सम्पादकीय

अपराधियों की 'सख्त' पहचान

Subhi
30 March 2022 2:04 AM GMT
अपराधियों की सख्त पहचान
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विपक्ष के जबरदस्त हंगामे और मत विभाजन के बाद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक लोकसभा के पटल पर रख दिया गया। यह अप्रत्याशित ही था कि ​विधेयक को प्रस्तुत करने के​ लिए मत विभाजन की स्थिति बन गई।

आदित्य नारायण चोपड़ा; विपक्ष के जबरदस्त हंगामे और मत विभाजन के बाद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक लोकसभा के पटल पर रख दिया गया। यह अप्रत्याशित ही था कि ​विधेयक को प्रस्तुत करने के​ लिए मत विभाजन की स्थिति बन गई। हालांकि सरकार बहुमत में है तो उसे कोई समस्या नहीं आई। सामान्यतः विधेयक पेश करने के लिए मत विभाजन की नौबत नहीं आती। यह विधेयक अपराधियों की यूनीक पहचान से जुड़ा हुआ है, जिसका उद्देश्य अपराधियों की बायोग्राफिक डिटेल्स को सुर​क्षित रखना है। इस विधेयक को लाने का मकसद अपराधियों की पहचान संरक्षित करना है, जो भविष्य में भी काम आ सके। यह विधेयक अपराधियों की पहचान के लिए पुलिस का उनके अंगों और निशानों की माप लेने का अधिकार देता है। इसके तहत अपराधियों की अंगुलियों के निशान, पांवों और हथेली के निशान, फोटोग्राफी, रेटिना, रेटिना स्कैन, जैविक नमूने, हस्ताक्षर और ​लिखावट से जुड़े तमाम सबूतों को संरक्षित रखा जाएगा।अपराधियों की पहचान से जुड़े मामलों की बात करें तो वर्तमान में 'द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920' लागू है। यह काफी ​पुराना है और अंग्रेजों के समय से ही चला आ रहा है। इस कानून की अपनी सीमाएं हैं, जैसा कि इस कानून के तहत यह अपराधियों के केवल ​ फिंगर प्रिंट और फुटप्रिंट लेने की इजाजत है। इसके अलावा मैजिस्ट्रेट के आदेश के बाद फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। कानून तभी सफल होते हैं जब उनमें समय के साथ-साथ बदलाव और संशोधन किए जाएं। वैसे तो मोदी सरकार ने कई कानूनों और नियमों को खत्म किया है। जिनका आज के समय में कोई औचित्य नहीं रहा। अंग्रेजों के जमाने के अनेक कानून अपना महत्व खो चुके हैं। ऐसे कानूनों को अपडेट करना बहुत जरूरी है। विज्ञान के लगातार विकास के चलते जांच और अनुसंधान के मामले में नई प्रौद्यो​गिकी आ चुकी है। संपादकीय :जुगलबंदी अब रिजल्ट की ओर...प. बंगालः हंगामा है क्यूं बरपाइमरानः विदाई का वक्त तयहिन्दू ही अल्पसंख्यकउत्तराखंड में 'समान आचार संहिता'किधर जा रहा है काठमांडौअब फाइलों की बजाय डाटा कम्प्यूटर की फाइलों में रखने की सुविधा है। डाटा संरक्षण का काम पहले से कहीं अधिक हो गया है। भारत में अक्सर लोग पुलिस जांच के तरीके को देखते हुए उसे अंग्रेजों की पुलिस तक करार देते हैं। इसलिए पुलिस को इस ​छवि से बाहर निकालने के लिए नई प्रौद्यो​गिकी को अपनाना बहुत जरूरी है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य कई देशों में हर नागरिक का पूरा डाटा रखा जाता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर ही लोगों के घर पहुंचने से पहले ही उनके ईमेल पर चालान आ जाता है। विदेश जाने वाले यात्री जानते हैं ​कि कई देशों में प्रवेश से पहले हवाई अड्डों पर ही उनके रेटीना और चेहरे के फोटोग्राफ ले ​लिए जाते हैं और नियमों के हिसाब से फिंगर प्रिंट समेत बायोमैट्रिक्स लेकर डाटा सं​रक्षित रख लिया जाता है ताकि अपराध होने की स्थिति में या फिर हादसा होने की​ स्थिति में अपराधियों और पीड़ित की पहचान की जा सके। इस विधेयक का मकसद दोषियों, अपराधियों और हिरासत में ​लिए गए आरोपियों की पहचान से जुड़ा हर रीकार्ड रखना है। विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति जांच के लिए मना करता है तो उसे तीन महीने की कैद या 500 रुपए जुर्माना किया जा सकता है। 