सम्पादकीय

फिर से छवि मांजने का वक्त

Rani Sahu
10 Nov 2021 6:53 PM GMT
फिर से छवि मांजने का वक्त
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चार साल की सरकार और चार उपचुनाव हारने के बाद लम्हे और लहजा बदलने की सबसे बड़ी दरकार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के आसपास मंडरा रही है

चार साल की सरकार और चार उपचुनाव हारने के बाद लम्हे और लहजा बदलने की सबसे बड़ी दरकार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के आसपास मंडरा रही है। अंतिम वर्ष की चुनौती में सरकार के पास विभिन्न मुद्राएं और विकास की पायदान पर हस्ताक्षर करने को भिन्न-भिन्न विभाग हैं। आरंभिक तौर पर सड़कों के साथ-साथ तरह-तरह की योजनाओं-परियोजनाओं पर गौर करते हुए मुख्यमंत्री के निर्देश शिमला के गलियारों में गूंजे हैं, तो वहां मतदाता का आदेश प्रतिध्वनित हुआ। प्रशासनिक तौर पर राजधानी के अक्स में प्रदेश का मुआयना कमजोर रहा है और सरकार के केंद्रबिंदु में नौकरशाही से अफसरशाही तक का दारोमदार भी असफल रहा। मंत्रिमंडलीय बैठक में अगर किसी अधिकारी की जुबान लड़खड़ा जाए, तो चुनौती आंतरिक अनुशासन की भी है। बेशक उपचुनावों के परिणामों ने आश्चर्य के नगाड़े बजा दिए हैं और इनका शोर सचिवालय की हर फाइल से मुखातिब है। सरकारी कार्य संस्कृति का ढर्रा शिमला से निकल कर प्रदेश के दूर दराज इलाकों तक कितना असंवेदनशील हो सकता है या यही वजह थी कि उपचुनावों ने सारे दर्पण तोड़ दिए। उपचुनावों के बाद सरकार को जो भी एहसास हो, लेकिन यह वक्त फिर से छवि मांजने का है। इस बार सारे हाथी जयराम ठाकुर के पास हैं और जिस तरह चुनाव प्रचार हुआ, वही भाजपा के सारथी थे। हमारा मानना है कि दो वर्गों ने मुख्यमंत्री कार्यालय का अनावश्यक दोहन किया और कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की शराफत से अपने स्वार्थ के हल जोतते रहे। प्रथम श्रेणी में सुशासन की जिम्मेदारी ओढ़े नौकरशाही का गुण दोष देखना होगा। यह पहला अवसर है जब सरकार के ओहदे में सबसे अधिक नौकरशाह चमके हैं और उन्हें प्रभावशाली मंच मिले। ऐसे में मुख्यमंत्री कोस रहे हैं तो यह वर्ग कठघरे में है। जब राज्य के लक्ष्यों का वृतांत मिलेगा या जनता की शिकायतें पढ़ी जाएंगी, तो शिमला के सविचालय के कान में रखी रूई हटानी पड़ेगी। यहां वीरभद्र सिंह के प्रयोगों से सीखना होगा।

क्यों वीरभद्र सिंह की हर सरकार ने शिमला सचिवालय या राजधानी के कान से रूई निकालते हुए, कभी कुछ प्रमुख कार्यालय प्रदेश भर में स्थानांतरित किए, शीतकालीन प्रवास की परंपरा या बाकायदा एक विधानसभा सत्र की शुरुआत तपोवन से की। मंत्रिमंडल में विभागीय संतुलन से यह तय किया गया कि प्रदेश में बजटीय आबंटन की बराबरी रहे। इस बार स्थिति अलग है। सबसे बड़े कांगड़ा जिला से मात्र दो मंत्रियों के विभागीय दायित्व में राज्य का बजट आबंटन देखा जाए, तो यह सबसे कमजोर कड़ी बन कर दर्ज होता है। इसी तरह संसदीय क्षेत्रों में भी सरकार के चमकदार ओहदों का आबंटन पूरे प्रदेश को अलग-अलग प्राथमिकताएं दर्शाता है। मुख्यमंत्री की शालीनता को चुराने में दूसरी सबसे बड़ी शक्ति आरएसएस की रही है। सरकार के तमाम लाभार्थी व लाभ के पद जिस तरह आरएसएस की पांत में बंटे, उसे नकारा नहीं जा सकता। भले ही मुख्यमंत्री स्वतंत्र और किसी तरह के आंतरिक विरोध से ऊपर रहे हैं, लेकिन उनके ऊपर कई बड़े नेताओं की फिरकी घूम रही है। कई ऐसे फैसले हुए हैं, जो सिर्फ मुख्यमंत्री के नहीं कहे जा सकते। यह कर्मचारी स्थानांतरण, अहम पदों पर विराजित राजनीतिक या नौकरशाह चेहरों तथा विकास के रुख में देखे जा सकते हैं। इसी सरकार के दौरान अहम पदों से रिटायर किए गए नेताओं की फेहरिस्त बताती है कि उनकी पूर्ति से कौन से घाटे पूरे किए गए। बहरहाल हिमाचल भाजपा का कोपभवन और सरकार के वार रूम में नई चेतना की जरूरत है। यहां कई युद्ध हैं और परिदृश्य में कई अलगाववाद पनप रहे हैं। समर्थकों की दिहाड़ी में उपचुनाव का हारना इसलिए भी निरुत्तरित करता है,क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर महंगाई के कौड़े चलते रहे हैं। ऐसे में सरकार की अंतिम पायदान पर सबसे कठिन दबाव और जवाब हैं।
उपचुनावों के जवाब में सरकार की बेहतरी इसी में है कि अपने लक्ष्यों को स्पष्ट और कार्य संस्कृति को निष्कलंक साबित करे। बेशक जयराम सरकार के खाते में कोरोना महामारी का अवांछित दबाव रहा है, फिर भी जनता की अपेक्षाओं को शून्य मानकर नहीं चला जा सकता। सरकार को अपने बजटीय प्रबंधन की ईमानदारी में सूबे के कई खालीपन भरने हैं, तो क्षेत्रीय स्पर्श में रिवायतें पूरी करनी होंगी। यही वर्ष है जब कई तरह के आंदोलन, विवाद और नए गठजोड़ खड़े होंगे तथा भीतरी अवसाद दिखाई देंगे। विकास और विमर्श की कहावतें बदलने के लिए अभी विधानसभा के कुछ और सत्र तथा पूरा एक बजट बाकी है। देखना यह होगा कि केंद्र में भेजे गए सासंद, केंद्र में हिमाचल के खाते से बने मंत्री अनुराग ठाकुर और स्वयं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा किस तरह मुख्यमंत्री का साथ देते हुए अगला सफर तय करते हैं, वरना राज्य की सरकारी मशीनरी अब धीरे-धीरे तटस्थ होती जाएगी।

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