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- समय बलवान
Written by जनसत्ता: उधर कुछ समय से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। इधर हमारे देश में भी हिंसा ने जन्म ले लिया है। धर्म के नाम पर दंगे हो रहे हैं। इसके चलते सभी जगह नकारात्मकता फैल रही है। इन सबके अलावा इस बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी का हाल बेहाल हो गया है। अब कोरोना भी फिर से दस्तक दे रहा है। चीन में तो इस महामारी ने हाहाकर मचाना शुरू भी कर दिया है। पता नहीं इन समस्याओं का अंत कब और कैसे होगा। पर समय हमेशा एक-सा नहीं रहता, बदलता है। समय से बलवान कोई नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों में शराब की खपत काफी बढ़ी है। देश का आज लगभग हर वर्ग इससे प्रभावित है। अक्सर अलग-अलग राज्यों में खबरें सुनते हैं कि शराब की वजह से लोगों की मौत हो जाती है। इसके साथ ही इससे होने वाली बीमारियां भी बढ़ रही हैं। इससे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अक्सर महानगरों में देखते हैं कि शाम ढलते ही कैसे लोग सड़कों के किनारे, चौक-चौराहों पर खुलेआम शराब पीते रहते हैं, लेकिन इस पर न तो सरकार का ध्यान है और न ही स्थानीय प्रशासन का।
इसके उपभोग पर नियंत्रण न कर पाने का पहला कारण है, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी। शराबबंदी को लेकर सभी राजनीतिक दल एकमत नहीं हैं। दूसरा कारण है, राजस्व की लालसा। तीसरा कारण है, सामाजिक एकता का अभाव। हमारे समाज में शराब का सेवन करने वाले व्यक्ति को उसका निजी मामला कह कर अक्सर लोग बचते हैं, जबकि हम इनका सामाजिक बहिष्कार करके सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
चौथा कारण है पांचवा कारण है, इसकी कालाबाजारी, जो सरकार की नीतियों और कानूनों में सेंध लगाने का काम करती है। पांचवां कारण है पश्चिमी दुनिया का हमारे ऊपर व्यापक प्रभाव पड़ा है। अब हमें समझना होगा कि अगर हम एक स्वस्थ समाज चाहते हैं, तो बढ़ रही इस विकराल समस्या को रोकने के लिए हमें तत्काल प्रभाव से ठोस और प्रभावकारी कदम उठाने होंगे।
खाद्य उत्पादों, दवाई, पेट्रोल-डीजल और अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की दिनोंदिन बढ़ती कीमतों ने आम आदमी को अपने खर्चों में कटौती पर मजबूर कर दिया है। यह महंगाई न तो सिर्फ कोरोना की देन है, न रूस यूके्रन युद्ध की। पेट्रो उत्पाद की कीमतों में वृद्धि तो युद्ध से जुड़ी है, लेकिन सब्जी, आटा-दाल की अपने देश में बहुतायत में उपलब्धता है। इनका सही और उचित समय और जगह पर वितरण अगर हो जाए तो गरीब को भूखों नही मरना पड़ेगा। इस वर्ष भी अनाज की बंपर पैदावार हुई है, सरकार सुनिश्चित करे कि वह अमीरों के गोदाम के बजाय सही थाली तक जाए।
महंगाई से अगर मांग घटी तो निवेश घटेगा और पूरी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है। इसलिए सरकार कोशिश करे कि मनरेगा या अनाज वितरण जैसी योजनाओं को बनाए रखे, क्योंकि लंबी अवधि में यह मांग को बनाए रखने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।