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सर्दी का मौसम शुरू होते ही दिवाली के आसपास दिल्ली और इसके सटे इलाकों की हवा में प्रदूषण बढ़ना शुरू हो जाता है।
सर्दी का मौसम शुरू होते ही दिवाली के आसपास दिल्ली और इसके सटे इलाकों की हवा में प्रदूषण बढ़ना शुरू हो जाता है। हालांकि इसे रोकने के लिए दिल्ली सरकार काफी हाथ-पांव मारती देखी जाती है, पर उसे सफलता मिलती नजर नहीं आती। अक्सर इस मौसम में प्रदूषण बढ़ने की बड़ी वजह किसानों के पराली जलाने, पटाखे फोड़ने और निर्माण कार्यों से उड़ने वाली गर्द को बताया जाता रहा है। मगर इस साल इन सभी पहलुओं पर सरकार पहले से सतर्कता बरत रही थी।
निर्माण कार्यों से उड़ने वाली गर्द पर अंकुश लगाने के लिए पूरी दिल्ली में जांच दल गठित कर दिए गए थे। किसानों को पराली न जलानी पड़े, इसके लिए दिल्ली सरकार ने विशेष रूप से तैयार जैव रसायन का मुफ्त वितरण शुरू किया था, जिससे पराली आसानी से खेतों में ही गल-पच जाती है। पटाखों पर अदालत की तरफ से रोक है। यों भी दिवाली से पहले इतने पटाखे नहीं फोड़े जाते कि उनसे निकलने वाला धुआं सारे वातावरण को दमघोटू बना दे। मगर इतने एहतियात के बावजूद स्थिति यह है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरे के बिंदु तक पहुंच गया। मंगलवार को दर्ज आंकड़ों में दिल्ली में प्रदूषण का स्तर देश के प्रमुख शाहरों में सबसे ऊपर था। तीन सौ नौ अंक। आने वाले दिनों में इस स्तर में और बढ़ोतरी की संभावना जताई गई है।
जब मौसम सर्द होने लगता है, तो हवा पृथ्वी की सतह के आसपास सिमटने लगती है, फिर उसमें घुले प्रदूषक वातावरण को दमघोटू बना देते हैं। पिछले कुछ सालों में तो ऐसा अनुभव रहा कि बच्चों के स्कूल बंद करने पड़े, लोगों को सुबह टहलने निकलने से परहेज करने की सलाह दी गई। दमकल की गाड़ियों से पेड़ों पर पानी की बौछार मार कर प्रदूषक तत्त्वों को कम करने का प्रयास किया गया। बहुत सारे लोगों ने अपने घरों में वायु प्रदूषण अवशोषक संयंत्र भी रख लिए।
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने एक जगह वायु प्रदूषण सोखने वाला विशाल संयंत्र भी लगाया है, जिसके नतीजे उत्साहजनक हैं। ऐसे संयंत्र अन्य स्थानों पर भी लगाने की उसकी योजना है। मगर अब यह साफ हो गया है कि तमाम उपायों के बावजूद अगर वायु प्रदूषण पर काबू पाना चुनौती बना हुआ है, तो इसकी वजहें दूसरी हैं। वायु प्रदूषण का बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। इसे कम करने के भी कई उपाय सरकार आजमा चुकी है, पर उस पर काबू नहीं पाया जा पा रहा।
हालांकि वाहनों पहले से ही ऐसे यंत्र लगाया जाने लगे हैं, जो धुएं को पानी में बदल देते हैं, उसे हवा में घुलने नहीं देते। बसों में सीएनजी इस्तेमाल होने लगी है। अब बैट्री चालित टैक्सियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मगर दुपहिया वाहनों से निकलने वाले धुएं पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण दुपहिया वाहनों की वजह से फैलता है।
दिवाली नजदीक होने की वजह से आनलाइन खरीदारी पर जोर रहा। ऐसी वस्तुओं की आपूर्ति करने वाले ज्यादातर दुपहिया वाहनों का उपयोग करते हैं। दिल्ली की सड़कों पर दुपहिया वाहनों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, इसलिए इनसे निकलने वाला धुआं चुनौती बना हुआ है। फिर चोरी-छिपे बहुत सारे धुआं उगलने वाले छोटे और मंझोले उद्योग-धंधे भी दिल्ली के अंदर चल रहे हैं। इस दिशा में जब तक कोई व्यावहारिक उपाय नहीं निकाला जाएगा, तब तक इस समस्या पर काबू पाना कठिन बना रहेगा।
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