सम्पादकीय

हादसों की पटरी

Subhi
15 Jan 2022 3:20 AM GMT
हादसों की पटरी
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रेल यात्रा को सुरक्षित और सुगम बनाने के दावे हर साल बजट पेश करते समय किए जाते हैं। रेल पटरियों के सुधार और सुरक्षा उपकरणों आदि को पुख्ता करने के दावे किए जाते हैं।

रेल यात्रा को सुरक्षित और सुगम बनाने के दावे हर साल बजट पेश करते समय किए जाते हैं। रेल पटरियों के सुधार और सुरक्षा उपकरणों आदि को पुख्ता करने के दावे किए जाते हैं। मगर स्थिति यह है कि रेल हादसे रुक नहीं पा रहे। बीकानेर एक्सप्रेस का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना इसका ताजा उदाहरण है। हालांकि जैसी रेल विभाग ने सूचना दी है, गाड़ी की रफ्तार कोई तेज नहीं थी।

ट्रेन करीब चालीस की गति से चल रही थी कि उसके डिब्बे पटरी से उतर कर एक-दूसरे पर चढ़ गए, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई और करीब पचास गंभीर रूप से घायल हो गए। इस घटना पर तत्परता दिखाते हुए केंद्रीय रेल मंत्री और रेल बोर्ड के अध्यक्ष मौके पर पहुंचे और जांच से पता चला कि रेल के इंजन में कोई खराबी आने की वजह से यह हादसा हो गया। वजह जो भी रही हो, पर इससे रेल महकमे की जवाबदेही कम नहीं हो जाती। यह सवाल अनुत्तरित बना हुआ है कि आखिर क्या वजह है कि सुरक्षा के तमाम दावों और किरायों में बढ़ोतरी कर खर्च आदि जुटाए जाने के बावजूद रेल यात्रा अब तक भरोसेमंद नहीं बनाई जा सकी है।

पिछले कुछ सालों से न केवल हादसों में बढ़ोतरी, बल्कि अनेक असुविधाओं के चलते रेलवे लगातार आलोचना का विषय बना रहा है। यह देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक उपक्रम है, ज्यादातर आबादी यातायात के मामले में इसी पर निर्भर है। यह माल ढुलाई का भी बड़ा साधन है। फिर भी इस पर वैसा ध्यान क्यों नहीं दिया जा पाता, जैसा दिया जाना चाहिए। प्राय: इसके घाटे में चलने का तर्क देते हुए सुविधाओं को बेहतर बनाने की मांग टालने की कोशिश देखी जाती है। अब तो देश के कई स्टेशनों का रखरखाव और गाड़ियों का संचालन निजी हाथों में सौंप दिया गया है।

इससे किराए आदि में बढ़ोतरी तो हो गई है, मगर गाड़ियों में सुरक्षा का भरोसा अब तक नहीं बन पाया है। पिछले करीब पच्चीस सालों से यह बात दोहराई जाती रही है कि रेलगाड़ियों में टक्कररोधी उपकरण लगाए जाएंगे, ताकि उनके आपस में टकराने की संभावना खत्म हो सके। इसी तरह रेल संचालन को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत करने की योजना पर भी लंबे समय से काम चल रहा है। गाड़ियों में अत्याधुनिक सूचना तकनीक और सुरक्षा उपकरण लगाने पर जोर दिया जाता रहा है, ताकि किसी प्रकार की तकनीकी खराबी आने पर गाड़ियों को संभाला जा सके, स्वत: रोका जा सके। मगर वे सब योजनाएं बस कागजों तक महदूद हैं।

रेल हादसों की वजहें छिपी नहीं हैं। पटरियों, पुलों आदि के पुराने पड़ जाने, डिब्बों का निर्माण पुरानी तकनीक से किए जाने, चालकों को आधुनिक तकनीक उपलब्ध न कराने आदि के चलते अक्सर ऐसे भी हादसे हो जाते हैं, जिन्हें आसानी से टाला जा सकता था। गाड़ियों के गलत पटरी पर जाकर परस्पर टकरा जाने की घटनाएं अभी तक नहीं रोकी जा सकी हैं।

इसलिए कि अब भी रेलवे में बहुत सारे काम मानव श्रम के भरोसे चल रहे हैं। आज जब दुनिया में रेलों की रफ्तार इतनी तेज हो गई है कि वे हवाई जहाज से होड़ ले रही हैं, वहां हमारे यहां चालीस की रफ्तार से चलती गाड़ी भी बेपटरी होकर लोगों के लिए जानलेवा साबित हो जाती है। दरअसल, जब तक रेलवे तंत्र को सुधारने के प्रति सरकार में दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं होगी, ऐसे हादसों को रोकना मुश्किल बना रहेगा।



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