सम्पादकीय

टूटी कड़ियां जोड़ने के लिए

Subhi
7 Oct 2022 6:15 AM GMT
टूटी कड़ियां जोड़ने के लिए
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उनकी धमाचौकड़ी, बतकही और दौड़-धूप से लंबे अर्से से वीरान पड़ी कक्षाएं चहचहाने लगी हैं। लेकिन इन सबके बीच बच्चों की पढ़ाई संबंधी परेशानियां, उनकी असहजता और अरुचि भी साफ दिखने लगी है। लंबे अरसे तक स्कूलों से दूरी ने उनकी पढ़ाई पर बहुत नकारात्मक असर डाला है।

संगीता सहाय: उनकी धमाचौकड़ी, बतकही और दौड़-धूप से लंबे अर्से से वीरान पड़ी कक्षाएं चहचहाने लगी हैं। लेकिन इन सबके बीच बच्चों की पढ़ाई संबंधी परेशानियां, उनकी असहजता और अरुचि भी साफ दिखने लगी है। लंबे अरसे तक स्कूलों से दूरी ने उनकी पढ़ाई पर बहुत नकारात्मक असर डाला है।

हालांकि कोरोना के दौर ने शिक्षण के हर प्रक्रम को चोटिल किया है, मगर सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों की पढ़ाई को सर्वाधिक मार पहुंची। आमतौर पर आनलाइन पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं होने, शिक्षण के अन्य साधनों की अनुपस्थिति, घर के सदस्यों के कम पढ़े-लिखे होने और उनके अनवरत रोजी-रोटी की चिंता में ही लगे रहने की वजह से ये बच्चे इस दौरान पढ़ाई से लगभग दूर हो गए।

एनसीईआरटी की ओर से मार्च, 2020 से लेकर फरवरी, 2021 के दौरान सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों के बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पैंसठ फीसद बच्चों की लिखने की आदत छूट गई है। बच्चे मौखिक रूप से प्रश्नों का जवाब तो दे रहे हैं, पर लिखना उनके लिए मुश्किल हो गया है। यूनेस्को, यूनिसेफ और विश्व बैंक की संयुक्त रिपोर्ट 'स्टेट आफ ग्लोबल एजुकेशन क्राइसिस : ए पाथ टु रिकवरी' के अनुसार, महामारी के दौरान दुनिया के देशों में स्कूल औसत 224 दिन या साढ़े सात महीने तक बंद रहे, लेकिन भारत के राज्यों में स्कूल करीब सत्रह से उन्नीस महीनों के लिए बंद रहे।

स्कूलबंदी के कारण कुछ बच्चों की बीच में पढ़ाई छूटी, तो कुछ की शुरुआत ही नहीं होने के कारण उनके साल बर्बाद हुए। दोनों ही परिस्थितियों ने हमारे नौनिहालों के शैक्षिक विकास में अवरोध खड़ा किया। स्कूल खुलने के बाद भी अधिकतर बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि, लिखने की क्षमता का कमजोर होना, अशुद्धियां, धीमी गति, खराब हस्तलेखन आदि समस्याओं से हर रोज रूबरू होना पड़ रहा है।

गौरतलब है कि एक महीने स्कूल बंद रहने पर बच्चों की सीखने की क्षमता दो महीने पीछे चली जाती है। इस लिहाज से स्कूल बंदी के दौर ने बच्चों की पढ़ाई करीब तीन साल पीछे धकेल दिया है। इसलिए अब नियमित रूप से स्कूल खुलने के बाद यह आवश्यक है कि बच्चों के शिक्षण गति में आए और वे पहले की तरह पढ़ाई से जुड़ें। इसके लिए शिक्षकों को उनके साथ मानसिक और भावनात्मक रूप से जुड़कर विषयगत कमजोरियों पर काम करना होगा।

सबसे पहली जरूरत यह है कि बच्चों के पूर्ण नामांकन के साथ-साथ वे नियमित स्कूल आएं, रुकें और पढ़ाई को सहजता से लें। नामांकन एक खानापूर्ति न हो, बल्कि बच्चों की सौ फीसद उपस्थिति और सीखने में बढ़ोतरी की प्राथमिकता होनी चाहिए। दूसरी अहम बात यह है कि अभिभावक और शिक्षक दोनों को अपने-अपने स्तर से संयम के साथ प्रयास करने की जरूरत है। बच्चों पर दबाव डालने से ज्यादा उन्हें धैर्यपूर्वक पढ़ाई से जोड़ने, ज्यादा से ज्यादा लिखने, भाषा की शुद्धता और अक्षर सुधारने पर काम किया जाना चाहिए। बच्चे जितने स्पष्ट उच्चारण के साथ बोलकर किताब पढ़ेंगे, प्रतिदिन श्रुतिलेख लिखेंगे, उनकी भाषा उतनी ही बेहतर होगी।

एक जरूरी पहलू यह है कि शिक्षकों को बच्चों के मन की स्थिति को समझना होगा। मनोवैज्ञानिक तरीके से उनकी कमजोरियों को समझने और देखभाल किए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, सरकारी स्कूलों में सरकारों द्वारा निवेश बढ़ाने की जरूरत है। स्कूलों में शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है। भारत में शिक्षा पर सरकारी खर्च जीडीपी का लगभग तीन फीसद है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों के शिक्षा खर्च के औसत का आधा है।

यह ध्यान देने पर पता चलता है कि महामारी की अवधि में बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ गई हैं। इसलिए स्कूली बच्चों के लिए विशेष मानसिक स्वास्थ्य सत्र और परामर्श सत्र चलाए जाने की जरूरत है। राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य विभागों को आपसी समन्वय से बच्चों के स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य आदि नियमित सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए काम करना होगा। इसके अलावा, हर विद्यालय में पीने के स्वच्छ पानी, शौचालय की सुविधा, स्वच्छता के नियमों के अनुपालन पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। बच्चे स्कूल आएं और टिके रहें, इसके लिए देश के सभी स्कूलों में अब मध्याह्न भोजन योजना को फिर से शुरू करने की जरूरत है, जो पौष्टिकता से भरपूर हो।

बड़ा से बड़ा विप्लव भी गुजरते वक्त के साथ चला जाता है। पर जाते-जाते वह अनगिनत भौतिक और मानसिक समस्याएं भी छोड़ जाता है। लंबे समय तक बंद पड़े स्कूल और उनसे दूर बच्चों को भी ऐसे ही कई नकारात्मक वर्तमान से सामना करना पड़ रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि व्यवस्था, विद्यालय प्रबंधन, शिक्षक और बच्चों के माता-पिता, सभी मिलकर उन तमाम नकारात्मकताओं को दूर कर बच्चों के शिक्षण के लिए एक सारगर्भित सकारात्मक वातावरण बनाएं, ताकि आने वाले कल के ये भविष्य एक बेहतर समाज के लिए तैयार हो सकें।


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