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- टमाटर व हमारी जिंदगी
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By: divyahimachal
इन दिनों मीडिया में छाए हुए हैं लाल टमाटर! लाल टमाटर दिन प्रतिदिन लाल हुआ जा रहा है। कसम से जब सब्जी खरीदने रेहड़ी पर खड़ा होता हूं तो लाल टमाटर मुझे घूर रहे होते हैं, जैसे पूछ रहे हों, अबे इतनी औकात है तेरी कि मुझे छू भी सके? गलती से भी छू न लेना बहुत तेज भाव हैं मेरे! और मैं सिर्फ देखता रह जाता हूं जैसे कोई गरीब आशिक अपनी अमीर माशूका को देख देख कर बस आहें भरता रह जाता है! और माशूका मुस्कुराती बाय-बाय करती चली जाती है। ऐसे ही लाल टमाटर मेरे साथ कर रहे हैं। बाय-बाय कर रेहड़ी वाला यह कहकर चला जाता है, बस, बाबू जी! आपने खरीदना तो कुछ है नहीं, मेरा टाइम क्यों खराब कर रहे हो ऊपर से! मैं खाली हाथ घर लौट आता हूं। पता नहीं कब वह दिन आएगा जिस दिन यह लाल टमाटर मेरे घर प्रवेश करेगा? सच, उस दिन मैं इसके स्वागत में आरती उतारूंगा और घी के दीये जलाऊंगा। सबसे पहले वंदनवार सजाऊंगा लाल टमाटर के स्वागत के लिए! वैसे रेहड़ी पर लाल टमाटर की यह आवभगत देखकर बेचारा प्याज बुरी तरह अपमानित महसूस करता है और कहता भी है, अबे लाल टमाटर दो चार साल पहले तुझे कोई नहीं पूछता था। याद है मेरी कीमत भी कीमती से कीमती होती चली गयी थी और लोग ऐसे खरीदते थे जैसे सोना खरीद रहे हों! रेहड़ी वाला भी मुझे ऐसे ही तोलता था जैसे सुनार सोना छोटी सी तुला में रखकर दे रहा हो! प्याज टमाटर को धमकाते कहता है कि अरे! इतना भी न इतरा! सब पर ये दिन आते हैं! जैसे सभी युवा होते हैं और अच्छे लगते हैं! इसी तरह तू भी समझ ले जवानी के दिन चार! जैसे महाकवि निराला ने भी कहा था, अबे सुन बे गुलाब! इतना मत इतरा! बस इतराना छोडक़र अपने अंजाम की सोच! वे दिन भी आयेंगे जब गला सड़ा कहकर यह रेहड़ी वाला ही तुझे बीच सडक़ फेंक कर चलता बनेगा कि यदि यह लाल टमाटर मेरी रेहड़ी पर रहा तो दूसरी चीजें भी कोई नहीं खरीदेगा! वैसे कभी प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर ही एक पूर्व महिला प्रधानमंत्री ने चुनाव का मुद्दा बनाया था और वे चुनाव जीत गयी थीं।
आज कोई भी राजनीतिक दल न लाल टमाटर और न ही प्याज को मुद्दा बना रहा है। जब गरीब आदमी के मुद्दे ही नहीं उठाओगे तो चुनाव कैसे जीतोगे? बस। सब चुपचाप इसकी लाली देख देखकर आहें भर रहे हैं। कभी चीनी भी ब्लैक होने लगी थी। यह हमारे देश में छोटी छोटी चीज़ें एकदम कैसे आसमान छूने लगती हैं, यह रहस्य आम आदमी समझ नहीं पाता। चीनी की बढ़ती कीमतों के लिये कभी महाराष्ट्र के एक बड़े नेता को भी लोगों ने जी भर कर कोसा था। वे चीनी मिलों के बल पर ही राजनीति करते आये और कृषि मंत्री रहते भी कहते थे कि चीनी के भाव कैसे कम करूं! ये आवश्यक और रसोई की श्रृंगार वस्तुएं कैसे एकाएक रसोई से गायब होने लगती हैं? कभी प्याज तो कभी टमाटर तो कभी चीनी और अमिताभ बच्चन फिल्म लेकर आ जाते हैं- चीनी कम! कोई फिल्म निर्माता ऐसी फिल्म बनायेगा -टमाटर कम ! प्याज कम! हां! धर्मेंद्र का मुक्के से प्याज तोडऩे का स्टाइल जरूर मशहूर हुआ और लोगों ने ऐसे ही प्याज मुक्के मार कर खाने शुरू कर दिए थे।
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Rani Sahu
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