सम्पादकीय

निर्णायक की घड़ी: क्या राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी की समस्याओं का समाधान हैं या खुद समस्या हैं

Gulabi
24 Dec 2020 3:00 PM GMT
निर्णायक की घड़ी: क्या राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी की समस्याओं का समाधान हैं या खुद समस्या हैं
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दिल से या बेदिल से राहुल गांधी एक बार फिर से। सोनिया गांधी के साथ पार्टी के असंतुष्टों और संतुष्टों की बैठक का यही नतीजा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दिल से या बेदिल से राहुल गांधी एक बार फिर से। सोनिया गांधी के साथ पार्टी के असंतुष्टों और संतुष्टों की बैठक का यही नतीजा है। सोनिया गांधी बेटे से इतर देखने को तैयार नहीं हैं और असंतुष्टों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वे बदलाव तो चाहते हैं, लेकिन उसके लिए जो आवश्यक है उसकी न तो उनके पास ताकत है और न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति। उन्होंने अभी तक ठहरे हुए शांत पानी में कंकड़ फेंकने का काम किया है। सोनिया को भी पता है कि वह असंतुष्टों से लड़ने की ताकत खो चुकी हैं। ऐसे में यथास्थिति के अलावा दोनों खेमों के पास कोई रास्ता नहीं है।




कांग्रेस की बैठक में राहुल की अप्रत्याशित विनम्रता से अंसतुष्ट खेमा हतप्रभ

उम्मीद का स्तर गिर जाए तो ऐसा ही होता है। सोनिया गांधी इस बात से संतुष्ट हो गई लगती हैं कि बैठक में राहुल गांधी के दोबारा अध्यक्ष पद संभालने की बात का विरोध नहीं हुआ। असंतुष्टों को लगा कि पहली बार पूरा परिवार विनम्रता की प्रतिर्मूित के रूप में उपस्थित हुआ। यही प्रगति है। इसीलिए सोनिया गांधी के साथ चली करीब पांच घंटे की बैठक में पिछली बार की तरह दोनों खेमों की ओर से आक्रामकता नदारद थी। शायद गांधी परिवार के तीनों सदस्यों खासतौर से राहुल की अप्रत्याशित विनम्रता से अंसतुष्ट खेमा हतप्रभ रह गया हो।


कांग्रेस को जरूरत है ऐसे नेता की जो पार्टी को अगले राजनीतिक युद्ध के लिए तैयार कर सके

दरअसल दोनों खेमे युद्ध को टाल रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे युद्ध नहीं चाहते, बल्कि इसलिए कि दोनों के पास लड़ने के लिए हथियार नहीं है। पूरी कांग्रेस पार्टी पराजय की मानसिकता से ग्रस्त है। ऐसी मानसिकता व्यक्ति और संगठन को सोच-विचार में असमर्थ बना देती है। कांग्रेस फिलहाल इसी दौर से गुजर रही है। सवाल है कि कांग्रेस को जरूरत किस चीज की है और उसे मिल क्या रहा है। पार्टी को जरूरत एक ऐसे नेता की है जो उसे पराजय की इस मानसिकता से निकाल कर अगले राजनीतिक युद्ध के लिए तैयार कर सके। क्या राहुल गांधी में वह क्षमता है? पिछले सोलह वर्षों के दौरान तो राहुल गांधी इस क्षमता के दर्शन नहीं करा पाए हैं। फिर ऐसा क्या बदल गया है कि उन्हें एक बार फिर अध्यक्ष पद सौंपने की तैयारी है। राजनीतिक परिदृश्य पर कांग्रेस के लिए कुछ नहीं बदला है, पर कांग्रेसियों में जरूर बदलाव आया है। उनकी अपेक्षाएं घट गई हैं।


राहुल ने कहा था- गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा, सोनिया अंतरिम अध्यक्ष बन गईं

पिछले लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी जिस तरह पार्टी अध्यक्ष पद छोड़कर गए थे उससे लगता था कि वह जल्दी लौटने वाले नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि अब उनके परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा। उसी बैठक के विस्तार में सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बन गईं। फिर राहुल गांधी ने डेढ़ साल पहले ऐसा क्यों कहा था? दरअसल उनको और उनके परिवार को उम्मीद थी कि राहुल का ऐसा बयान आते ही कांग्रेस में हाहाकार मच जाएगा। देश भर से 'राहुल लाओ देश बचाओ' की गूंज सुनाई देगी, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। देश भर के कांग्रेसियों को तो छोड़िए सोनिया के साथ हुई बैठक में भी अंबिका सोनी के 'राहुल लाओ' के प्रस्ताव का विरोध भले ही न हुआ हो, मगर उसे समर्थन भी नहीं मिला।

