- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सेना में टूर ऑफ

पिछले सप्ताह उत्तर भारत में बैसाखी पर्व की धूम रही, ढोल, टमक, नगाड़ों की थाप पर भांगड़े-बोलियों के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पंगूड़े, झूले, स्वाद के लिए लच्छे, छोले, बर्फीला गोला, अंदरस्से, पकौड़े, जलेबियां, खरीदने के लिए घरेलू सामान, युवक-युवतियों के दंगल के साथ व्यस्त दिनचर्या, सांझ ढलते क्षेत्रीय संस्कृति से रूबरू करवाते लोक गायकों और फनकारों से गूंजता वातावरण, खुद-ब-खुद ही बड़े जमावड़े का सबब बन जाता है। इन मेलों पर हो रही भीड़ को अपना राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन बनाने की होड़ में नेता कहीं प्रशासन की आड़ में तो कहीं मेला कमेटी की ओर से, मेले में एकत्रित भीड़ को अपनी पार्टी के नाम लिखने की कवायद शुरू करते हैं। मेले में मुख्य अतिथि बनने के इस चलन से राजनीतिक अभिलाषा रखने वाले लोग बिना किसी अन्य मापदंड पर खरा उतरते हुए भी ज्यादातर मौकों पर अनुदान राशि के बल पर अतिथि बन जाते हैं। इनको मेले के आयोजन से जुड़े इतिहास, संस्कृति आदि का ज्ञान लेशमात्र नहीं होता, इसलिए मुख्यातिथि मंच से मेले पर बोलने के बजाय यह अपनी राजनीतिक अभिलाषाओं को जाहिर करना शुरू कर देते हैं।
