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भूपेंद्र सिंह | वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना को साकार रूप देने के लिए जब अंतरराष्ट्रीय राजनयिक बिरादरी जुटी तो एक वैश्विक स्वास्थ्य संस्था के गठन का विचार भी उनके विमर्श के केंद्र में था। इस प्रकार 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ अस्तित्व में आया। महामारी नियंत्रण, क्वारंटाइन उपाय और दवा मानकीकरण जैसे विशिष्ट कार्य उसे पूर्ववर्ती लीग ऑफ नेशंस से विरासत में मिले। पेरिस स्थित इंटरनेशनल ऑफिस ऑफ पब्लिक हेल्थ का भी डब्ल्यूएचओ में ही विलय हो गया। तबसे अब तक वैश्विक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अध्याय सात के अनुप्रयोगों का तत्काल विस्तार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। उनके अभाव में डब्ल्यूएचओ एक निष्प्रभावी संस्थान बना रहेगा। समय की मांग है कि डब्ल्यूएचओ को सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ जैसी शक्तियां प्रदान की जाएं। ऐसा न किए जाने से डब्ल्यूएचओ अपने समक्ष उत्पन्न गंभीर चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं हो सकेगा