सम्पादकीय

चीन की अकड़ ढीली करने का समय, भारतीय मोर्चे पर ड्रैगन के शरारत करने की आशंका!

Rani Sahu
6 Aug 2022 9:25 AM GMT
चीन की अकड़ ढीली करने का समय, भारतीय मोर्चे पर ड्रैगन के शरारत करने की आशंका!
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चीन की अकड़ ढीली करने का समय

सोर्स- जागरण
दिव्य कुमार सोती। अमेरिकी संसद के निचले सदन की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्र को लेकर चीन ने पूर्वी एशिया में जिस तरह सैन्य तनाव को जन्म दे दिया है, वह यही दर्शाता है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी बहाने की तलाश थी। वैसे तो चीन का सरकारी मीडिया पहले से ही धमकी दे रहा था कि अगर नैंसी ने ताइवान आने का प्रयास किया, तो वह उनके विमान को निशाना बनाएगा। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति को फोन पर आग से न खेलने की चेतावनी भी दी थी, पर नैंसी अमेरिकी और ताइवानी वायुसेना के सुरक्षा घेरे में ताइपे पहुंचीं। इस दौरान चीनी सेना ने न तो कोई मिसाइल दागी और न नैंसी के हवाई काफिले के पास फटकने की कोशिश की।
नैंसी के ताइपे जाने के पहले चीनी सेना ने ताइवान के चारों ओर सैन्य अभ्यास की घोषणा भी की, पर उसके आरंभ होने से पहले ही नैंसी अपना दौरा पूरा कर चुकी थीं। इसके बाद चीनी सेना ने कई मिसाइलें इस प्रकार दागीं कि वे ताइवान की वायु सीमा से होकर जापान के इकोनामिक जोन में जाकर गिरीं। ध्यान रहे कि ताइवान पर दावा करने के साथ ही चीन जापान के भी कई द्वीपों को अपना बताता है।
नैंसी पेलोसी ने चीन की धमकियों के बावजूद ताइवान जाकर चीनी दादागीरी की सीमाएं स्पष्ट करने के साथ यह भी सिद्ध किया कि शी चिनफिंग की ओर से खुद को दूसरे माओ त्से तुंग के रूप में स्थापित करने का प्रयास इतना आसान नहीं। यदि अमेरिका चीनी धमकियों के चलते नैंसी का दौरा रद करता तो चीन कल को ऐसी ही धमकियां भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों के दौरे को लेकर दे सकता था। नैंसी के दौरे के बाद चीन जिस प्रकार ताइवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ा रहा है, उसमें कुछ भी नया नहीं है
चीन का फिर वहीं ड्रामा
चीन की दादागीरी के चलते ताइवान इसी तरह के संकट का सामना 1954-55, 1958, 1995-96 में भी कर चुका है। 1954-55 और 1958 में तो चीनी सेना ने ताइवान के कई द्वीपों पर कब्जा करने की असफल कोशिश भी की थी। दूसरे संकट के समय जब अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर ने ताइपे का दौरा किया था तो चीनी सेना ने ताइवान के किनमेन द्वीप पर एक लाख से अधिक गोले बरसाए थे। तब ताइवान के साथ हवाई झड़पों में चीनी वायुसेना को 51 लड़ाकू विमान गंवाने पड़े थे। पहले के दोनों ही संकटों के दौरान अमेरिकी सेना ने चीन के विरुद्ध परमाणु हथियारों के प्रयोग की सिफारिश तक कर दी थी। इसके चलते माओ को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे। 1995-96 के दौरान ताइवान को लेकर चीन ने इसी तरह का हंगामा इसलिए खड़ा किया था, क्योंकि ताइवान के राष्ट्रपति को एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए वीजा दे दिया गया था। तब भी चीन ने मिसाइलें दाग कर खूब सैन्य तनाव बढ़ाया था, जिसके जवाब में अमेरिका ने अपने सातवें नौसैनिक बेड़े को ताइवान स्ट्रेट में भेज दिया था। बाद में पता चला कि चीन द्वारा दागी गईं मिसाइलें बिना किसी विस्फोटक के थीं। इस बार भी इसी सबकी पुनरावृत्ति होती दिखाई दे रही है।
Rani Sahu

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