सम्पादकीय

विश्व स्वास्थ्य संगठन में बदलाव का वक्त: डब्ल्यूएचओ को सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसी शक्तियां प्रदान करना समय की मांग

Triveni
31 May 2021 5:22 AM GMT
विश्व स्वास्थ्य संगठन में बदलाव का वक्त: डब्ल्यूएचओ को सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसी शक्तियां प्रदान करना समय की मांग
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वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना को साकार रूप देने के लिए जब अंतरराष्ट्रीय राजनयिक बिरादरी जुटी तो एक वैश्विक स्वास्थ्य संस्था के गठन का विचार भी उनके विमर्श के केंद्र में था।

भूपेंद्र सिंह | वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना को साकार रूप देने के लिए जब अंतरराष्ट्रीय राजनयिक बिरादरी जुटी तो एक वैश्विक स्वास्थ्य संस्था के गठन का विचार भी उनके विमर्श के केंद्र में था। इस प्रकार 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ अस्तित्व में आया। महामारी नियंत्रण, क्वारंटाइन उपाय और दवा मानकीकरण जैसे विशिष्ट कार्य उसे पूर्ववर्ती लीग ऑफ नेशंस से विरासत में मिले। पेरिस स्थित इंटरनेशनल ऑफिस ऑफ पब्लिक हेल्थ का भी डब्ल्यूएचओ में ही विलय हो गया। तबसे अब तक वैश्विक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अध्याय सात के अनुप्रयोगों का तत्काल विस्तार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। उनके अभाव में डब्ल्यूएचओ एक निष्प्रभावी संस्थान बना रहेगा। समय की मांग है कि डब्ल्यूएचओ को सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ जैसी शक्तियां प्रदान की जाएं। ऐसा न किए जाने से डब्ल्यूएचओ अपने समक्ष उत्पन्न गंभीर चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं हो सकेगा

