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न जाने क्या हुआ, जो अचानक प्रदेश में हो रहा हवाई विकास धरातल पर उतर आया था। राजनैतिक छुआछूत खत्म हो चुकी थी। सत्ता पार्टी ने बगैर भेदभाव के विरोधी राजनैतिक दलों के समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भी विकास से सराबोर कर दिया था। आए दिन हवा में होनी वाली घोषणाएं सच हो रही थीं। पिछले दो दशकों से जिस डल झील के पुनरुद्धार को लेकर कई मर्तबा प्रैस कान्फ्रेंस हो चुकीं थीं, कागज़़ों में करोड़ों ख़र्च हो चुके थे, वे अब सचमुच ख़र्च हो रहे थे और देखते ही देखते झील का कायाकल्प हो गया। यह वही झील थी जिसे लेकर स्थानीय विधायक और काबीना मंत्री ने कई बार प्रैस को बताया था कि जापान के सहयोग से झील को नया जीवन दिया जा रहा है और उसके विकास पर जापान पाँच करोड़ रुपये ख़र्च कर रहा है। स्थानीय हवाई अड्डा, जिसके विस्तारीकरण पर पिछले तीन दशकों से हर आने-जाने वाली सरकार नई-नई घोषणाएं करती रही थी, उसके लिए लोगों ने स्वेच्छा से ज़रूरत से ज़्यादा भूमि उपलब्ध करवा दी थी। हवाई पट्टी के विस्तारीकरण से दिन-रात बड़े-बड़े जहाज़ उतरने लगे थे। पर्यटकों की संख्या में कऱीब सौ गुणा बढ़ोतरी हो चुकी थी। आर्थिकी में भी सौ गुणा वृद्धि होने से सरकार ने प्रदेश के सिर पर लदा अस्सी लाख करोड़ रुपये का कज़ऱ् उतार फैंका था। लोगों को दिल्ली हवाई यात्रा के टिकट अब पच्चीस हज़ार की बजाए सिफऱ् दो हज़ार रुपये में उपलब्ध थे।
हर नत्थू-फत्तू अब हवाई जहाज़ में बैठने का आनन्द उठा रहा था। प्रधानमंत्री के सपने के मुताबिक़ अब हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई जहाज़ की सवारी का लुत्फ उठा रहे थे। पर सबसे बड़ी बात थी कि सरकार ने हवाई अड्डे के लिए अधिग्रहित ज़मीन के विस्थापितों के मामले में पौंग बाँध वाली ग़लती नहीं दोहराई थी। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पहले ही कॉलोनियां बना कर उन्हें उजडऩे से बचा लिया था। यहां तक जो हुआ, वह होता तो भी ठीक था। पर मुख्यमंत्री समेत अक्सर दिन में सोए रहने वाले मंत्री और आला अधिकारी जनता के दु:ख-दर्द जानने के लिए रात में भेष बदल कर घूम रहे थे। नई सरकार के आने से पहले राज्य में निर्मित सीमेंट, जो पूरे देश के मुक़ाबले प्रदेश में सौ रुपये तक महंगा बिकता था, वह अब प्रदेश में आधे दामों पर बिक रहा था। बेरोजग़ारों की संख्या में इतनी गिरावट आ गई थी कि उन्हें उँगलियों पर गिना जा सकता था। सरकारी शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थानों में शिक्षक-छात्र और डॉक्टर-मरीज़ अनुपात आदर्शता प्राप्त कर चुका था।
सडक़ें हेमामालिनी के गालों की तरह चिकनी हो गई थीं, जिससे प्रदेश में होने वाली सडक़ दुर्घटनाएं शून्य तक पहुँच गई थीं। उद्योग मंत्री ने जि़ला प्रवास के दौरान पत्रकार सम्मेलन में ख़ुलासा कि राज्य में जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश के सबसे बड़े जि़ला में तीन शक्तिपीठों, कई सिद्धपीठों, प्राकृतिक सौन्दर्य तथा साहसिक पर्यटन की असीमित संभावनाओं को देखते हुए इसे देश की सबसे बड़ी पर्यटन राजधानी के रूप में विकसित किया जाएगा। पर पण्डित जी को इस बात पर ऐतराज़ था कि छह हज़ार वर्ग किलोमीटर के जि़ला को राजधानी कैसे बनाया जा सकता है, जब सरकार अभी आठ वर्ग किलोमीटर में फैली राजधानी को संभालने में नाकाम रही है। उन्होंने उद्योग मंत्री के इस वक्तव्य पर ऐतराज़ करते हुए कहा कि वह अनाप-शनाप घोषणा करने से बचें। लेकिन अँधेरे में उनके हाथ हिलाने से सिरहाने रखा पानी का गि़लास छन्न से नीचे गिर पड़ा। उनकी पत्नी उन्हें ग़ुस्से में झिडक़ते हुए बोलीं, ‘पण्डित मुँगेरी लाल जी! हसीन सपने देखना छोडि़ए। ऐसे स्वर्ग नींद में या फिर मरने के बाद ही नसीब होते हैं। नींद में आप जो बड़बड़ा रहे थे, उन्हें मैं पिछले चालीस सालों से सुनती आ रही हूँ। पहले उठिए और जो पानी गिराया है, उस पर पोचा मारिए। नहीं तो उठते हुए हड्डियाँ तुड़ा बैठोगे और इलाज के लिए चंडीगढ़ से पहले कहीं ब्रेक नहीं लगेगी।’ रात के दो बजे पोचा मारते हुए वह सोच रहे थे कि क्या सपने देखना बुरी बात है?
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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