सम्पादकीय

सफलता की पैर छुआई

Rani Sahu
15 May 2022 7:10 PM GMT
सफलता की पैर छुआई
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चरण स्पर्श और पैर छुआई में अंतर स्पष्ट है

चरण स्पर्श और पैर छुआई में अंतर स्पष्ट है। जब आदर भाव या सांस्कृतिक प्रभाव से कोई झुक कर प्रणाम करता है, तो आशीर्वाद के फलक पर किसी के चरण अमूल्य हो जाते हैं। यह स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया रही है और सदियों से हम भारतीय लोगों का चेहरा पढ़ने के बजाय बुजुर्गों या बड़े सगे-संबंधियों के पांव देखते रहते हैं। गुरु परंपरा में भी तर्क या प्रश्न केंद्रित विद्या पांवों के स्पर्श से ही फलती-फूलती रही, लेकिन अब पैर छुआई आगे बढ़ने का शिष्टाचार है। यह मंत्र है और यहीं तंत्र है। पैरा छुआई प्रत्यक्ष या परोक्ष में वर्तमान प्रगति का सूचकांक है। वैसे आपाधापी, प्रतिस्पर्धा, प्रतिष्ठा, आगे बढ़ने की ठसक के कारण हर आदमी का एक सूचकांक होता है और इसके लिए पैरा छुआई अब प्रगति के शेयर बाजार की तरह मदद करती है। राजनीति हो, स्कूल में बच्चों की पढ़ाई हो, साहित्य में लेखक की ऊंचाई हो या मोहल्ले में दुकानदार की कमाई हो, इसके पीछे पैर छुआई का जादू चलता है। जैसे कल तक हर सफल व्यक्ति के पीछे औरत थी, आज हर सफलता के पीछे पैर छुआई है। इससे पहले कि आप किसी संपन्न आदमी के पैर छूएं, यह जरूर सोचें कि आखिर उसने कितनी बार किसकी पैर छुआई की होगी।

निश्चित रूप से आज जो आपसे ऊपर है या जो पैर छुआई के बिना मुस्कराता नहीं, कल वह भी इसी कतार में था। वैसे अपने देश में मुफ्त में राशन से कहीं बड़ी कतार पैर छुआई की है। हर पुरस्कार भी तो पैर छुआई है। जिंदगी में दूसरे के पैरों पर नजर रखो, न जाने कब ये काबिल हो जाएं। अपने पांव के कारण भले ही कोई नाकाबिल रहे, लेकिन जिस दिन दूसरे के पैर पकड़ में आ जाएं, सफलता का मार्ग बन जाता है। अब तो लेखक और पाठक के बीच संपादक के पैर अड़ रहे हैं। जो पहले छपा या आज प्रकाशित हो रहा है, कहीं न कहीं किसी के पांव का स्पर्श भी तो है। अगर देवता पैर छुआई से प्रसन्न हो सकते हैं, तो इसी फार्मूले पर नेता, बॉस, संपादक और रिसर्च गाइड क्यों नहीं। दरअसल इनसान की मुस्कराहट अब पांव में फंसी है। अपने आसपास देख लीजिए जिसका चेहरा पसंद नहीं, पांव पकड़ने पड़ते हैं।
जिसकी जुबान ठीक नहीं, पांव ठीक-ठाक दिखाई देते हैं। पैर छूने का भी अपना एक भाईचारा है, विचारधारा और विमर्श है। निश्चित रूप से पैर छूने वाला अधिक सौम्य और विचारवान नजर आने लगा है। इसी तरह हर पोस्टर के पांव राजनीति के पालने में नजर आते हैं। देश में अतिक्रमण के पीछे कोई न कोई पोस्टर खड़ा रहता है, अंतर सिर्फ इतना है कि जिस किसी ने सत्ता के पांव इसमें देख लिए, समाज में वैध हो जाता है। इसलिए जिसने समय पर पैर छुआई नहीं की, घोषित तौर पर अवैध हो जाएगा। ढूंढिए अपने आसपास ऐसे लंबे पांव, जिन्हें छूकर आप चलते रहेंगे, जैसे देश चलता आ रहा है। देश खुद को चलाने के लिए जहां पैर छुआई कर रहा हो, वहां आम आदमी को अपने पांव बचाने के लिए कहीं तो ऐसे पैर छूने होंगे, जो इस समय चल रहे हों। अस्थियों के पांव नहीं होते, वरना अतीत के नेताओं के पोस्टर आज भी पैर छुआई के काम आते। वक्त बदल गया है, मौके की नजाकत बदल गई, लेकिन किसी के पैर आज भी आपको झुकाने के लिए इतने सक्षम हैं कि एक न एक दिन पैर छुआई करनी ही पड़ेगी। व्यवस्था इसी का नाम है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu

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