102 साल पुराने कानून में बदलाव करना जरूरी भी है और सही भी लेकिन विपक्ष ने इस ​विधेयक को लेकर काफी हो-हल्ला मचाया। कांग्रेस, आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस, बसपा समेत कई अन्य दलों के सांसदों ने विधेयक को लेकर कड़ी आपत्ति जताई। भारत में एक यह धारणा बनी हुई है कि यहां पर कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। जब भी पुलिस या सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार ​िदए जाते हैं तो कानूनों के दुरुपयोग की आशंकाएं भी बनी रहती हैं। देेश के अशांत या उपद्रवग्रस्त इलाकों में सुरक्षा बलों को आफस्पा कानून के तहत दिए गए विशेष अधिकारों के दुरुपयोग की कई घटनाएं सामने भी आ चुकी हैं। विपक्ष ने लोकसभा में आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-21 समेत अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद-21 का मतलब जीवन के अधिकार से है। अनुच्छेद-21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन जीने के अधिकार से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं यानि कार्यपालिका या सरकार किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता में तभी हस्तक्षेप करेगी जब उसके द्वारा किसी कानून का उल्लंघन किया गया हो। विपक्ष ने यह आपत्ति भी जताई कि नए बिल से मानवाधिकार का उल्लंघन होगा। पुराने कानून में फिंगर प्रिंट फोटोग्राफ आदि लेने की इजाजत है। अपराधी या आरोपी के नारको टैस्ट की भी इजाजत है तो नए कानून की क्या जरूरत पड़ गई। विपी की ओर से यह भी कहा गया कि यह विधेयक राइट टू प्राइवेसी का भी उल्लंघन करता है। फिलहाल इस बिल पर जब चर्चा होगी तो गृहमंत्री अमित शाह विपक्ष की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करेंगे। इतना तय है कि डाटा संरक्षण आज की जरूरत है। अपराधियों की पुख्ता पहचान के लिए जांच के नए तरीके भी अपनाना जरूरी है। पकड़ा वही जाएगा जिसने अपराध किया होगा। तो फिर बेवजह हल्ला मचाने का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आ रहा।­आदित्य नारायण चोपड़ा

विपक्ष के जबरदस्त हंगामे और मत विभाजन के बाद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक लोकसभा के पटल पर रख दिया गया। यह अप्रत्याशित ही था कि ​विधेयक को प्रस्तुत करने के​ लिए मत विभाजन की स्थिति बन गई। हालांकि सरकार बहुमत में है तो उसे कोई समस्या नहीं आई। सामान्यतः विधेयक पेश करने के लिए मत विभाजन की नौबत नहीं आती। यह विधेयक अपराधियों की यूनीक पहचान से जुड़ा हुआ है, जिसका उद्देश्य अपराधियों की बायोग्राफिक डिटेल्स को सुर​क्षित रखना है। इस विधेयक को लाने का मकसद अपराधियों की पहचान संरक्षित करना है, जो भविष्य में भी काम आ सके। यह विधेयक अपराधियों की पहचान के लिए पुलिस का उनके अंगों और निशानों की माप लेने का अधिकार देता है। इसके तहत अपराधियों की अंगुलियों के निशान, पांवों और हथेली के निशान, फोटोग्राफी, रेटिना, रेटिना स्कैन, जैविक नमूने, हस्ताक्षर और ​लिखावट से जुड़े तमाम सबूतों को संरक्षित रखा जाएगा।अपराधियों की पहचान से जुड़े मामलों की बात करें तो वर्तमान में 'द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920' लागू है। यह काफी ​पुराना है और अंग्रेजों के समय से ही चला आ रहा है। इस कानून की अपनी सीमाएं हैं, जैसा कि इस कानून के तहत यह अपराधियों के केवल ​ फिंगर प्रिंट और फुटप्रिंट लेने की इजाजत है। इसके अलावा मैजिस्ट्रेट के आदेश के बाद फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। कानून तभी सफल होते हैं जब उनमें समय के साथ-साथ बदलाव और संशोधन किए जाएं। वैसे तो मोदी सरकार ने कई कानूनों और नियमों को खत्म किया है। जिनका आज के समय में कोई औचित्य नहीं रहा। अंग्रेजों के जमाने के अनेक कानून अपना महत्व खो चुके हैं। ऐसे कानूनों को अपडेट करना बहुत जरूरी है। विज्ञान के लगातार विकास के चलते जांच और अनुसंधान के मामले में नई प्रौद्यो​गिकी आ चुकी है। अब फाइलों की बजाय डाटा कम्प्यूटर की फाइलों में रखने की सुविधा है। डाटा संरक्षण का काम पहले से कहीं अधिक हो गया है। भारत में अक्सर लोग पुलिस जांच के तरीके को देखते हुए उसे अंग्रेजों की पुलिस तक करार देते हैं। इसलिए पुलिस को इस ​छवि से बाहर निकालने के लिए नई प्रौद्यो​गिकी को अपनाना बहुत जरूरी है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य कई देशों में हर नागरिक