सम्पादकीय

समय बदल चुका है इसलिए हमें अपनी सारी इंद्रियों को लगातार सद्कर्म में लगाए रखना होगा

Gulabi
11 Dec 2021 4:14 PM GMT
समय बदल चुका है इसलिए हमें अपनी सारी इंद्रियों को लगातार सद्कर्म में लगाए रखना होगा
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‘प्रजा नाकारा, राजा निष्ठुर हो जाएंगे’ ऐसा कलियुग के लिए शास्त्रों में लिखा है

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:

'प्रजा नाकारा, राजा निष्ठुर हो जाएंगे' ऐसा कलियुग के लिए शास्त्रों में लिखा है। हम देख भी रहे हैं कलियुग की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। शास्त्रों का वचन है- 'सुपुष्पित: स्यादफल: फलवान् स्याद् दुरारुह:। इसका अर्थ है राजा को ऐसे पेड़ के समान बन जाना चाहिए जिसमें फूल तो बहुत हों, फल बिलकुल न लगें। बड़ी गहरी बात है यह।
प्रजा की आदत होती है मदारी के खेल देखने की। फिर, यदि राजा ही मदारी बन जाए तो क्या बात है। पिछले दिनों एक बड़े राजनीतिक दल के नेता ने अपने लोगों से कहा कि कार्यकर्ता खाली बैठे हैं, आप उन्हें काम नहीं दे पा रहे। सही है, चूंकि देश आगे चुनावों की तैयारी कर रहा है, तो यह जरूरी भी है। इस दृश्य को अपने आध्यात्मिक जीवन से जोड़िए।
परमात्मा कहता है तुमने अपनी इंद्रियों को खाली छोड़ रखा है, इन्हें कुछ काम दो, वरना ये तुम्हें गलत रास्ते पर ले जाएंगी। इसलिए हमें अपनी सारी इंद्रियों को लगातार सद्कर्म में लगाए रखना होगा। समय बदल चुका है। संवेदनाएं, भावनाएं समाप्त हो चुकी हैं। पहले तो किसी एक के दिल में तबाही होती थी, सारा मोहल्ला रोता था। आज सबकुछ निष्ठुरता से चल रहा है। ऐसे में निष्ठुर हो जाइए अपनी इंद्रियों के प्रति और उन्हें सद्कार्य में लगाइए। हमें एक ऐसा वृक्ष बनना है जिसमें फूल भी हों, फल भी लगें और हम सबके काम आ सकें।
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