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![राजनीति में आत्मचिंतन का समय: राजनीति राष्ट्रनिर्माण की दीर्घकालीन तप साधना है, आरोप-प्रत्यारोप का खेल नहीं राजनीति में आत्मचिंतन का समय: राजनीति राष्ट्रनिर्माण की दीर्घकालीन तप साधना है, आरोप-प्रत्यारोप का खेल नहीं](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/03/01/964112-ed.webp)
भारत के वैभव का अनुष्ठान राजनीति है। राष्ट्रजीवन से जुड़े आदर्शों के बिना लोकतांत्रिक राजनीति संभव नहीं। संविधान निर्माताओं ने पूरी राजव्यवस्था का चित्र बनाया है। संविधान में अनेक संस्थाएं हैं। उनका सम्मान सबका कर्तव्य है। संसदीय जनतंत्र में राजनीतिक विचारधाराएं दलों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। चुनाव में किसी दल या समूह को बहुमत मिलता है। उसे पांच वर्ष के लिए काम करने का संवैधानिक अधिकार है। विपक्ष सरकार की आलोचना करता है, लेकिन कुछ समय से सरकारों के शासन करने के अधिकार को चुनौती दी जा रही है। विधायिका द्वारा पारित कानूनों को भी खारिज किया जा रहा है। यह स्थिति संवैधानिक जनतंत्र के लिए भयावह है। नीति आयोग की हालिया बैठक में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसी निराशाजनक राजनीति पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना का राजनीतिकरण हो रहा है। सरकारों के प्रत्येक काम को वोट के नजरिये से देखा जाता है। पटनायक ने कहा कि परिपक्व जनतंत्र में निर्वाचित सरकार को जनहित में काम करने का अवसर मिलना ही चाहिए।