सम्पादकीय

संस्कृत को सम्मान देने का समय, सर्वथा उपयुक्त होने पर भी इसकी घोर उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण

Rani Sahu
23 Oct 2022 6:46 PM GMT
संस्कृत को सम्मान देने का समय, सर्वथा उपयुक्त होने पर भी इसकी घोर उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण
x
सोर्स - JAGRAN
प्रणय कुमार : भाषा ज्ञान एवं संस्कृति की सशक्त संवाहिका होती है। इसके अभाव में हम किसी राष्ट्र की संस्कृति या अस्मिता की कल्पना तक नहीं कर सकते। किसी भी सभ्यता की विकास-यात्रा में भाषा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भाषा के माध्यम से ही कोई भी जाति या राष्ट्र अपने विचारों, जीवन-मूल्यों, आदर्शों, स्मृतियों और परंपराओं आदि की अभिव्यक्ति करता है। भारत की आत्मा या चिति की अभिव्यक्ति देववाणी संस्कृत के माध्यम से हुई है। हमें संस्कृत भाषा और उसके विपुल साहित्य में ही यह देखने को मिलती है।
भारत को भारत की दृष्टि से देखने एवं जानने-समझने की भाषा है–संस्कृत, परंतु इसमें एक ओर जहां लोक-मान्यताओं एवं सांस्कृतिक चेतना की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है तो दूसरी ओर गहरी विश्व-दृष्टि भी दिखाई देती है। इसमें समस्त मानव-जाति की मौलिक अनुभूतियों को अभिव्यक्ति मिली है। यह व्यष्टि को समष्टि से जोड़ने वाली भाषा है। स्थूल से सूक्ष्म तथा देह से आत्मा तक की यात्रा की भाषा है। वस्तुतः यह चेतना और आत्मा की भाषा है। यह व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को 'स्व' से जोड़ने वाली, 'स्व' की पहचान कराने वाली भाषा है, पर उसका 'स्व' मैं तक सीमित नहीं, वह संपूर्ण विश्व-ब्रह्मांड से जुड़ा है। इसीलिए इसकी दृष्टि में पूरा विश्व एक परिवार है, बाजार नहीं। यह प्रेम और सहकार की भाषा है, घृणा और व्यापार की नहीं। यह वृत्तियों के संस्कार और अभिरुचियों के परिष्कार की भाषा है। यह लोकमंगल की भावना और समन्वय की साधना की भाषा है। यह वैविध्य में सौंदर्य और एकत्व देखने वाली भाषा है। यह मनुष्य का केवल मनुष्य के साथ ही नहीं, अपितु चराचर के साथ तादात्म्य स्थापित कराने वाली भाषा है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अनेकानेक दुर्लभ विशेषताओं से सुसंपन्न तथा विज्ञान एवं तकनीक की दृष्टि से उपयुक्त होने पर भी संस्कृत की घोर उपेक्षा की गई। इसे कालबाह्य, अनुपयोगी, अप्रासंगिक सिद्ध करने की कुचेष्टा की गई। जहां दुनिया इसे ज्ञान-विज्ञान की सबसे प्राचीन भाषा मान उससे सार ग्रहण करती रही, वहीं भारत स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त मैकाले-मार्क्स के मानसपुत्रों ने उसका नाम सुनकर ही नाक-भौं सिकोड़ने का चलन आज तक जारी रखा है। जबकि तथ्य यह है कि बार-बार के शोध एवं अनुसंधान के निष्कर्ष में संस्कृत को कंप्यूटर एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा बतलाया गया।
जैसा लिखा जाता है, ठीक वैसा ही पढ़े और बोले जाने के कारण टाकिंग कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे सटीक एवं वैज्ञानिक भाषा मानी गई है। स्वर-तंत्री, प्राणवायु, मुखावयव आदि के आधार पर ध्वनियों एवं वर्णों का वैज्ञानिक अनुक्रम, धातु-रचना, शब्द-निर्माण, पदक्रम, पद-लालित्य, वाक्य-विन्यास, अर्थ-विस्तार आदि की दृष्टि से यह अनुपम एवं अद्वितीय भाषा है। संसार की सबसे प्राचीन भाषा में से एक होने के कारण देश-विदेश की अधिकांश भाषाओं में प्रयुक्त एवं प्रचलित शब्दावली के साथ इसकी अद्भुत साम्यता देखने को मिलती है। भारत की अधिकांश बोलियों एवं भाषाओं की जननी होने के कारण यह राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता में अत्यधिक सहायक है।
कला, संगीत, साहित्य, संस्कृति, योग, आयुर्वेद, धर्म, दर्शन, नीति और इतिहास से लेकर गणित, विज्ञान, भूगोल, भूगर्भ, खगोल, ज्योतिष आदि तक जीवन और जगत का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिनमें संस्कृत-ग्रंथों की उपलब्धता एवं विपुलता न हो। संसार की अन्य भाषाओं में जहां किसी वस्तु विशेष के लिए प्रचलित शब्दों के पीछे का तार्किक आधार, कारण एवं प्रयोजन स्पष्ट कर पाना अत्यंत कठिन है, वहीं संस्कृत में गुण-धर्म-अर्थ आदि के आधार पर वस्तुओं के नामकरण का औचित्य सिद्ध किया जा सकता है। इसमें सूत्रों में बात कही जा सकती है। यहां छंदों का अनुशासन है, अराजकता का व्याकरण नहीं। यह लय-सुर-ताल की भाषा है। जहां लय है, वहीं गति है और गति ही जीवन तथा जड़ता ही मृत्यु है। इसलिए संस्कृत जीवन की भाषा और जीवन का मंत्र है।
पुणे के डेक्कन कालेज का संस्कृत और लेक्सिकोग्राफी विभाग संस्कृत का एक विश्वकोश तैयार कर रहा है। वर्तमान में 22 शोधार्थियों की एक टोली इस पर अहर्निश काम कर रही है। इनमें वेद, वेदांग, व्याकरण, दर्शन, साहित्य, धर्मशास्त्र, महाकाव्य, गणित, वास्तुकला, चिकित्सा, पशु चिकित्सा, विज्ञान, कृषि, संगीत, शिलालेख, युद्ध, राजनीति, नाट्यशास्त्र जैसे विषयों से जुड़े शब्दों को सम्मिलित किया गया है। वर्ष 1976 में इस शब्दकोश का प्रथम खंड प्रकाशित किया गया था। अब तक इसके 35 खंड प्रकाशित किए जा चुके हैं। अभी तक इसमें 1.25 लाख शब्द सम्मिलित किए गए हैं। अनुमान है कि शब्दकोश के पूरे होने तक इसमें 20 लाख से अधिक शब्दों को संकलित किया जाएगा, जो आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी से भी बृहत एवं बेहतर होगा।
ध्यातव्य हो कि आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अब तक 20 खंड हैं और उसमें 2,91,500 शब्द-प्रविष्टियां हैं। अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने साहित्य के प्रति उपेक्षा एवं चिंतनीय उदासीनता वाले इस दौर में संस्कृत को पुनर्जीवित एवं पुनर्प्रतिष्ठित करने का डेक्कन कालेज का यह प्रयास सराहनीय एवं अनुकरणीय है। याद रहे कि जब कोई समाज अपनी भाषा, संस्कृति और ज्ञान-परंपरा को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर खड़ा हो जाता है तो संसार की कोई भी बाधा या शक्ति उसका मार्ग नहीं रोक पाती, न ही मनोबल तोड़ पाती है।
Next Story