सम्पादकीय

जलवायु आपदा में पर्यटन

Subhi
26 March 2022 4:52 AM GMT
जलवायु आपदा में पर्यटन
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अर्थव्यवस्था में अब पर्यटन की अहम भूमिका है। उत्तराखंड, हिमाचल से लेकर पूर्वोत्तर के पर्वतीय राज्यों तक की पूरी आर्थिकी इसी पर निर्भर है। सैलानियों की आमद से कई तरह के रोजगार सृजित होते हैं।

जयप्रकाश त्रिपाठी: अर्थव्यवस्था में अब पर्यटन की अहम भूमिका है। उत्तराखंड, हिमाचल से लेकर पूर्वोत्तर के पर्वतीय राज्यों तक की पूरी आर्थिकी इसी पर निर्भर है। सैलानियों की आमद से कई तरह के रोजगार सृजित होते हैं। इसीलिए पर्यटन लक्ष्य पर नजरें टिकाए फेडरेशन आफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म एंड हास्पिटैलिटी (फेथ) हाल ही में जारी अपने 'दृष्टिपत्र-2035' में साढ़े सात करोड़ पर्यटकों और साढ़े सात अरब घरेलू पर्यटन यात्राओं की उम्मीद करते हुए डेढ़ सौ अरब डालर विदेशी मुद्रा और पंद्रह करोड़ प्रत्यक्ष-परोक्ष रोजगार सृजित करने के सपने देख रहा है।

पर्यावरण और पर्यटन में आदिम अंतर्संबंध है। पर्यटन की कमाई से लेकर पर्यावरण पर उसके प्रभाव की चिंताओं को आज के परिवेश में नए सिरे से जाना-समझा जा रहा है। इस बीच भयानक होती जा रही महंगाई और बेरोजगारी की भगदड़ भी कुछ कम तनाव नहीं दे रही है। ऐसे में पर्यटन से हमारे समृद्ध पर्यावरण की मुलायम त्वचा छिल जाती है। वनस्पतियां कुम्हलाने लगती हैं। मद्धिम-मद्धिम पदचाप भी वन्य-जीवन को चौंका देती है। पर्यटन वाले इलाकों में दिन-रात यातायात, अनियोजित शहरीकरण, कहीं रिसार्ट, कहीं तंबू के बहाने लुढ़का दिए गए लाखों वृक्ष, नौकायन के साथ झीलों में तैरता कचरे का पहाड़, बोतलें, प्लास्टिक के अपशिष्ट; और उसी में बीड़ी-सिगरेट की एक चिंगारी भर से धधकते जंगलों की विनाशलीला से समूचा वन्य-जीवन थरथरा उठता है।

पर्यटन उद्योग को लहलहाने के लिए आवासीय भवनों, राजमार्गों, होटलों, ढाबों का बेतहाशा निर्माण भी कुछ कम विध्वंस नहीं कर रहा है। फूलों की घाटी में झांक कर देखिए कि वह किस तरह बांझ होकर रह गई है। दिशा बदलती नदियां नीचे की बसावटों पर कैसे-कैसे कहर ढा रही हैं। आज दुनिया, जब 'जलवायु आपातकाल' से गुजर रही है, अब तो अंतरिक्ष पर्यटन भी पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा है।

अंतरिक्ष में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के मद्देनजर, इसीलिए पिछले वर्ष जुलाई में 'वर्जिन गैलेक्टिक स्पेस' के मालिक रिचर्ड ब्रैनसन के एक सौ साठ किलोमीटर के 'स्पेस-ट्रेवल' का कड़ा विरोध हुआ। एक ब्रिटिश शोध संस्थान बता रहा है कि पर्यटन के दबावों के चलते जलवायु परिवर्तन से चालीस प्रतिशत तेल-गैस भंडार, छह सौ अरब बैरल तेल तक दुनिया अपनी पहुंच खो सकती है।

