ-साथ रात के समय अनैतिक गतिविधियों पर भी नजर रहेगी।


Rani Sahu

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