का पूरा डाटा रखा जाता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर ही लोगों के घर पहुंचने से पहले ही उनके ईमेल पर चालान आ जाता है। विदेश जाने वाले यात्री जानते हैं ​कि कई देशों में प्रवेश से पहले हवाई अड्डों पर ही उनके रेटीना और चेहरे के फोटोग्राफ ले ​लिए जाते हैं और नियमों के हिसाब से फिंगर प्रिंट समेत बायोमैट्रिक्स लेकर डाटा सं​रक्षित रख लिया जाता है ताकि अपराध होने की स्थिति में या फिर हादसा होने की​ स्थिति में अपराधियों और पीड़ित की पहचान की जा सके। इस विधेयक का मकसद दोषियों, अपराधियों और हिरासत में ​लिए गए आरोपियों की पहचान से जुड़ा हर रीकार्ड रखना है। विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति जांच के लिए मना करता है तो उसे तीन महीने की कैद या 500 रुपए जुर्माना किया जा सकता है। 102 साल पुराने कानून में बदलाव करना जरूरी भी है और सही भी लेकिन विपक्ष ने इस ​विधेयक को लेकर काफी हो-हल्ला मचाया। कांग्रेस, आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस, बसपा समेत कई अन्य दलों के सांसदों ने विधेयक को लेकर कड़ी आपत्ति जताई। भारत में एक यह धारणा बनी हुई है कि यहां पर कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। जब भी पुलिस या सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार ​िदए जाते हैं तो कानूनों के दुरुपयोग की आशंकाएं भी बनी रहती हैं। देेश के अशांत या उपद्रवग्रस्त इलाकों में सुरक्षा बलों को आफस्पा कानून के तहत दिए गए विशेष अधिकारों के दुरुपयोग की कई घटनाएं सामने भी आ चुकी हैं। विपक्ष ने लोकसभा में आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-21 समेत अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद-21 का मतलब जीवन के अधिकार से है। अनुच्छेद-21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन जीने के अधिकार से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं यानि कार्यपालिका या सरकार किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता में तभी हस्तक्षेप करेगी जब उसके द्वारा किसी कानून का उल्लंघन किया गया हो। विपक्ष ने यह आपत्ति भी जताई कि नए बिल से मानवाधिकार का उल्लंघन होगा। पुराने कानून में फिंगर प्रिंट फोटोग्राफ आदि लेने की इजाजत है। अपराधी या आरोपी के नारको टैस्ट की भी इजाजत है तो नए कानून की क्या जरूरत पड़ गई। विपी की ओर से यह भी कहा गया कि यह विधेयक राइट टू प्राइवेसी का भी उल्लंघन करता है। फिलहाल इस बिल पर जब चर्चा होगी तो गृहमंत्री अमित शाह विपक्ष की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करेंगे। इतना तय है कि डाटा संरक्षण आज की जरूरत है। अपराधियों की पुख्ता पहचान के लिए जांच के नए तरीके भी अपनाना जरूरी है। पकड़ा वही जाएगा जिसने अपराध किया होगा। तो फिर बेवजह हल्ला मचाने का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आ रहा।­आदित्य नारायण चोपड़ा

विपक्ष के जबरदस्त हंगामे और मत विभाजन के बाद आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक लोकसभा के पटल पर रख दिया गया। यह अप्रत्याशित ही था कि ​विधेयक को प्रस्तुत करने के​ लिए मत विभाजन की स्थिति बन गई। हालांकि सरकार बहुमत में है तो उसे कोई समस्या नहीं आई। सामान्यतः विधेयक पेश करने के लिए मत विभाजन की नौबत नहीं आती। यह विधेयक अपराधियों की यूनीक पहचान से जुड़ा हुआ है, जिसका उद्देश्य अपराधियों की बायोग्राफिक डिटेल्स को सुर​क्षित रखना है। इस विधेयक को लाने का मकसद अपराधियों की पहचान संरक्षित करना है, जो भविष्य में भी काम आ सके। यह विधेयक अपराधियों की पहचान के लिए पुलिस का उनके अंगों और निशानों की माप लेने का अधिकार देता है। इसके तहत अपराधियों की अंगुलियों के निशान, पांवों और हथेली के निशान, फोटोग्राफी, रेटिना, रेटिना स्कैन, जैविक नमूने, हस्ताक्षर और ​लिखावट से जुड़े तमाम सबूतों को संरक्षित रखा जाएगा।