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By: divyahimachal
हिमाचल में पर्यटन की खोज में निकला काफिला अगर अटल टनल में मशहूर हो रहा है, तो बीड़-बिलिंग तक पहुंच कर इसकी नई मंजिलें गिनवा रहा है। पैराग्लाइडिंग की महाकल्पना ने पिछले दो दशकों में बीड़-बिलिंग को इसके इरादों का महाकाव्य बना दिया, तो यह दस्तूर प्रदेश की ख्वाहिश में इजाफा कर सकता है। ऐसे में अगले दस या बीस साल बाद हिमाचल के पर्यटन मानचित्र पर कितने नए रंग भरे जा सकते हैं, इसके ऊपर अभी से विचार करना चाहिए। कम से कम नए उभर रहे पर्यटन क्षेत्रों को व्यवस्थित रखने के लिए अभी से प्रयास व परिकल्पना करनी होगी। उदाहरण के लिए अगर पिछले सप्ताह अटल टनल से करीब तीस हजार वाहन गुजर गए, तो हम इस रंग में बदरंग होते मंसूबों को देख सकते हैं। इसी तरह एक प्रतियोगिता ने बीड़-बिलिंग की संभावनाओं को चंद दिनों में निचोड़ दिया। अटल टनल में पर्यटन को एक नए स्तर व मुकाम पर ले जाने की आवश्यकता को जिन शर्तों की जरूरत है, वे सामने नहीं आई हैं, बल्कि यह मनाली का ही विस्तारित पटल हो रहा है। इससे पहले हमने रोहतांग की ढलानों को इतना विद्रूप बना दिया कि एनजीटी को अपनी हिदायतों के कदम वहां रखने पड़े। कुछ इसी तरह बीड़-बिलिंग के पर्यटन इतिहास में हम अति दोहन की निरंकुशता देख सकते हैं। विविधता और भिन्नता के प्रारूप में हिमाचल के हर पर्यटक स्थल को अपनी खूबियां विकसित करनी होंगी। मनाली के बाद अटल टनल भी अगर लाहुल-स्पीति के वातावरण में उसी तरह बसाना चाहे तो यह सही परिप्रेक्ष्य में पर्यटन का विस्तार नहीं होगा। लाहुल-स्पीति के पर्यटन को संवारने से कहीं अधिक सहेजना होगा।
इसी तरह बीड़-बिलिंग के पर्यटन को संवारने के लिए पालमपुर या धर्मशाला के मॉडल का अनुसरण करना गैरजरूरी है। इतना ही नहीं बीड़ और बिलिंग के बीच गतिविधियों का बंटवारा अगर सही नहीं होगा, तो एक दिन बिलिंग खुद को बीड़ या पालमपुर बनाते हुए बड़ा लक्ष्य खो देगा। पिछले कई दशकों से पर्यटन क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी व्यय बढ़ा है, लेकिन लक्ष्यों का बंटवारा नहीं हुआ, लिहाजा कहीं सरकारी होटल और कहीं निजी पर्यटन इकाइयां एक दूसरे से भिड़ रही हैं। पर्यटन क्षेत्र में सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल बेशक एशिया विकास बैंक की मदद से बढ़ा है, लेकिन क्या इससे नतीजे बेहतर हुए या सारा व्यय अनुपयोगी हो गया। पूरे प्रदेश में राजनीतिक दखल से खड़े की गई कई इकाइयां धूल चाट रही हैं या अप्रासंगिक होकर केवल अपव्यय का पर्याय बन गई हैं। वर्तमान सरकार को अगले बीस सालों का खाका बनाते हुए पिछले बीस सालों का अपना इतिहास भी जान लेना चाहिए। प्रदेश में कितनी पर्यटन इकाइयां क्यों असफल हुईं या इनके औचित्य पर प्रश्र क्यों खड़े हुए, इससे सीखते हुए आगे बढऩा चाहिए। इतना ही नहीं हिमाचल की प्रगति ने कुछ ऐसे क्षेत्रों को भी पर्यटन के रास्तों पर खड़ा कर दिया है, जहां विशेष योजनाओं के तहत हाई-वे पर्यटन, युवा एवं छात्र पर्यटन, सिने पर्यटन व सांस्कृतिक पर्यटन से जोड़ा जा सकता है। इसी लक्ष्य से नादौन से भोटा के बीच साइंस सिटी, बीबीएन में टेक्नोलॉजी पार्क, नदियों के किनारे वाटर स्पोट्र्स तथा पूरे प्रदेश में साहसिक पर्यटन का एक जाल बुनना होगा। उदाहरण के लिए बिलिंग में पैराग्लाइडिंग की अनुमति तब दी जाए अगर पर्यटक इससे पूर्व किसी आरंभिक प्लैटफार्म पर अनुभव प्राप्त करके आया हो, यानी सिरमौर, ऊना, हमीरपुर, चंबा व मंडी में पैराग्लाइडिंग की सरलता में कम से कम जोखिम वाली पहाडिय़ों पर इन्हें आरंभिक तौर पर अवसर दिया जाए। पिछली सरकार ने तत्तापानी के धार्मिक महत्त्व को वाटर मनोरंजन रिजोर्ट के रूप में विकसित किया था, लेकिन इसे एक श्रृंखला के रूप में आगे बढ़ाने की जरूरत है। अतीत में स्की विलेज की परिकल्पना पर सियासी चाबुक का प्रहार हमारी क्षमता, योग्यता व संभावना से कुठारघात कर गया और कुछ इसी तरह पौंग जलाशय की विराटता और एयरपोर्ट की समीपता को नजरअंदाज करते हुए हिमाचल ने अवसर गंवाए हैं। वक्त की नुमाइश में पर्यटन को आगे बढ़ाने से विविधता और भिन्नता से हिमाचल को पेश करने का सामथ्र्य बढ़ेगा, लेकिन हर नए क्षेत्र को अपनी विशिष्टता कायम रखनी होगी। धार्मिक स्थलों, हिल स्टेशनों, साहसिक मंजिलों या जल क्रीड़ाओं से जुड़े क्षेत्रों का विकास अलग-अलग पैमानों और दृष्टि से होना चाहिए, ताकि हर क्षेत्र की खासियत को छूने के लिए सैलानी लालायित रहें।

Rani Sahu
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