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दुनिया की कोई भी राजनीति बिना नारों के संभव नहीं है,
दुनिया की कोई भी राजनीति बिना नारों के संभव नहीं है, खास तौर से बात जब भारत की हो तो यहां नारों की कहानी सदियों पुरानी है. उद्घोष का इस्तेमाल पहले हमेशा युद्ध जीतने के लिए होता था. चाहे वह रामायाण हो या महाभारत 'नारों' का इस्तेमाल हर जगह होता रहा है. हालांकि अब इसका इस्तेमाल राजनीतिक युद्ध जीतने के लिए होता है. इस समय पश्चिम बंगाल में इसी हथियार के सहारे राजनीतिक पार्टियां पूरा विधानसभा का रण जीतना चाहती हैं. बंगाल में इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है. बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस सीधे एक दूसरे को बंगाल के रण में चुनौती दे रहे हैं.
नारों की बात करें तो इस वक्त बंगाल में सबसे ज्याद चर्चा एक नारे की है और वो है 'खेला होबे' इसकी शुरुआत तो TMC ने की लेकिन देखते-देखते यह नारा इतना ज्यादा पॉपुलर हो गया कि इसका इस्तेमाल सब पार्टियां करने लगी हैं. हालांकि अगर नारे के मूल की बात करें तो यह बांग्लादेश से आया है, इसका सबसे पहले इस्तेमाल आवामी लीग पार्टी ने किया था.
बीजेपी भी नारों के सहारे
भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार नारों के सहारे ही केंद्र की सत्ता में एक बार नहीं बल्कि लगातार दो बार आई. इसके बाद कई राज्य भी जीते. बीजेपी का एक नारा 'जय श्री राम' दशकों पुराना है जिसका इस्तेमाल वह हर चुनाव में करती है. लेकिन इस बार बंगाल में बीजेपी भी 'खेला होबे' नारे के सहारे अपने सियासी समीकरण को साध रही है. हालांकि बीजेपी इस नारे का इस्तेमाल बिल्कुल अलग तरह से कर रही है. उसका कहना है कि 'खेला होबे' लेकिन विकास का खेला होबे, शांति का खेला होबे. वहीं बीजेपी के कुछ नेता कह रहे हैं कि हां खेला होबे, लेकिन खेला हम करेंगे और टीएमसी दर्शक बन कर मैदान से बाहर खड़ी होकर देखेगी.
आपको बता दें बीजेपी ने यहां एक और नारा दिया है 'चुपचाप कमल छाप' बीजेपी का यह नारा भी लोगों के बीच बहुत फेमस हुआ. बीजेपी इसके जरिए अपने वोटर्स को संदेश देना चाहती है कि अगर आपको कोई डराए या पैसा देखर खरीदना चाहे तो आप चुपचाप बिना किसी को बताए बीजेपी को वोट दे देना.
टीएमसी ने भी दिया था ऐसा ही नारा
जब बंगाल में लेफ्ट की सरकार थी तब TMC ने भी एक नारा दिया था 'चुपचाप फूल छाप' क्योंकि TMC का मानना था कि लेफ्ट से लोग डरे हुए हैं इसलिए खुल कर टीएमसी को वोट नहीं दे पाएंगे. हालांकि ममता बनर्जी का यह नारा सफल रहा और राज्य में टीएमसी की सरकार बनी. सही मायनों में देखा जाए तो बंगाल में इस नारे ने काम किया. क्योंकि वोटिंग से पहले तक कोई भी जल्दी खुलकर लेफ्ट का विरोध नहीं कर रहा था, लेकिन जैसे ही मौका मिला वोटर्स ने टिएमसी को वोट डाल दिया. इस बार बीजेपी भी इसी सियासी समीकरण पर चल रही है. उसका मानना है कि लोग खुल कर टीएमसी के विरोध में नहीं आएंगे इसलिए उसने नारा दिया 'चुपचाप कमल छाप'.
