सम्पादकीय

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते सरकार के सामने अर्थव्यवस्था को उबारने की कठिन चुनौती

Gulabi
18 Oct 2020 3:07 AM GMT
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते सरकार के सामने अर्थव्यवस्था को उबारने की कठिन चुनौती
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विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते दुनिया गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के चलते दुनिया गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। चाहे विकसित देश हों या विकासशील अथवा गरीब, सभी चीन से आई इस महामारी के चलते आर्थिक ठहराव से ग्रस्त हैं। भारत में भी इस आर्थिक ठहराव का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। इसी के चलते भारतीय रिजर्व बैंक ने माना कि देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज होगी। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने भी कहा कि इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था करीब साढ़े दस प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है। भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में इतनी सिकुड़न एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना केंद्र के साथ राज्य सरकारों को मिलकर करना होगा।

महामारी फैलाने वाले चीन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में दबदबा बना रहेगा: आइएमएफ

आइएमएफ के अनुसार जहां विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी, वहीं दुनिया भर में महामारी फैलाने वाले चीन का वैश्विक अर्थव्यवस्था में दबदबा बना रहेगा। यानी दुनिया के प्रमुख देश चीन को कठघरे में खड़ा करने में सक्षम नहीं हुए। महामारी फैलाने में चीन की संदिग्ध भूमिका और लद्दाख में चीनी सेना के अतिक्रमणकारी रवैये को देखते हुए भारत ने भी कहा था कि वह चीनी वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाएगा, लेकिन इस मोर्चे पर कोई खास सफलता मिलती नहीं दिख रही है। भारत ने चीन के खिलाफ कुछ प्रतीकात्मक कदम अवश्य उठाए हैं, लेकिन यह साफ है कि अभी ऐसे उपाय करने शेष हैं, जिनसे चीन की सेहत पर असर पड़े और वहां से होने वाला आयात वास्तव में घटे।

लॉकडाउन के दौर में की गईं घोषणाओं का अर्थव्यवस्था पर पर्याप्त असर नहीं दिखा

महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौर में ही एक के बाद एक कई घोषणाएं कीं, लेकिन उनका पर्याप्त असर नहीं दिखा। उद्योग जगत के रुख से यह स्पष्ट है कि उसे अपेक्षित रियायत नहीं मिली। केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये का जो पैकेज घोषित किया था, उसकी चर्चा तो बहुत हुई, लेकिन उसका उतना असर नहीं दिखा जितना सोचा गया था। अभी हाल में केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कुछ और कदम उठाए हैं। इनमें एक कदम केंद्रीय कर्मचारियों को अवकाश यात्रा रियायत (एलटीसी) के एवज में नकद वाउचर देने का है। इस वाउचर का इस्तेमाल ऐसी वस्तुओं की खरीद पर किया जा सकता है, जिन पर जीएसटी की दर 12 प्रतिशत से अधिक हो। इसमें संदेह है कि इससे अर्थव्यवस्था को कोई विशेष बल मिल सकेगा।

लोन मोरेटोरियम की घोषणा के बाद ब्याज पर ब्याज लेना सही नहीं होगा

केंद्र सरकार को कुछ और उपाय करने होंगे। इन उपायों पर ध्यान देने के साथ ही उसे लोन मोरेटोरियम के मसले को भी सुलझाना है। उच्चतम न्यायालय ने सरकार से ब्याज पर ब्याज न लेने के अपने फैसले को जल्द लागू करने को कहा है। नि:संदेह मोरेटोरियम की घोषणा के बाद ब्याज पर ब्याज लेना सही नहीं होगा। यदि ऐसा किया जाएगा तो जिन लोगों ने लोन ले रखे हैं, उनकी मुसीबत बढ़ जाएगी। ऐसे लोग पहले से ही महामारी के चलते त्रस्त हैं। चूंकि नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है इसलिए यह माना जा रहा है कि दिवाली तक खरीदारी का सिलसिला कायम रहेगा और इससे अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी।

