- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- शिक्षक सम्मान की...

x
पुरस्कार प्राप्त करने की इच्छा किसे नहीं होती। सभी चाहते हैं कि उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट एवं उल्लेखनीय सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, प्रशासनिक, राजनीतिक या किसी भी क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए उन्हें मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पहचान मिले तथा उनका अलंकरण हो। योग्य तथा कर्मठ व्यक्तियों को पुरस्कृत तथा सम्मानित करना किसी भी व्यवस्था संचालन तथा भविष्य में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रशासन या प्रबन्धन के लिए आवश्यक भी है। पुरस्कारों से प्रेरणा, पहचान, प्रोत्साहन तथा मनोबल बढ़ता है। बशर्ते कि चयन प्रक्रिया के निश्चित मानक हों तथा पुरस्कार योग्यता व उपलब्धियों पर आधारित हों, न कि ‘पुरस्कार प्रबन्धन कौशल’ से प्राप्त हों। जुगाड़ से प्राप्त पुरस्कारों से जीवन भर आत्मग्लानि ही होती है। वैसे आत्मसम्मान, आत्मशांति तथा आत्मसंतोष से बढक़र दुनिया में कोई पुरस्कार नहीं है। विगत कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में पांच सितम्बर को दिए जाने वाले शिक्षक पुरस्कार चयन की प्रक्रिया विवादास्पद ही रही है। फलस्वरूप बार-बार कोई न कोई बदलाव होता रहा है। चयन प्रक्रिया तथा चयनकर्ताओं पर उंगलियां उठती रही हैं। माननीय न्यायालयों में चयन प्रक्रिया के विरुद्ध केस दायर हुए। झूठे दस्तावेज, फोटो, प्रमाणपत्र, जुगाड़ से प्राप्त किए प्रशासनिक अधिकारियों, सामाजिक संस्थाओं तथा राजनेताओं के प्रशंसा पत्र लगाकर पुरस्कार के दावे प्रस्तुत किए जाने के आरोप लगाते रहे हैं।
पुरस्कार प्रदान करने के बाद वापस करने तक को भी कहा गया। इसका कारण या तो व्यक्ति की श्रेष्ठता विभिन्न मानकों के मकडज़ाल में फिट नहीं बैठती या फिर चयन प्रक्रिया तथा संबंधित महत्वाकांक्षी व्यक्ति दोषी होता है। सम्मान चाहने वाले व्यक्तियों में भी तीव्र महत्वाकांक्षा तथा प्रतिस्पर्धा पाई जाती है। अनेकों बार महत्वाकांक्षी व्यक्ति अपना कार्य छोड़ कर केवल पुरस्कारों के आवेदन, प्रबन्धन तथा जुगाड़ पर ही केन्द्रित रहते हैं। इससे भी योग्य, कर्मठ तथा ईमानदारी से कार्य करने वालों की उपेक्षा होने से उनका मनोबल भी कमजोर होता है। हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में पुरस्कार चयन नियमावली में अनेक बार परिवर्तन हुए। कुछ वर्ष पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा शिक्षक दिवस पर जनजातीय क्षेत्र से किसी भी अध्यापक को पुरस्कृत न किए जाने पर आक्रोशित होकर शिक्षक चयन के लिए नई नीति बनाने के आदेश दिए। परिणामस्वरूप 24 सितम्बर 2015 में एक नई शिक्षक पुरस्कार योजना सामने आई। तदोपरांत पांच वर्षों तक निरंतर शत-प्रतिशत परीक्षा परिणाम देने वाले अध्यापकों को सम्मानित करने के लिए योजना बनी, लेकिन यह कार्य भी आगे नहीं बढ़ सका। पिछली सरकार ने कुछ वर्षों से बिना आवेदन के दो शिक्षकों को सम्मानित करना शुरू किया था। अब वर्तमान सरकार ने 2015 की शिक्षक पुरस्कार योजना नीति को वापस ले लिया है। पूर्व में राज्य शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों के कार्यकाल में एक वर्ष तथा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों को दो वर्ष के सेवाकाल की वृद्धि की जाती थी। उसके बाद पुरस्कार विजेताओं को एकमुश्त 40000 तथा 60000 सम्मान राशि देने का प्रावधान रखा गया।
