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- नकेल कसने का समय
नवभारत टाइम्स; अपने प्रवक्ताओं के बिगड़े बोल के चलते देश-विदेश में हो रही फजीहत से परेशान बीजेपी ने इनके खिलाफ एक्शन क्या लिया, उसके खिलाफ एक और बड़ा मोर्चा खुल गया। सोमवार को जैसे-जैसे पार्टी प्रवक्ता नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के खिलाफ कार्रवाई की खबर फैली, ट्विटर पर बीजेपी समर्थकों की फौज के सिपाही अपनी ही पार्टी को लानत भेजने लगे। देखते-देखते 'शेम ऑन बीजेपी' का हैशटैग ट्रेंड करने लगा। इससे पहले अलग-अलग मौकों पर बीजेपी के नेता भी इस ट्रोल आर्मी के गुस्से का शिकार हुए हैं, लेकिन यह संभवत: पहला मौका है, जब बतौर पार्टी बीजेपी को ही निशाने पर ले लिया गया हो। माना जाता रहा है कि इस ट्रोल आर्मी का नियंत्रण अनौपचारिक तौर पर ही सही, लेकिन बीजेपी से जुड़े लोगों के हाथों में है। इसका टारगेट भी वैसे ही लोग होते रहे हैं, जो बीजेपी या सरकार के फैसलों में किसी कारण बाधा बनते नजर आते हैं। मगर सोमवार को हैशटैग 'शेम ऑन बीजेपी' का ट्रेंड करना संकेत देता है कि संभवत: इस ट्रोल आर्मी पर सत्तारूढ़ पार्टी की पकड़ कमजोर हो रही है। वैसे भी इतिहास गवाह है, ऐसे कट्टरपंथी ट्रेंड चाहे जिसके भी द्वारा शुरू किए और पाले पोसे जाएं वे ज्यादा समय तक काबू में नहीं रहते।
यही समय है जब बेकाबू होने को कसमसाती इस प्रवृत्ति की नकेल निर्णायक तौर पर कस दी जाए। समझना जरूरी है कि बीजेपी प्रवक्ताओं के जिन बयानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी कराई, वे यों ही नहीं आ गए। उसकी पृष्ठभूमि काफी पहले से तैयार हो रही थी। पिछले कुछ समय से देश में ऐसा माहौल बना हुआ है कि हिंदुत्व से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़े किसी मसले पर कोई कुछ भी बोल दे, कुछ भी कर दे चलता है। यहां तक कि कुछ एजेंसियां निष्पक्षता का दिखावा करना भी गैर-जरूरी समझने लगी हैं। घरों पर बुलडोजर चलाने, इतिहास के प्रफेसर और यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स पर मुकदमे ठोकने, नॉनवेज खाना बेचते ठेले वालों को भगाने, हलाल मीट और नमाज पढ़ने की जगहों को लेकर विवाद खड़ा करने और निचली अदालतों में 'यह मस्जिद तो मंदिर है' की याचिकाएं स्वीकार किए जाने जैसी तमाम बातें वह माहौल तैयार कर रही थीं, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी की किसी प्रवक्ता को यह लगे कि 'मेरे आराध्य शिवलिंग' के बारे में अनापशनाप बातें कही जा रही हैं और इसलिए गुस्से में आकर वह किसी और धर्म के लोगों को ठेस पहुंचाने वाली बातें कह दे। इस सबका इकलौता कारण है पार्टी और सरकार के सर्वोच्च स्तर का ढीला-ढाला रवैया। इलाज भी इसका यही है कि सर्वोच्च नेतृत्व की तरफ से स्पष्ट संकेत जाए कि ऐसा रवैया नहीं चलेगा और जो भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या पार्टी के नेता, कार्यकर्ता इस संकेत की अनदेखी करें उनके खिलाफ तत्काल और सख्त कार्रवाई हो।