- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- फिर से छवि मांजने का...
चार साल की सरकार और चार उपचुनाव हारने के बाद लम्हे और लहजा बदलने की सबसे बड़ी दरकार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के आसपास मंडरा रही है। अंतिम वर्ष की चुनौती में सरकार के पास विभिन्न मुद्राएं और विकास की पायदान पर हस्ताक्षर करने को भिन्न-भिन्न विभाग हैं। आरंभिक तौर पर सड़कों के साथ-साथ तरह-तरह की योजनाओं-परियोजनाओं पर गौर करते हुए मुख्यमंत्री के निर्देश शिमला के गलियारों में गूंजे हैं, तो वहां मतदाता का आदेश प्रतिध्वनित हुआ। प्रशासनिक तौर पर राजधानी के अक्स में प्रदेश का मुआयना कमजोर रहा है और सरकार के केंद्रबिंदु में नौकरशाही से अफसरशाही तक का दारोमदार भी असफल रहा। मंत्रिमंडलीय बैठक में अगर किसी अधिकारी की जुबान लड़खड़ा जाए, तो चुनौती आंतरिक अनुशासन की भी है। बेशक उपचुनावों के परिणामों ने आश्चर्य के नगाड़े बजा दिए हैं और इनका शोर सचिवालय की हर फाइल से मुखातिब है। सरकारी कार्य संस्कृति का ढर्रा शिमला से निकल कर प्रदेश के दूर दराज इलाकों तक कितना असंवेदनशील हो सकता है या यही वजह थी कि उपचुनावों ने सारे दर्पण तोड़ दिए। उपचुनावों के बाद सरकार को जो भी एहसास हो, लेकिन यह वक्त फिर से छवि मांजने का है। इस बार सारे हाथी जयराम ठाकुर के पास हैं और जिस तरह चुनाव प्रचार हुआ, वही भाजपा के सारथी थे। हमारा मानना है कि दो वर्गों ने मुख्यमंत्री कार्यालय का अनावश्यक दोहन किया और कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की शराफत से अपने स्वार्थ के हल जोतते रहे। प्रथम श्रेणी में सुशासन की जिम्मेदारी ओढ़े नौकरशाही का गुण दोष देखना होगा। यह पहला अवसर है जब सरकार के ओहदे में सबसे अधिक नौकरशाह चमके हैं और उन्हें प्रभावशाली मंच मिले। ऐसे में मुख्यमंत्री कोस रहे हैं तो यह वर्ग कठघरे में है। जब राज्य के लक्ष्यों का वृतांत मिलेगा या जनता की शिकायतें पढ़ी जाएंगी, तो शिमला के सविचालय के कान में रखी रूई हटानी पड़ेगी। यहां वीरभद्र सिंह के प्रयोगों से सीखना होगा।
divyahimachal