कांग्रेस समस्या को पहचान नहीं पा रही, सिंधिया पार्टी छोड़कर क्यों गए

किसी समस्या का हल खोजने के लिए पहली जरूरत है उस समस्या को स्वीकार करना और पहचानना। कांग्रेस ऐसा करने में असमर्थ दिखती है। इतना ही नहीं वह कोई नया राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में लगातार नाकाम हो रही है। उसका संगठन हारी हुई सेना के शिविर जैसा दिखता है। वहां तलवार पर सान चढ़ाने वालों से ज्यादा बड़ी संख्या अपने घाव सहलाने वालों की है। यानी कांग्रेस समस्या को पहचान ही नहीं पा रही है। यदि पहचानने का प्रयास करती तो पहले गांधी परिवार से ही दो प्रश्न तो पूछने ही चाहिए थे कि असम में हेमंत बिस्व सरमा और मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर क्यों गए और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? और दूसरा यह कि बिहार विधानसभा चुनाव के बीच राहुल गांधी छुट्टी मनाने शिमला क्यों चले गए? क्या ऐसी सहूलियत पार्टी के दूसरे नेताओं को भी उपलब्ध है?

यूपी विस उपचुनाव में कांग्रेस के 4 उम्मीदवारों की हुई जमानत जब्त, प्रियंका से कोई सवाल पूछेगा?

चूंकि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष नहीं हैं तब आखिर वह किस हैसियत से सभी सांगठनिक फैसले ले रहे हैं। इन फैसलों की जवाबदेही किसकी होगी? सोनिया या राहुल की? पिछले लोकसभा चुनाव के पहले से ही पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई प्रियंका के हवाले है। बीते दिनों उत्तर प्रदेश में सात विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए। उनमें से चार पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। प्रियंका से कोई सवाल पूछेगा? बिना जवाबदेही के कोई संगठन आगे बढ़ना तो दूर चलना भी मुश्किल है। यह समझ लीजिए कि प्रियंका से कोई सवाल न पूछकर पार्टी के नीति निर्माता किसी दूसरे नेता से सवाल करने का नैतिक अधिकार खो देते हैं।

कांग्रेस और राहुल गांधी के पास सपने हैं, लेकिन साकार करने की कूवत नहीं बची

कहते हैं कि बिना अमल के परिकल्पना या सपने का कोई अर्थ नहीं। कांग्रेस और राहुल गांधी के पास सपने हैं, परंतु उन्हें साकार करने की कूवत नहीं बची है। कांग्रेस को जरूरत है ऐसे नेता या नेताओं की जो पार्टी के लिए सपना देखें और उसे परा करने का उद्यम करें। अपने राजनीतिक विरोधी की ट्विटर या ऐसे अन्य मंचों पर आलोचना कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री समझकर कांग्रेस का भला नहीं होने वाला। कोई रेस जीतनी है तो उसके लिए मैदान में उतरना और दौड़ना पड़ता है। किनारे खड़े होकर ताली बजाने से आज तक कोई रेस नहीं जीता। कांग्रेस जिस हालत में है उसमें उसे ऐसा नेता चाहिए जिसमें जोखिम और उसकी जवाबदेही लेने का माद्दा हो।

राहुल कांग्रेस की समस्याओं का समाधान हैं या खुद समस्या हैं

राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाने से पहले कांग्रेस को एक सवाल का जवाब जरूर खोजना चाहिए। वह यह कि राहुल कांग्रेस की समस्याओं का समाधान हैं या खुद समस्या हैं। हालांकि कांग्रेस के लोग इसी सवाल से भाग रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें जवाब पता है।

कांग्रेस केंद्रीय स्तर पर खत्म हो गई, वजूद है राज्य इकाइयों की वजह से

सच्चाई तो यह भी है कि कांग्रेस केंद्रीय स्तर पर खत्म हो गई है। उसका जो भी वजूद है वह राज्य इकाइयों की वजह से है। उसकी समस्या का हल वहीं से निकलेगा, दस जनपथ या गुरुद्वारा रकाबगंज रोड से नहीं। पार्टी में दूसरी पीढ़ी के नेता हाशिये पर हैं। जो नहीं हैं, मानकर चलिए कि वे राहुल गांधी के कृपापात्र हैं। कृपापात्र बोझ तो बन सकते हैं, बोझ उठाने वाले नहीं। इन बोझ बने नेताओं से मुक्ति पाने में ही कांग्रेस की मुक्ति का मार्ग है। फिर वह परिवार के सदस्य हों या कोई और। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है कि इस बात को समझे कौन और समझाए कौन।


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