सम्पादकीय

आंदोलन को कुचलना है

Gulabi
5 Oct 2021 5:32 PM GMT
आंदोलन को कुचलना है
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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जो घटना हुई

जिस समय लखीमपुर-खीरी की घटना हुई, उसी समय हरियाणा के मुख्यमंत्री का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे हरियाणा में भाजपा कार्यकर्ताओं को लाठी उठा कर किसानों के साथ 'जैसे को तैसा' व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करते सुने गए। ये घटनाएं बताती हैं कि भाजपा नेतृत्व बेसब्र हो रहा है।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जो घटना हुई, उससे देश के वे लोग खुद को कुचला गया महसूस कर रहे हैं, जिनका विवेक और संवेदनशीलता अभी जिंदा है। केंद्र में मंत्री पद पर बैठे व्यक्ति का बेटा लोकलाज की इस तरह धज्जियां उड़ाते हुए अपने पिता की धमकी को अमली जामा पहना देगा, सचमुच इसकी कल्पना भी मुश्किल थी। पिता यानी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी ने कुछ ही रोज पहले कहा था कि अगर किसान नहीं सुधरे, तो वे मिनटों में उन्हें सुधार सकते हैँ। जिस समय लखीमपुर-खीरी की घटना हुई, उसी समय हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे हरियाणा में भाजपा कार्यकर्ताओं को लाठी उठा कर किसानों के साथ 'जैसे को तैसा' व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करते सुने गए। ये घटनाएं यह तो जरूर बताती हैं कि किसान आंदोलन के बरक्स भाजपा नेतृत्व का सब्र टूट रहा है। उनकी उपेक्षा और आंदोलन को बदनाम करने की तमाम कोशिशों के बावजूद आंदोलनकारी किसानों का दम नहीं टूटा है।
दरअसल, भाजपा नेताओं को तो छोड़िए, जो लोग किसान आंदोलन के समर्थक हैं, उन्हें भी आशा नहीं थी कि ये आंदोलन इतने लंबे समय इतनी ताकत के साथ जारी रह जाएगा। तो चूंकि किसान आंदोलन थकान और नाउम्मीदी के कारण नहीं मरा, तो अब ऐसा लगता है कि सरकारी संरक्षण में अपने 'लोगों' के हाथों आंदोलन को कुचलने की बात सत्ताधारी नेताओं के मन में घुमड़ रही है। घुमड़ ही नहीं रही है, बल्कि उसे अमली जामा भी पहनाया जाने लगा है। भाजपा नेता जिस पॉलिटिकल इकॉनमी की गिरफ्त में हैं, उसमें उन्हें तीनों कृषि कानून वापस लेना संभव नहीं लगता होगा। फिर इससे झुकने वाली सरकार की छवि बनने का भी उन्हें डर होगा, जिसे शायद उनका अहं पचा नहीं पाएगा। दूसरी तरफ किसानों के सामने जीवन-मरण का सवाल है। उन्हें कृषि कानूनों के प्रभाव से स्लो डेथ या लड़ते-लड़ते मरने में से किसी एक का चुनाव करना है। अगर देश में लोकतांत्रिक भावना जीवित होती, तो ये गतिरोध इस सीमा तक नहीं पहुंचता। शासन चलाने के जनादेश का सम्मान करते हुए सरकार कोई सम्मानजनक समाधान निकाल लेती। लेकिन चूंकि वैसी स्थिति नहीं है, तो उसे लाठी से 'जैसे को तैसा' करने और गाड़ियों के चक्कों तले किसानों को रौंदने का तरीका अपनाना पड़ रहा है। इसकी बलि देश का विवेक चढ़ रहा है।
नया इण्डिया
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