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- सफलता की पैर छुआई

चरण स्पर्श और पैर छुआई में अंतर स्पष्ट है। जब आदर भाव या सांस्कृतिक प्रभाव से कोई झुक कर प्रणाम करता है, तो आशीर्वाद के फलक पर किसी के चरण अमूल्य हो जाते हैं। यह स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया रही है और सदियों से हम भारतीय लोगों का चेहरा पढ़ने के बजाय बुजुर्गों या बड़े सगे-संबंधियों के पांव देखते रहते हैं। गुरु परंपरा में भी तर्क या प्रश्न केंद्रित विद्या पांवों के स्पर्श से ही फलती-फूलती रही, लेकिन अब पैर छुआई आगे बढ़ने का शिष्टाचार है। यह मंत्र है और यहीं तंत्र है। पैरा छुआई प्रत्यक्ष या परोक्ष में वर्तमान प्रगति का सूचकांक है। वैसे आपाधापी, प्रतिस्पर्धा, प्रतिष्ठा, आगे बढ़ने की ठसक के कारण हर आदमी का एक सूचकांक होता है और इसके लिए पैरा छुआई अब प्रगति के शेयर बाजार की तरह मदद करती है। राजनीति हो, स्कूल में बच्चों की पढ़ाई हो, साहित्य में लेखक की ऊंचाई हो या मोहल्ले में दुकानदार की कमाई हो, इसके पीछे पैर छुआई का जादू चलता है। जैसे कल तक हर सफल व्यक्ति के पीछे औरत थी, आज हर सफलता के पीछे पैर छुआई है। इससे पहले कि आप किसी संपन्न आदमी के पैर छूएं, यह जरूर सोचें कि आखिर उसने कितनी बार किसकी पैर छुआई की होगी।