कोरोना महामारी लंबी खिचेगी

जब महामारी के दौरान देश लॉकडाउन में गया था, तब अर्थशास्त्रियों और साथ ही कंपनियों का मानना था कि नवरात्रि तक अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। तब यह अनुमान नहीं था कि महामारी इतनी लंबी खिचेगी। हालांकि कोरोना मरीजों की संख्या घट रही है और संक्रमण की चपेट में आने वाले अधिसंख्य लोग ठीक हो जा रहे हैं, लेकिन प्रतिदिन लोग जान भी गंवा रहे हैं और अभी यह कहना कठिन है कि इससे छुटकारा कब मिलेगा। कोरोना के कारण होने वाली मौतों के मामले में स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि जितने भी लोगों की मौतें हुई हैं उनमें साठ प्रतिशत ऐसे थे, जिन्हें पहले से गंभीर बीमारियां थीं।

सर्दियों में कोरोना संक्रमण तेज हो सकता है

देश की विशाल आबादी को देखते हुए स्वस्थ व्यक्तियों की मौतों का आंकड़ा बहुत भयावह नहीं। इसके बावजूद सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इसलिए और भी, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि सर्दियों में कोरोना संक्रमण तेज हो सकता है। यह अच्छा है कि केंद्र ने कोरोना से बचाव के लिए जागरूकता अभियान तेज कर दिया है, पर यह तभी सफल होगा जब लोग सावधानी बरतेंगे और सरकारी तंत्र से सहयोग करेंगे।

शारीरिक दूरी का उल्लंघन: नवरात्रि के पहले दिन देश के तमाम मंदिरों में भीड़ दिखी

यह ठीक नहीं कि नवरात्रि के पहले दिन देश के तमाम मंदिरों में भीड़ दिखी और वहां शारीरिक दूरी का उल्लंघन होता भी दिखा। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि अब भी सेहत के प्रति सतर्क रहना है और शारीरिक दूरी का पालन करने के साथ मास्क का सही तरह इस्तेमाल करना है। ऐसा करके ही इस महामारी से बचा जा सकता है और कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आने की आशंका को दूर किया जा सकता है। दोबारा लॉकडाउन की नौबत नहीं आने देनी चाहिए, क्योंकि तभी अर्थव्यवस्था को गति देने वाले उपायों को कारगर बनाया जा सकता है। यह सभी को समझना होगा कि अर्थव्यवस्था जल्द से जल्द वापस पटरी पर तभी आ सकती है, जब महामारी नियंत्रित रहे।

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आइएमएफ के सुझावों पर सरकार को गौर करना चाहिए

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आइएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथन ने जो सुझाव दिए हैं, उन पर सरकार को गौर करना चाहिए, खासकर ग्लोबल सप्लाई चेन को सुदृढ़ करने पर। उनका यह कहना सही है कि ग्लोबल सप्लाई चेन के बगैर आयात और निर्यात में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिलेगी। इसी तरह कुछ ऐसा भी करने की जरूरत है जिससे गरीबों और मजदूरों के हाथों में पैसा पहुंचे। सरकार ने लॉकडाउन की अवधि में ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के खाते में रकम डाली और मुफ्त खाद्यान्न योजना चलाई। इन योजनाओं की छतरी तले शहरी गरीबों और प्रवासी मजदूरों को भी लाना होगा।

लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को करना होगा तेजी से काम

लंबे लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ, उसे पूरा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को तेजी से काम करना होगा। यह अच्छा हुआ कि केंद्र सरकार ने राज्यों की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को देखते हुए जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए खुद ही कर्ज लेने का फैसला लिया, लेकिन इसी के साथ उसे बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के साथ आधारभूत ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा रेडीमेड गारमेंट उद्योग को भी सहारा देना चाहिए। ऑटो सेक्टर कुछ हद तक ढर्रे पर आता दिख रहा है, लेकिन इसमें संशय है कि मांग लंबे समय तक बनी रहेगी। ऐसे में उचित यह होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें उन सेक्टरों पर विशेष ध्यान दें, जिनसे आम आदमी को रोजगार भी मिल सकें।

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