सम्पादकीय

सुझाव: म्यांमार में संभलकर

Neha Dani
30 Dec 2021 1:53 AM GMT
सुझाव: म्यांमार में संभलकर
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पूर्वोत्तर के सीमांत इलाके में स्थिति बिगड़ती है, तो भारत को अपनी मौजूदा नीति बदलनी पड़ेगी।

विगत फरवरी में म्यांमार में हुई तख्तापलट के बाद से ही, जब आंग सान सू की के नियंत्रण में चल रही सरकार को हटा दिया गया था, वह देश अनिश्चय के भंवर में है। तख्तापलट के बाद ही पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर इस उम्मीद में प्रतिबंध लाद दिए कि इससे सैन्य जुंटा पर लोकतंत्र की पुनः स्थापना का दबाव बनेगा। तख्तापलट ने इस क्षेत्र के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के सामने भी म्यांमार के साथ नया रिश्ता बनाने की चुनौती पेश की।

विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला की हालिया म्यांमार यात्रा पड़ोस के इस देश के साथ रचनात्मक सूत्र में बंधने के उद्देश्य से प्रेरित थी, जो पूर्वोत्तर में भारत के साथ अपनी सीमा साझा करता है और जो इलाका भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत चाहेगा कि म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली हो और वह देश अपने संविधान के अनुरूप संघीय ढांचे को महत्व दे। इसीलिए म्यांमार की एक अदालत ने जब सत्ता से हटा दी गईं नेत्री सू की को लोगों को उकसाने और कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया, तब भारत ने उस फैसले पर अपनी नाखुशी जताई।
नई दिल्ली ने अदालत के उस फैसले की आलोचना की और उसे कानून के शासन तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमतर करने वाला बताया। हालांकि म्यांमार की आलोचना करते हुए भी भारत बेहद सतर्क था, क्योंकि वह जानता था कि नाराज करने पर म्यांमार चीन के पाले में जा सकता है। अपनी म्यांमार यात्रा में शृंगला ने वहां के सैन्य नेतृत्व को लोकतंत्र की बहाली के लिए जल्दी चुनाव करवाने के लिए कहा। सैन्य जुंटा ने वर्ष 2023 में चुनाव करवाने का संकेत दिया है और वे सीधे चुनाव के अलावा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की शुरुआत करने के बारे में भी सोच रहे हैं। भारत ने यह सुझाव दिया है कि म्यांमार को उसी व्यवस्था का अनुपालन करना चाहिए, जो वहां की जनता के लिए राजनीतिक रूप से स्वीकार्य हो। भारत ने वहां के सैन्य नेतृत्व से राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए भी कहा है। शृंगला ने विपक्षी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) के नेताओं से भी मुलाकात कर यह संदेश दिया कि म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए भारत उसे उतना ही महत्वपूर्ण पक्ष मानता है।
अलबत्ता पश्चिमी देशों की तरह भारत म्यांमार के सैन्य जुंटा पर प्रतिबंध लगाने की नीति नहीं अपना सकता, क्योंकि वह पूर्वोत्तर में म्यांमार के साथ 1,700 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद की समस्या पुरानी है और अतीत में एकाधिक उग्रवादी समूह म्यांमार की सरकार की सहमति या सहमति के बगैर वहां शरण ले चुके हैं। हालांकि भारत और म्यांमार के बीच बेहतर तालमेल के कारण वे उग्रवादी समूह पिछले कुछ साल से कमजोर पड़े हैं। पूर्वोत्तर में स्थिति सुधरने और वहां तुलनात्मक रूप से शांति का माहौल लौटने के पीछे म्यांमार की सेना का योगदान बहुत ज्यादा है। इसके बावजूद फिलवक्त कम से कम छह उग्रवादी समूह चीन और म्यांमार की जमीन से वहां हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।
म्यांमार में अस्थिरता के बावजूद भू-राजनीतिक कारणों से उसके साथ सावधानीपूर्वक रिश्ते बनाने में ही बुद्धिमानी है। दरअसल म्यांमार में हमेशा ही चीन की गहरी पैठ रही है। वह म्यांमार को हथियारों की आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश है। कुछ ही सप्ताह पहले राजधानी यांगून में संपन्न एक आयोजन में उसने म्यांमार की नौसेना को एक पनडुब्बी सौंपी। उस समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ जनरल और तख्तापलट में केंद्रीय भूमिका निभाने वाले मिन आंग ह्लेंग ने की थी। चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के निर्माण के जरिये चीन म्यांमार में ढांचागत निर्माण का काम भी कर रहा है। खुद म्यांमार भी चीन और पाकिस्तान द्वारा निर्मित युद्धक विमान खरीद रहा है। म्यांमार ने हथियारों की आपूर्ति के लिए एक दूसरे बड़े हथियार निर्यातक रूस से भी संपर्क साधा है। रूस भी इस क्षेत्र के एक बंदरगाह को अपनी नौसेना की रणनीतिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहा है। जाहिर है कि इस क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिस्थिति दिन-ब-दिन बेहद जटिल होती जा रही है। ऐसे में, भारत-म्यांमार के संबंधों में किसी तरह की दरार का फायदा भारत-विरोधी ताकतें उठा सकती हैं।
दरअसल म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शनों ने भी भारत के लिए सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ा दी हैं। वहां प्रदर्शनकारियों पर सेना के हमले के कारण अनेक लोग सीमा पार कर भारत के मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में घुस आए हैं। भारत ने अपनी नीतियों के तहत उन लोगों से म्यांमार वापस लौट जाने के लिए कहा है। ऐसा माना जा रहा है कि मिजोरम में कोविड की चुनौती के लगातार बने रहने का एक बड़ा कारण बड़ी संख्या में म्यांमार के नागरिकों का वहां आना भी है। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत ने म्यांमार को 10 लाख टीके दिए हैं, जिनमें से अधिकांश का इस्तेमाल सीमा पर रहने वाले लोगों के लिए होना है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि म्यांमार में गृहयुद्ध जैसी स्थिति भारत के लिए बेहद चिंताजनक है। अगर वहां हालात बिगड़ते हैं, तो भारत और खासकर पूर्वोत्तर का इलाका उससे गहरे तौर पर प्रभावित होगा। वैसी स्थिति में चीन और पाकिस्तान पूर्वोत्तर में उग्रवाद की मौजूदा कमजोर स्थिति को भड़काकर उसका इस्तेमाल भारत को कमजोर करने के लिए कर सकते हैं। म्यांमार के सीमांत इलाके में पहले से ही हथियारों की तस्करी में तेजी आने की रिपोर्टें हैं। उनमें से कुछ हथियार बेहद आसानी से पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के हाथ लग सकते हैं। लिहाजा स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत किसी का पक्ष नहीं ले सकता, इसके बजाय सभी हितधारकों से संवाद करना ही उसके लिए एकमात्र विकल्प है।
ऐसा लगता है कि म्यांमार की जुंटा वर्ष 2011 से पहले की व्यवस्था में लौटना चाहती है। लेकिन वैसी हालत में अगर म्यांमार और पूर्वोत्तर के सीमांत इलाके में स्थिति बिगड़ती है, तो भारत को अपनी मौजूदा नीति बदलनी पड़ेगी।
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