सम्पादकीय

सहमति की ओर

Gulabi
13 Feb 2021 12:06 PM GMT
सहमति की ओर
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भारत-चीन के बीच जारी नौ महीने के गतिरोध के बाद लद्दाख स्थित पैंगोंग झील

भारत-चीन के बीच जारी नौ महीने के गतिरोध के बाद लद्दाख स्थित पैंगोंग झील के उत्तरी-दक्षिणी तट पर दोनों देशों के सैनिकों को हटाने पर बनी सहमति स्वागतयोग्य ही कही जायेगी। राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई दौर की बातचीत के बाद एलएसी पर तनाव का कम होना दोनों देशों के हित में ही है क्योंकि दोनों बड़े मुल्कों में टकराव विश्वव्यापी संकट को जन्म दे सकता था। विगत में विदेशमंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच मास्को में हुई बैठक में तनाव कम करने के लिये पांच सूत्रीय कार्ययोजना पर बात हुई थी लेकिन लंबे समय से इसके सार्थक परिणाम नजर नहीं आये थे। अब इस मुद्दे पर सहमति के बावजूद भारत को सतर्कता में कोई चूक नहीं करनी चाहिए। दशकों से जारी सीमा निर्धारण को लेकर बातचीत चीन के अड़ियल रवैये के चलते किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पायी है। इसके बावजूद चीनी सैनिकों का पीछे हटना सेना के लिये राहतकारी है, जो गलवान घाटी के घटनाक्रम के बाद विषम मौसम में भी हाई अलर्ट पर है। भारत को चीनी मंसूबों की लगातार निगरानी करने की जरूरत है। साथ ही आपसी विश्वास बहाली के लिये निरंतर प्रयास करते रहने होंगे। अतीत में विश्वास तोड़ने की चीनी कोशिशों ने भारतीयों के मन में अविश्वास को जन्म दिया है। इतिहास ने हमें कई कड़वे सबक दिये हैं, खासकर 1962 के आक्रमण में जब शांति की बात करते हुए चीन ने भारतीय नेतृत्व से छल किया। जुलाई, 1962 में पं. नेहरू ने लद्दाख से चीनी सैनिकों की आंशिक वापसी का स्वागत किया था परंतु उसके तीन माह बाद ही चीन ने भारतीय क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया था। हालांकि, भारत 1962 की स्थितियों से बहुत आगे निकल चुका है, लेकिन फिर भी सतर्क रहने की जरूरत है। चिंता की बात यह है कि चीनी नीतियों में पारदर्शिता का अभाव रहा है।


ऐसे में भारत को चीनी कदम के सभी पहलुओं का मूल्यांकन कर कदम बढ़ाने होंगे। राज्यसभा में रक्षा मंत्री के बयान के अनुसार समझौते के बाद चीनी सैनिक पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर 8 के पास रहेंगे और भारतीय सैनिक फिंगर तीन के पास रहेंगे। इस बीच दोनों स्थानों के बीच गश्त पर अस्थाई रोक रहेगी। बहरहाल, लंबे गतिरोध के बाद कम से कम एक क्षेत्र से चीनी सैनिकों की वापसी शुरू हुई है। निस्संदेह इस कदम से दोनों देशों के संबंधों में जमी अविश्वास की बर्फ पिघलेगी। इस बात पर सहमति बनी बताई जा रही है कि तनाव के दौरान इस क्षेत्र में हुए निर्माण भी हटाये जायेंगे। इस समझौते के आलोक में इस बात की उम्मीद जगी है कि देप्सांग व गलवान घाटी में बाकी विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने की शीघ्र पहल होगी। हालिया सहमति को आधार बनाकर आगे अन्य विवादों को सुलझाने की पहल होनी चाहिए। यह भरोसा तो जगा है कि चीन की तरफ से ईमानदार पहल हो तो तनाव घटाते हुए अन्य विवादों का भी पटाक्षेप हो सकता है। जाहिरा तौर पर सीमा पर आशंकाओं के बादल तो छटे ही हैं। दो सीमाओं पर सुरक्षा की चुनौती से निपटना सेना के लिये भी एक बड़ी चुनौती रही है। उम्मीद जरूर जगी है कि बातचीत के लिये अब अनुकूल वातावरण बनेगा। साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा से जुड़े विवादों के निपटारे की दिशा में दोनों देश आगे बढ़ सकेंगे। निस्संदेह संवादहीनता संबंधों में कई तरह की जटिलताओं को जन्म देती है। बहुत संभव है कि पैंगोंग झील के तटों को लेकर हुआ समझौता आगे की बातचीत का आधार बने। ऐसे में इस सकारात्मक प्रगति का स्वागत ही किया जाना चाहिए। साथ ही लंबे समय तक तनाव और गलवान के जख्मों के बाद दोनों देशों ने जैसा संयम दिखाया, वह भविष्य की बातचीत की राह दिखाने वाला है। साथ ही ताजा घटनाक्रम यह विश्वास तो जगाता ही है कि बगैर बाहरी हस्तक्षेप के दोनों देश अपने विवादों को सुलझाने में सक्षम है। कोशिश हो कि विवाद के इस पटाक्षेप को कोई देश हार-जीत के रूप में न ले।


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