महामारी के नियंत्रण से लेकर लापरवाही बरतने वाले देशों की जवाबदेही तय होनी चाहिए
इस बात से बिल्कुल इन्कार नहीं किया जा सकता कि कोविड-19 जैसी महामारी से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जैसे जोखिम उत्पन्न हुए हैं, वे किसी भी मामले में मनी लांड्रिंग या आतंक को वित्तीय मदद पहुंचाने जैसे खतरों से जरा भी कम नहीं हैं। इसके बावजूद डब्ल्यूएचओ के कोई विशिष्ट सार्वभौमिक अंतरराष्ट्रीय जन स्वास्थ्य मानक नहीं हैं, जो सभी देशों पर एकसमान रूप से लागू होते हों। विशेषकर महामारी के नियंत्रण से लेकर लापरवाही बरतने वाले उन देशों की जवाबदेही तय कर पाने को लेकर कोई प्रविधान नहीं, जो देश महामारी से जुड़ी सूचनाओं की स्वतंत्र समीक्षा के लिए उन्हेंं साझा करने से कतराते हों।
डब्ल्यूएचओ का वुहान शहर का दौरा, जहां से कोरोना वायरस फैला था
डब्ल्यूएचओ संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मुद्दों पर काम करती है। कोविड-19 महामारी से निपटने में अपनी भूमिका को लेकर यह संस्था चर्चा के केंद्र में रही है। महामारी फैलने के बाद इस वायरस के उद्गम स्थल को लेकर भी अंदरखाने एक बहस शुरू हो गई है। पहली बार कोरोना वायरस के पकड़ में आने और विश्व को समय से उसकी सूचना देने और उससे निपटने के लिए पर्याप्त प्रयासों जैसे बिंदु भी र्चिचत रहे। मई 2020 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने डब्ल्यूएचओ से कहा था कि वह वायरस के स्नोत और उसके मानवीय आबादी में प्रसार की पड़ताल करे। इसके बाद डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों ने इस साल 14 जनवरी से 10 फरवरी के बीच चीन के उस वुहान शहर का दौरा किया, जहां से कोरोना वायरस फैला था। फिर 30 मार्च, 2021 को डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट जारी की, जिसकी अमेरिका और जापान जैसे 14 देशों के समूह ने आलोचना की। उन्होंने इस रिपोर्ट को अपूर्ण और बहुत देर से जारी की गई, करार दिया, जिसमें पर्याप्त तथ्यों का अभाव रहा। इस पर डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस ने यही कहा कि यह निष्कर्ष अपर्याप्त है। हालांकि टीम का मानना है कि प्रयोगशाला से वायरस के लीक होने की परिकल्पना के पुष्ट होने के आसार बहुत कम हैं, जिसकी आगे और जांच की दरकार है।
संयुक्त राष्ट्र तंत्र और डब्ल्यूएचओ को सीखने की आवश्यकता
संयुक्त राष्ट्र तंत्र और डब्ल्यूएचओ को एफएटीएफ के अनुभव से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उसे जनस्वास्थ्य को लेकर व्यापक नियमों के मानक बनाने होंगे। भविष्य में संभावित महामारियों के प्रबंधन और उनसे निपटने में सदस्य देशों की अपेक्षाओं और इन मानकों के अनुपालन में इन देशों के लिए एक ढांचा उपलब्ध कराने के साथ-साथ अनुपालन न करने की स्थिति में प्रतिबंधों का प्रविधान करना होगा। मामले की गंभीरता को लेकर जागरूरता का प्रसार और भविष्य में संभावित महामारियों के जोखिमों को घटाने की दिशा में प्रयास करने होंगे।
प्रविधानों में दंडात्मक शुल्क, आवाजाही प्रतिबंध और अन्य आर्थिक प्रतिबंध शामिल होने चाहिए
इस ढांचे में सदस्य देशों का दायित्व भी स्पष्ट रूप से रेखांकित होना चाहिए, जो स्वतंत्र जांच-पड़ताल के लिए संबंधित सूचनाएं एवं आंकड़े उपलब्ध कराएं, बिल्कुल वैसे जैसे आइएमएफ, संयुक्त राष्ट्र और एफएटीएफ प्रणाली में होता है। साथ ही इस मामले में सहयोग नहीं करने के परिणाम भुगतने का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए। इसमें एफएटीएफ तंत्र से प्रविधान लिए जा सकता हैं। इन प्रविधानों में दंडात्मक शुल्क, आवाजाही प्रतिबंध और अन्य आर्थिक प्रतिबंध शामिल होने चाहिए। यदि इसे अमल में लाया जाता है तो इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक अंतरराष्ट्रीय समन्वय एवं पर्यवेक्षण प्रणाली के लिए राह खुलेगी।
डब्ल्यूएचओ संविधान का अनुच्छेद एक सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य
डब्ल्यूएचओ संविधान का अनुच्छेद एक सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर के लक्ष्य को परिभाषित करता है। वहीं अनुच्छेद दो संगठन के कार्यों पर प्रकाश डालता है। इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय मानकों और महामारी से निपटने के लिए कदम उठाने का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे में इस संविधान की समीक्षा आवश्यक हो गई है।
डब्ल्यूएचओ के लक्ष्यों को बेहतर तरीके से हासिल करना
बदली हुई परिस्थितियों में डब्ल्यूएचओ के लक्ष्यों को बेहतर तरीके से हासिल करने के लिए कुछ संशोधन आवश्यक हों तो वे किए जाएं। वर्ष 2017 में दावोस में हुए विश्व आर्थिक मंच यानी डब्ल्यूईएफ के मंच पर भविष्य के संभावित वैश्विक ढांचे से जुड़ी तीन अवधारणाएं पेश की गईं। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विश्व व्यवस्था से अमेरिका के पीछे हटने, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की बीआरआइ यानी बेल्ट एंड रोड एनिशियेटिव के इर्दगिर्द नए वैश्विक आर्थिक ढांचे के अलावा इमैनुअल मैक्रों और जस्टिन ट्रूडो की वर्तमान उदारवादी व्यवस्था पर दोहरे वार की दुहाई जैसी अवधारणाएं प्रमुख रहीं। बहरहाल फिलहाल जो वैश्विक घटनाक्रम आकार ले रहा है, उसमें मौजूदा नेतृत्व का ध्यान कहां केंद्रित दिखता है?
भविष्य में दस्तक देने वाली महामारियां और तबाही ला सकती हैं
हमें राष्ट्र-राज्य प्रभुत्व का निर्माण और उसके सशक्तीकरण के साथ ही गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन का संरक्षण भी संबद्ध करना होगा। मौजूदा महामारी के प्रभाव से हमेशा के लिए मुक्ति नहीं मिलने वाली, क्योंकि भविष्य में दस्तक देने वाली महामारियां और तबाही ला सकती हैं। यहां तक कि कम प्रभावित क्षेत्रों को भी इसकी तपिश झेलनी पड़ सकती है। कुल मिलाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में कारगर वैश्विक ढांचे और सहयोग-समन्वय में ही समझदारी निहित है।


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