सम्पादकीय

इंटरनेट का दायरा बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है इसका अलग-अलग लैंग्‍वेज में होना

Gulabi
10 Dec 2021 11:28 AM GMT
इंटरनेट का दायरा बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है इसका अलग-अलग लैंग्‍वेज में होना
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इंटरनेट का दायरा बढ़ाने
अली खान। आज भारत की बड़ी आबादी इंटरनेट के उपयोग से इसीलिए वंचित है, क्योंकि वह केवल क्षेत्रीय भाषाओं से इत्तेफाक रखती है। ऐसे में सभी लोगों तक इंटरनेट की पहुंच और इसके इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए बहुभाषी इंटरनेट की आवश्यकता है। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु केंद्र सरकार इंटरनेट को बहुभाषी बनाने के लिए एक योजना ला रही है। इसकी जानकारी इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने दी है। उन्होंने बताया है कि केंद्र सरकार उन 40 करोड़ भारतीयों को इंटरनेट से जोड़ने जा रही है, जो अभी तक इसका उपयोग नहीं करते हैं।
उल्लेखनीय है कि आज इंटरनेट पर अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। वल्र्ड वाइड वेब पर सबसे अधिक देखी जाने वाली वेबसाइटों के आधे से अधिक होम पेज अंग्रेजी में हैं।चूंकि नई शिक्षा नीति भी क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करती है। लिहाजा यह जरूरी है कि डिजिटल समावेशन सुनिश्चित करने के लिए इंटरनेट के साथ-साथ प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म क्षेत्रीय भाषाओं का समर्थन करें। बहुभाषी इंटरनेट के माध्यम से हम 40 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को जोड़ सकते हैं।
पिछले साल कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण देश और विदेश में लाकडाउन लग गया था, जिसकी वजह से सभी शिक्षण संस्थाएं बंद हो गई थीं। फिर मजबूरी में बच्चों और शिक्षकों ने पढ़ाई के लिए आनलाइन शिक्षा को एक माध्यम बनाया। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आज के समय में इंटरनेट प्राथमिक आवश्यकता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक और विकासशील देश में इंटरनेट का प्रसार सभी लोगों तक होना बहुत जरूरी है। आज देश की 56 करोड़ आबादी की इंटरनेट तक पहुंच है, लेकिन इससे भी अधिक आबादी इंटरनेट के इस्तेमाल से दूर है।
इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि आने वाले दो वर्षो के भीतर दस करोड़ और आबादी इंटरनेट से जुड़ेगी। फिर भी देश की आधी आबादी इंटरनेट के इस्तेमाल से वंचित रहेगी। इसमें सबसे बड़ी बाधा भाषा से जुड़ी हुई है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक आनलाइन स्टोर से खरीदारी करने वाले उपभोक्ता आमतौर पर अपनी मूल भाषा में साइट से खरीदना पसंद करते हैं। उनकी मूल भाषा इसमें खासी मददगार साबित होती है।
एक अन्य अनुसंधान से पता चलता है कि 56.2 प्रतिशत से अधिक उपभोक्ता वेबसाइट पर उपलब्ध अपनी मूल भाषा में ही भुगतान करने को लेकर अधिक सहज होते हैं। जब लोग वेबसाइट में सामग्री को पढ़ लेते हैं और समझ लेते हैं तो उनका विश्वास बढ़ जाता है। ऐसे में भाषा जैसी बाधा को दूर करने की जरूरत को समझते हुए सरकार की पहल सराहनीय है। अब यही उम्मीद की जा सकती है कि यह पहल देश के आर्थिक, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास में बड़ा योगदान देगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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