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श्रीलंका जैसी विकट परिस्थितियों से दो चार है, उन्हें देखते हुए भारत को न केवल सतर्क रहना होगा
सोर्स- जागरण
श्रीलंका जैसी विकट परिस्थितियों से दो चार है, उन्हें देखते हुए भारत को न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि इसकी कोशिश भी करनी होगी कि यह पड़ोसी देश यथाशीघ्र राजनीतिक अस्थिरता और अर्थिक संकट के दुष्चक्र से बाहर निकले। भारत पिछले कई माह से श्रीलंका की हरसंभव तरीके से सहायता करता आ रहा है, लेकिन वहां के हालात संभलते नहीं दिख रहे हैं। निश्चित रूप से इसके लिए वहां की सरकार ही जिम्मेदार है। यदि राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे मार्च-अप्रैल में सत्ता छोड़ देते तो शायद स्थितियां इतनी गंभीर नहीं होतीं।
कम से कम अब तो गोटाबाया राजपक्षे को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजनीतिक अस्थिरता का कोई ठोस समाधान निकले। इस समाधान के लिए विपक्षी दलों को भी सक्रिय होना होगा। यह सही है कि भारत श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, लेकिन उसे यह देखना होगा कि उसके द्वारा जो आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है, उसका समुचित इस्तेमाल हो और वहां जितनी जल्दी संभव हो, राजनीतिक स्थिरता कायम हो। यदि राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं होती तो आर्थिक हालात भी सुधरने वाले नहीं हैं।
इसका अंदेशा है कि यदि श्रीलंका की स्थितियां और बिगड़ीं तो वहां से लोगों का पलायन शुरू हो सकता है और यह स्वाभाविक है कि लोग भारत की ओर भी रुख करेंगे। ध्यान रहे कि पिछले कुछ दिनों में कई श्रीलंकाई नागरिकों ने तमिलनाडु में आकर शरण ली है। भारत को श्रीलंका के राजनीतिक नेतृत्व को एकजुट होकर समस्याओं का समाधान निकालने का संदेश देने के साथ वहां की जनता के समक्ष भी यह रेखांकित करना होगा कि विरोध प्रदर्शन हिंसक न होने पाएं। श्रीलंका के लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है, लेकिन यह ठीक नहीं कि वे आवेश में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं को अंजाम दें। विरोध प्रदर्शन के नाम पर सरकारी या निजी संपत्ति को नष्ट करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
श्रीलंका की पुलिस और सेना को यह देखना होगा कि प्रदर्शनकारियों के बीच कुछ अराजक तत्व तो सक्रिय नहीं हैं? यह शुभ संकेत नहीं कि गत दिवस प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के निजी आवास को आग के हवाले कर दिया। आगजनी और तोड़फोड़ की कुछ घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। आश्चर्य नहीं कि इन घटनाओं के पीछे कुछ विदेशी ताकतों का भी हाथ हो। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले कुछ समय से विभिन्न देशों में राजनीतिक अस्थिरता का जो माहौल बना है, उसके पीछे विदेशी शक्तियों की सक्रियता देखी गई है। भारत को इस पर कड़ी निगाह रखनी होगी कि श्रीलंका में ऐसी शक्तियां सक्रिय न होने पाएं। चूंकि श्रीलंका के साथ कुछ अन्य पड़ोसी देश भी आर्थिक संकट से जूझते दिख रहे हैं इसलिए भारत को समय रहते उन्हें भी सावधान करना होगा।
Rani Sahu
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