अमेरिका के खाड़ी तट पर कच्चे तेल की सबसे बड़ी रिफाइनरी भीषण ठंड में बंद हो जाती है। वेरिस्क मेपलक्राफ्ट के पर्यावरण विश्लेषक रोरी क्लास्बी कहते हैं कि ऐसी घटनाएं भविष्य में और अधिक तीव्र होती जाएंगी। पर्यावरण से खेल रहे उद्योग जगत को ही इसकी सबसे अधिक कीमत चुकानी है। जीवाष्म र्इंधन की निर्भरता ने अलग संकट खड़े कर दिए हैं। युद्ध, प्रदूषण का एक बड़ा कारक बनते जा रहे हैं। सुपरसोनिक जंगी विमान जम कर प्रदूषण फैला रहे हैं।

आइपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज) की रिपोर्ट बताती है कि पर्यटन समृद्धि के लिए भारी प्राकृतिक दोहन, जलवायु आपदा आदि के कारण खाद्य सुरक्षा के खतरे गहराते जा रहे हैं। जलवायु आपदा गंगा, सिंधु, अमु दरिया आदि को जल-अभाव का सामना करना पड़ सकता है। हिमनदों के पिघलने से उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में नई झीलें पैदा होंगी, जो पहाड़ी तटबंध तोड़-फोड़ कर निचले इलाके बर्बाद कर डालेंगी।

ये हालात पहाड़ी क्षेत्रों ही नहीं, नदी घाटी इलाकों, समुद्री तथा तटीय पारिस्थितिकी तंत्र में भी अभी से उथल-पुथल मचाने लगे हैं। मौसम चक्र उलटने-पुलटने, अचानक बरसात, उच्च तापमान के कारण सांस, संक्रामक रोग, मधुमेह, मलेरिया, डेंगू बुखार, डायरिया के मरीजों में भारी इजाफा हो रहा है।

पर्यटन चिंताओं के दौर में, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण अधिवेशन के पांचवें सत्र के दौरान प्लास्टिक कचरे की समस्या पर गहन वैश्विक चर्चा हुई। तब, हमारे यहां पर्यटन के निकष पर, उदयपुर की झील और पहाड़ भी इसके साक्षी बने। भारत समेत दुनिया के एक सौ पचहत्तर देशों ने प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए।

इस दौरान पर्यावरण अनुकूलन के लिए 2024 के अंत तक एक अंतरराष्ट्रीय समझौते का प्रारूप और इसके लिए कोष की प्रक्रिया तैयार कर लेने का निश्चय किया गया। गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यह समझौता किया गया है। एक शोधपत्र में आगाह किया गया है कि इस दौर में हर आदमी का शरीर रोजाना जाने-अनजाने खानपान के दौरान प्लास्टिक के 142 टुकड़े और सांस लेते समय 170 टुकड़े अवशोषित कर लेता है।

जलवायु आपदा और महामारी के बावजूद भारतीय-वैश्विक होटलों की शृंखलाएं पर्यटन क्षेत्र के आर्थिक विकास के माडल रचती जाती हैं। तालाब, पहाड़, बाग-बगीचे, मनोहर अभयारण्य, प्रवासी पक्षियों समेत दुर्लभ जलीय जीव तक, पर्यटन स्थलों पर घरेलू कचरा, पालीथिन बैग, मेडिकल कचरा, पूजा सामग्री, ईद-बकरीद के बाद मांस उच्छिष्ट से बेखबर इस विकास माडल के जबड़े में समाते चले जाते हैं। इसी बीच वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि लाहौल-स्पीति में वाहनों के ब्लैक कार्बन से सदियों पुराने ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पहले, जब वाहनों की अनियंत्रित आवाजाही नहीं होती थी, 'पाउडर बर्फ' गिरती थी, अब पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ने से बारिश होती है।

सवाल है कि पर्यटन अगर विनाश का सबब बन रहा है, तो पहाड़ी गांवों, छोटे-छोटे बाजारों को जीवन दान भी तो इसी से मिलता है। छोटी-छोटी घर-गृहस्थी वाले पहाड़ी क्षेत्रों के करोड़ों लोग आखिर सैलानियों के बिना कैसे गुजर-बसर करें। अर्थव्यवस्था में अब पर्यटन की अहम भूमिका है। उत्तराखंड-हिमाचल से लेकर पूर्वोत्तर के पर्वतीय राज्यों तक की पूरी आर्थिकी इसी पर निर्भर है। सैलानियों की आमद से कई तरह के रोजगार सृजित होते हैं।