प्रदेश ‘अवार्डी टीचर्स एसोसिएशन’ काफी समय से इसके विरोध में मांग उठाती रही है। अब सरकार पुरस्कृत अध्यापकों का सेवा विस्तार नहीं करेगी बल्कि इच्छुक पुरस्कृत अध्यापकों को अगर वो चाहें तो निश्चित वेतन पर एक वर्ष के लिए पुन: रोजगार पर नियुक्त करेगी। अन्यथा पुरस्कार के लिए निश्चित एकमुश्त राशि का भुगतान करेगी। शिक्षक पुरस्कारों के बारे में बार-बार बदल रहे नियमों, मानकों तथा विवादास्पद चर्चाओं से बेहतर एवं आवश्यक है कि इन पुरस्कारों तथा शिक्षकों की गरिमा व विश्वसनीयता को बनाए कर रखा जाए। शिक्षा व्यवसाय नहीं बल्कि एक मिशन है। अध्यापक के लिए जीवन निर्माण की प्रक्रिया है। मजदूरों, किसानों, बागवानों, सैनिकों, कर्मचारियों, डाक्टरों, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, उद्योगपतियों, अभिनेताओं, राजनेताओं, प्रधानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों की पृष्ठभूमि में शिक्षक निर्माता के रूप में अपनी अतुलनीय भूमिका निभाता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों को विवादास्पद या चर्चा का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। आवश्यक हो तो कुछ समय के लिए इन पर विराम लगा देना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इन पुरस्कारों के लिए आवेदन नहीं मांगे जाने चाहिए। पुरस्कार मांगा नहीं जाना चाहिए बल्कि स्वतन्त्र व्यवस्था द्वारा प्रदान किया जाना चाहिए। चयन प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता होनी चाहिए। शिक्षा विभाग द्वारा अध्यापकों के चयन की स्वचलित प्रक्रिया होनी चाहिए। राज्य शिक्षा प्रशासन से लेकर जिला तथा स्थानीय स्तर तक प्रशासकीय आंख हर समय खुली रहनी चाहिए। उत्कृष्ट परिणामों के लिए इनाम तथा विपरीत स्थिति में दण्ड का विधान होना भी आवश्यक है। शिक्षकों के आचरण, उत्कृष्ट कार्यों, उपलब्धियों तथा परिणामों का सम्मान होना ही चाहिए, न कि मधुर सम्बन्धों को अधिमान दिया जाना चाहिए। शिक्षक सम्मान नीति में न केवल शिक्षकों के लिए बल्कि चयन प्रक्रिया तथा चयनकर्ताओं के लिए भी मानक निश्चित किए जाने चाहिए।
मशहूर शायर मिर्जा गालिब का एक शे’र याद आ रहा है, ‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक।’ इस नीति में अनेकों बार परिवर्तन हो चुके हैं तथा पता नहीं कब तक स्थायी एवं सर्व स्वीकार्य शिक्षक निर्माण नीति बन कर तैयार होगी। शिक्षा क्षेत्र में अनेकों अध्यापक निष्ठा, समर्पण तथा कर्मठता व समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। यही कारण है कि शिक्षा व्यवस्था चल रही है। बहरहाल, शिक्षक सम्मान नीति निर्माण इतना आसान भी नहीं है। इस प्रक्रिया में कौन फार्मूला, नियम तथा मानक कारगर साबित हों, कहा नहीं जा सकता। आवश्यक यह है कि शिक्षकों को कर्मठता, ईमानदारी तथा समर्पित भाव से मानवीय जीवन निर्माण का कार्य करना चाहिए, न कि पुरस्कार के लिए तड़पना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षकों को समर्पित एवं शुद्ध नि:स्वार्थ भाव से कार्य कर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपना श्रेष्ठ योगदान देना चाहिए। अंतत: अच्छे कर्म का फल अवश्य मिलता है।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal

Rani Sahu
Next Story