ये नारे भी रहें चर्चा में
बंगाल में 'नारों' की सियासत शायद देश में सबसे ज्यादा होती है. इसलिए यहां नारे भी सबसे ज्यादा दिए जाते हैं. इस वक्त यहां बीजेपी का जो सबसे लोकप्रिय नारा है वो ये है- 'हरे कृष्ण हरे-हरे, पद्म फूल घरे-घरे' इसके बाद भी बीजेपी ने बंगाल में कई नारे दिए. जैसे, एबार बांग्ला, पारले शामला' इसका मतलब होता है कि अब अगर बंगाल बचा सकते हो तो बचा लो. वहीं टीएमसी ने भी कई लोकप्रिय नारे बंगाल के चुनाव में दिए हैं, इनमें सबसे लोकप्रिय रहा 'मां, माटी, मानुष' टीएमसी का यह नारा बंगाल की आत्मा से जुड़ा है और इस नारे ने जितना लोगों से केनेक्ट किया शायद ही किसी और नारे ने किया होगा. टीएमसी हर चुनाव में एक से एक नए नारे लाती है जो जनता के बीच तेजी से वायरल हो जाते हैं.
उद्घोष उत्साह भरता है
राजनीति में सबसे ज्यादा कुछ मायने रखता है तो वह अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरना, क्योंकि अगर सेना में ही उत्साह नहीं होगा तो वह युद्ध कैसे जीतेगी. इसलिए नारों का इस्तेमाल हर पार्टी बड़ी मुखरता से करती है. साथ ही नारा केवल शब्द नहीं होते बल्कि कुछ शब्दों में एक संदेश होता है जो कोई पार्टी या संगठन अपने कार्यकर्ताओं और जनता तक पहुंचाना चाहती है. 'नारों' के सहारे ही देश में न जाने कितनी सरकारें बनी और बिगड़ीं. कहते हैं कि एक तलवार का सिपाही सिर्फ एक या दो व्यक्ति से लड़ सकता है, लेकिन अगर एक कलम का सिपाही कोई जबरदस्त नारा लिख दे तो वह पूरे दुश्मन सेना पर भारी पड़ता है. हालांकि इस बार बंगाल की रणभेरी को कौन अपने 'नारों' वाले शस्त्र से जीतता है वह तो देखने वाली बात होगी. बंगाल में सीधे लड़ाई सिर्फ बीजेपी और TMC में है इसलिए 'नारों' की लड़ाई भी सिर्फ इन्हीं दो पार्टियों में दिख रही हैं.
सोशल मीडिया से हुंकार की तैयारी
आज के समय में अपने नारे को लोगों तक पहुंचाने का सबसे आसान तरीका है सोशल मीडिया, सोशल मीडिया के सहारे हर राजनीतिक पार्टी अपना संदेश घर-घर तक पहुंचा देती है. इसलिए अब राजनीतिक पार्टियां रैलियों से ज्यादा खर्च आईटी सेल पर करती हैं. राजनीतिक पार्टियों को पता है कि लोग रैली में अब भाषण या नारा सुनने नहीं आएंगे इसलिए अगर उन तक अपना संदेश पहुंचाना है तो सोशल मीडिया ही एक मात्र माध्यम है. बंगाल में TMC हो बीजेपी हो, लेफ्ट हो या कांग्रेस सबने अपने आईटी सेल की फौज को तैयार कर लिया है कि वह उनके 'नारों' को हर बंगालवासी तक पहुंचा दें और बदा दें कि उनका बंगाल चुनाव को लेकर संदेश क्या है. जनता भी सोशल मीडिया पर अपने पसंदीदा पार्टी को इन्हीं नारों के सहारे सपोर्ट करती दिख रही है. हालांकि अब देखना यह होगा कि ये नारे सिर्फ सोशल मीडिया तक ही रह जाते हैं या वोटिंग वाले दिन वोट में भी तब्दील होते हैं.
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