इसीलिए पर्यटन लक्ष्य पर नजरें टिकाए फेडरेशन आफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म एंड हास्पिटैलिटी (फेथ) हाल ही में जारी अपने 'दृष्टिपत्र-2035' में साढ़े सात करोड़ पर्यटकों और साढ़े सात अरब घरेलू पर्यटन यात्राओं की उम्मीद करते हुए डेढ़ सौ अरब डालर विदेशी मुद्रा और पंद्रह करोड़ प्रत्यक्ष-परोक्ष रोजगार सृजित करने के सपने देख रहा है। उसके एक दूरदर्शी ताजा दस्तावेज में बाजार उत्कृष्टता, मूल्यवृद्धि नियमन, राष्ट्रीय पर्यटन दृष्टिकोण और निवेश को रफ्तार देने वाले साधन उल्लेखनीय हैं।

वह पर्यटन को समवर्ती सूची में शामिल करने के साथ ही राष्ट्रीय पर्यटन परिषद के गठन की भी सिफारिश कर चुका है। उसने भारतीय पर्यटन की ओर वैश्विक-घरेलू पर्यटन-प्रवाह तेज करने तथा देश में पर्यटन-यात्रा, होटल-रेस्तरां उद्यमियों के संपत्ति सृजन के लिए घरेलू यात्रा, बैठकों, सम्मेलनों, प्रदर्शनियों के लिए यात्रा ऋण जैसी परियोजनाओं के लिए एकल मंजूरी, पर्यटकों की आवाजाही के लिए सुचारु राष्ट्रीय परिवहन प्रणाली का भी सुझाव दिया है।

गौरतलब है कि भारत सरकार के कुल कर संग्रह में ट्रेवल-हास्पिटैलिटी का करीब दस फीसद योगदान है। भारतीय उड़ानें बंद होने का विदेशी विमानन कंपनियां तरह-तरह के गलत फायदे उठा रही हैं। भारत के करीब इकतीस देशों के साथ एयर बबल समझौतों के कारण पिछले एक साल में ही हमारे एयरलाइंस तंत्र पर बीस हजार करोड़ रुपए की कड़ी चोट पड़ चुकी है।

उल्लेखनीय है कि आज पर्यटन विदेशी मुद्रा लाने वाला भारत का तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र बन चुका है। अकेले यही क्षेत्र चार करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरियां देता है। लगभग दो साल पहले ही देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन क्षेत्र का योगदान दो सौ चालीस अरब डालर तक पहुंच गया था। नीति आयोग ने चार साल पहले एक भविष्यवाणी की थी कि 2022 तक भारत की पर्यटन उद्योग से सालाना कमाई पचास अरब डालर तक पहुंच सकती है। इसके लिए भारत वैश्विक पर्यटन में अपनी हिस्सेदारी 1.2 फीसद से बढ़ा कर 3.5 फीसद के स्तर तक ले जाना चाहता है।

फिलहाल, कोरोना के फिर लौटने की सूचनाओं के बीच, रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहने से मसूरी से शिमला-कुफरी-लाहौल स्पीति तक, ऋषिकेश-गंगोत्री से मनाली तक इस मौसम में अंतहीन महंगाई के दलदल से निकलने के लिए बेसब्री से देशी-विदेशी पर्यटकों की बाट जोह रहे आम उद्यमियों, बेरोजगारों की एक बार फिर सांसें अटकने लगी हैं। ऐसे में दिल्ली को 'टूरिज्म स्पाट' बनाने के डायलाग एंड डेवलपमेंट कमीशन के उपाध्यक्ष जेस्मिन शाह के सपनों का क्या होने वाला है। जलवायु आपदा की चिंताओं के बीच पर्यटन क्षेत्र की समृद्धि के लिए आखिर कुछ ऐसा क्या हो सकता है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे, प्रश्न अनुत्तरित है, मसला गंभीर!


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