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जगमोहन सिंह राजपूत :
टोक्यो ओलिंपिक का सफल समापन हो गया और भारतीय ओलिंपिक दल वापस आ गया। देश में उसका भव्य स्वागत हो रहा है। देखा जाए तो यह ओलिंपिक भारत के लिए कई मायने में अद्भुत रहा। इसमें भारत ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। इस बार हमें एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदक मिले। टोक्यो ओलिंपिक भारत में खेल संस्कृति के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। नीरज चोपड़ा के रूप में एथलेटिक्स में पहली बार भारत का कोई खिलाड़ी स्वर्ण पदक जीता है। नीरज की सफलता स्वर्णिम है, लेकिन उनकी ऐतिहासिक सफलता के साथ यह न भूलें कि हाकी ने भी अपना पुराना गौरव हासिल कर लिया है। पुरुष हाकी टीम के कांस्य पदक जीतते ही हर देशवासी का चेहरा खिल गया। देश में एक उत्सव का माहौल बन गया। मैं ऐसा कोई और अवसर या समारोह याद नहीं कर पा रहा हूं जिसमें सभी एक साथ एक 'प्राप्ति' के लिए अभूतपूर्व भाईचारे की भावना से एकजुट हुए हों। दुनिया में शायद ही किसी देश में कांस्य पदक पाने की खुशी पूर्ण भागीदारी, अपनत्व और हार्दिकता से जश्न में परिवर्तित की गई होगी। भारत की महिला हाकी टीम ने भी जिस दृढ़ता, साहस और प्रयास की एकाग्रता से मुकाबला किया, वह हृदयस्पर्शी था। इसके बाद भाला फेंक में नीरज चोपड़ा ने जैसे ही स्वर्ण पदक जीता पूरा देश झूम उठा। आज सारा देश नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, लवलीना बोरगोहाई, पीवी सिंधू, रवि दाहिया, बजरंग पूनिया की चर्चा कर रहा है। ये खिलाड़ी इसके पात्र भी हैं।