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- समाज की शक्ति जगाने का...
डॉ. विशेष गुप्ता: कोरोना की इस दूसरी लहर के बीच एंबुलेंस के बार-बार बजते सायरन अब डराने लगे हैं। जिन्हेंं ऐसे सायरन नहीं सुनाई देते या नहीं डराते, उन्हेंं भी यह भय सता रहा है कि कोरोना के लक्षण आ गए तो अस्पतालों में जगह मिलेगी या नहीं? अगर घर में आइसोलेशन में रहें तो पता नहीं ऑक्सीजन मिले या नहीं? कहीं इस आऑक्सीजन के अभाव में मृत्यु का वरण न हो जाए? यह भय भी सता रहा है कि बाकी परिवार के सदस्य यदि संक्रमित हो गए तो क्या होगा? पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार, मित्र यहां तक कि सगे-संबंधी तक इस त्रासदी के बीच किनारा करते दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि हर किसी को संक्रमित होने का भय है। कोरोना की इस लहर में इंसानियत कराह रही है। मानवीय संवेदनाएं घायल अवस्था में हैं। नैसर्गिक संबंध भी अब कृत्रिम से नजर आ रहे हैं। लगता है जैसे कोरोना संक्रमण की इस दूसरी लहर में सामाजिक के साथ-साथ मानवीय संबंध भी संक्रमित होने लगे हैं। संकट के इस कालखंड में मौत अब संस्कारों का हिस्सा न रहकर गणित के सवालों में उलझ गई है। कोरोना ने लोगों को अकेला ही नहीं किया है, बल्कि अब तो लगता है जैसे लोगों के बीच संबंधों के अर्थविहीन होने की स्थिति बन रही है।