अपराधियों की पहचान से जुड़े मामलों की बात करें तो वर्तमान में 'द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920' लागू है। यह काफी ​पुराना है और अंग्रेजों के समय से ही चला आ रहा है। इस कानून की अपनी सीमाएं हैं, जैसा कि इस कानून के तहत यह अपराधियों के केवल ​ फिंगर प्रिंट और फुटप्रिंट लेने की इजाजत है। इसके अलावा मैजिस्ट्रेट के आदेश के बाद फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। कानून तभी सफल होते हैं जब उनमें समय के साथ-साथ बदलाव और संशोधन किए जाएं। वैसे तो मोदी सरकार ने कई कानूनों और नियमों को खत्म किया है। जिनका आज के समय में कोई औचित्य नहीं रहा। अंग्रेजों के जमाने के अनेक कानून अपना महत्व खो चुके हैं। ऐसे कानूनों को अपडेट करना बहुत जरूरी है। विज्ञान के लगातार विकास के चलते जांच और अनुसंधान के मामले में नई प्रौद्यो​गिकी आ चुकी है। अब फाइलों की बजाय डाटा कम्प्यूटर की फाइलों में रखने की सुविधा है। डाटा संरक्षण का काम पहले से कहीं अधिक हो गया है। भारत में अक्सर लोग पुलिस जांच के तरीके को देखते हुए उसे अंग्रेजों की पुलिस तक करार देते हैं। इसलिए पुलिस को इस ​छवि से बाहर निकालने के लिए नई प्रौद्यो​गिकी को अपनाना बहुत जरूरी है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य कई देशों में हर नागरिक का पूरा डाटा रखा जाता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने पर ही लोगों के घर पहुंचने से पहले ही उनके ईमेल पर चालान आ जाता है। विदेश जाने वाले यात्री जानते हैं ​कि कई देशों में प्रवेश से पहले हवाई अड्डों पर ही उनके रेटीना और चेहरे के फोटोग्राफ ले ​लिए जाते हैं और नियमों के हिसाब से फिंगर प्रिंट समेत बायोमैट्रिक्स लेकर डाटा सं​रक्षित रख लिया जाता है ताकि अपराध होने की स्थिति में या फिर हादसा होने की​ स्थिति में अपराधियों और पीड़ित की पहचान की जा सके। इस विधेयक का मकसद दोषियों, अपराधियों और हिरासत में ​लिए गए आरोपियों की पहचान से जुड़ा हर रीकार्ड रखना है। विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति जांच के लिए मना करता है तो उसे तीन महीने की कैद या 500 रुपए जुर्माना किया जा सकता है। 102 साल पुराने कानून में बदलाव करना जरूरी भी है और सही भी लेकिन विपक्ष ने इस ​विधेयक को लेकर काफी हो-हल्ला मचाया। कांग्रेस, आरएसपी, तृणमूल कांग्रेस, बसपा समेत कई अन्य दलों के सांसदों ने विधेयक को लेकर कड़ी आपत्ति जताई। भारत में एक यह धारणा बनी हुई है कि यहां पर कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। जब भी पुलिस या सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार ​िदए जाते हैं तो कानूनों के दुरुपयोग की आशंकाएं भी बनी रहती हैं। देेश के अशांत या उपद्रवग्रस्त इलाकों में सुरक्षा बलों को आफस्पा कानून के तहत दिए गए विशेष अधिकारों के दुरुपयोग की कई घटनाएं सामने भी आ चुकी हैं। विपक्ष ने लोकसभा में आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-21 समेत अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद-21 का मतलब जीवन के अधिकार से है। अनुच्छेद-21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन जीने के अधिकार से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं यानि कार्यपालिका या सरकार किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता में तभी हस्तक्षेप करेगी जब उसके द्वारा किसी कानून का उल्लंघन किया गया हो। विपक्ष ने यह आपत्ति भी जताई कि नए बिल से मानवाधिकार का उल्लंघन होगा। पुराने कानून में फिंगर प्रिंट फोटोग्राफ आदि लेने की इजाजत है। अपराधी या आरोपी के नारको टैस्ट की भी इजाजत है तो नए कानून की क्या जरूरत पड़ गई। विपी की ओर से यह भी कहा गया कि यह विधेयक राइट टू प्राइवेसी का भी उल्लंघन करता है। फिलहाल इस बिल पर जब चर्चा होगी तो गृहमंत्री अमित शाह विपक्ष की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करेंगे। इतना तय है कि डाटा संरक्षण आज की जरूरत है। अपराधियों की पुख्ता पहचान के लिए जांच के नए तरीके भी अपनाना जरूरी है। पकड़ा वही जाएगा जिसने अपराध किया होगा। तो फिर बेवजह हल्ला मचाने का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आ रहा।­

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