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Written by जनसत्ता: यह हर साल का सिलसिला बन गया है कि जब भी दुनिया के शहरों में प्रदूषण का स्तर नापा जाता है, तो भारत के शहर प्राय: उसमें अव्वल पाए जाते हैं। स्विस संगठन आइक्यूएअर की ताजा रिपोर्ट में दिल्ली को लगातार चौथे साल दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। भारत का एक भी ऐसा शहर नहीं है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता के मानक पर खरा उतरता हो।
वायु गुणवत्ता मानक के अनुसार हवा में पीएम 2.5 कणों की मौजूदगी पांच माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। मगर भारत के शहरों में यह पचास से अधिक ही दर्ज होती है। दिल्ली में यह छियानबे माइक्रोग्राम से अधिक है। पिछले साल दिल्ली में वायु प्रदूषण में साढ़े चौदह फीसद से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
यह स्थिति तब है, जब इस शहर को प्रदूषणमुक्त बनाने के अभियान लगातार चलते रहते हैं। शहर में बाहर से आने वाले भारी वाहनों पर रोक है, दिल्ली सरकार ने स्माग टावर खड़े कर प्रदूषण अवशोषित करने का उपाय भी किया है। प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर भारी जुर्माना किया जाता है। पंद्रह साल पुराने वाहनों को सड़क पर चलने की इजाजत नहीं है।
दिल्ली और दूसरे महानगरों में बढ़ते वायु प्रदूषण की वजहें सबको पता हैं। हालांकि धुआं उगलने वाले कारखानों को शहरों के रिहाइशी इलाकों से दूर बसाया गया है। जो उद्योग-धंधे पहले से शहरों के भीतर चलते आ रहे थे, उन्हें किफायती दर पर भूखंड आबंटित कर शहरों से दूर बसाया गया।
मगर हकीकत यह है कि आज भी दिल्ली सहित तमाम शहरों में बड़े पैमाने पर लघु उद्योग शहरों के भीतर चलाए जाते हैं, जो न सिर्फ वायु प्रदूषण फैलाते, बल्कि नदी जल में भी जहर घोलते रहते हैं। उनमें से बहुत सारे उद्योगों का पंजीकरण नहीं है, प्रशासन की मिली-भगत से शहरों के भीतर बने हुए हैं। शहरों के भीतर आ गए गांवों में ऐसे उद्योग बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। उन पर कैसे काबू पाया जाए, यह तो प्रशासन ही बता सकता है। इसी तरह वाहनों में प्रदूषण नियंत्रक यंत्र लगाना अनिवार्य किया गया। मगर उसका कोई उल्लेखनीय नतीजा सामने नहीं आ पा रहा।
हवा में पीएम 2.5 कणों की सघनता बढ़ने का सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं माना जाता है। इसलिए कई बार यह भी सुझाव आए कि वाहनों की बिक्री पर नियंत्रण किया जाए और सार्वजनिक परिवहन की क्षमता बढ़ाई जाए। इस दिशा में मेट्रो रेलों के परिचालन और नगर बस सेवाओं की संख्या में बढ़ोतरी करके काबू पाने का प्रयास किया गया।
दिल्ली में बाहर से आने वाले ट्रकों के प्रवेश पर अंकुश लगाया गया, शहर में चलने वाली सभी बसों को सीएनजी चालित किया गया। पर वायु प्रदूषण अगर चौदह-पंद्रह फीसद की दर से बढ़ा दर्ज हो रहा है, तो यह सरकारों के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। इसे तदर्थ उपायों के जरिए नहीं रोका जा सकता। अब तक सरकारें स्थिति गंभीर होने पर कई तात्कालिक उपाय आजमा चुकी हैं, जैसे दिल्ली सरकार ने सम-विषम योजना आजमाई।
मगर ऐसे उपाय इसके स्थायी हल नहीं साबित हो सकते। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को और चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत से इनकार नहीं किया ज सकता। दिल्ली सहित तमाम महानगरों में लोगों की शिकायत रहती है कि सरकारें इस दिशा में व्यावहारिक कदम नहीं उठातीं। अब पानी सिर से ऊपर बढ़ने लगा है, इसलिए इस समस्या का समन्वित रूप से समाधान तलाशा जाना जरूरी है।