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तिहाड़ जेल (Tihar Jail) के सुरक्षा इंतजामों में कहीं कोई कोर-कसर बाकी नहीं है. करीब 450 करोड़ का भारी-भरकम या कहिए मोटा सालाना बजट है
संजीव चौहान |
तिहाड़ जेल (Tihar Jail) के सुरक्षा इंतजामों में कहीं कोई कोर-कसर बाकी नहीं है. करीब 450 करोड़ का भारी-भरकम या कहिए मोटा सालाना बजट है. 16 जेलों में 1180 के करीब सीसीटीवी का चप्पे-चप्पे पर जाल बिछा है. 250 से ज्यादा मेटल-डिटेक्टर्स का घना जाल है. हर जेल में तमाम गुप्त जगहों पर जैमर और बॉडी स्कैनर भी, किसी बच्चे की बर्थडे के दौरान लगाए गए गुब्बारों की तरह यहां-वहां लटके-चिपके हुए दिखाई दे जाते हैं. तिहाड़ (Delhi Jail) सहित दिल्ली की मंडोली, रोहिणी जेलों की ऊंची दीवारों के हर कोने पर मौजूद गगनचुंबी ऊंचे टॉवर्स के ऊपर, 24 घंटे उच्च क्षमता वाली दूरबीन, अत्याधुनिक स्वचालित हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मी. खेतों की रखवाली को खड़े किए गए 'पुतलों' की मानिंद खड़े देखे जा सकते हैं. सौ टके का सवाल यह है कि आखिर फिर तिहाड़ का वो कौन सा तिलिस्म है जिसके चलते, गगनचुंबी चार-दीवारी के भीतर के चक्कर में जो फंसा वही 'घनचक्कर' बन जाता है? पेश है टीवी9 भारतवर्ष द्वारा तिहाड़ की 'तह' से तलाश कर बाहर लाए गए, इसके तिलिस्म से जुड़े ऐसे ही हर सवाल-जवाब के जरिए दिल्ली की जेलों के सच और झूठ को "तार-तार" करती यह कहानी
मतलब देश की राजधानी दिल्ली में खर्चे-कमाई के हिसाब से सब फिट है. अगर कुछ "अनफिट" है तो वह है यहां की चाक चौबंद सुरक्षा! जिसके लिए हिंदुस्तान की हर हुकूमत एड़ी से चोटी तक का जोर लगाए रहती है. इन तमाम कथित अभेद्य इंतजामों के बाद भी तिलिस्मी तिहाड़ के जग-जाहिर ढीले सुरक्षा इंतजामों का आलम ये है कि, तिहाड़ सहित दिल्ली की जिस भी जेल के जिस कोने में झांकिए, वहीं कोई ना कोई छेद दिखाई पड़ जाता है. ऐसे कथित मजबूत सुरक्षा इंतजामों और एशिया की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली दिल्ली की जेलों से, कभी कुख्यात महिला सीरियल किलर ड्रग तस्कर हतचंद भाओनानी गुरुमुख चार्ल्स शोभराज (Hotchand Bhawnani Gurumukh Charles Sobhraj) भाग जाता है. कभी तमाम सुरक्षा तामझाम वाली तिहाड़ जेल की सलाखों से बैंडिट क्वीन फूलन देवी (Phoolan Devi Murder) का हत्यारोपी, पंकज सिंह पुण्डीर (Pankaj Singh Pundir alias Sher Singh Rana) टहलता हुआ सलाखों से बाहर सरक जाता है. रही-सही कसर अब इन दिनों जेल के अंदर चल रहे मोबाइल फोन इस्तेमाल के 'डर्टी गेम' ने अब पूरी कर दी है.
तिहाड़ की कमजोर सलाखों में कुछ भी संभव!
दिल्ली की जेल में बंद एक्ट्रेस जैकलीन फर्नांडिस को कीमती गिफ्ट देकर जेल पहुंचने वाला महाठग सुकेश चंद्रशेखर हो, या फिर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड में और फिलहाल दिल्ली की जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई. सुकेश चंद्रशेखर की तिहाड़ के सात-तालों में सेवा-पानी के बदले रातों-रात धन्नासेठ बनने के चक्कर में "घनचक्कर" बने, दिल्ली जेल के कई अफसर-कर्मचारी आज अपनी ही जेल में बहैसियत मुलजिम गिरफ्तार हुए पड़े हैं.
पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के मुख्य षडयंत्रकारी गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के बारे में कहा जा रहा है कि, दिल्ली की जेल के अंदर से उसी ने सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या का ब्लू-प्रिंट तैयार किया था! मतलब दिल्ली की जेलों की चार-दीवारी सरकारी कागजों में गगनचुंबी हो तो हो, हकीकत में इन बौनी दीवारों के इर्द-गिर्द से निकलने वाले भी दिल्ली की जेलों के अंदर आराम से ताकझांक कर लेते हैं.
अब से कुछ वक्त पहले इस संवाददाता से बातचीत के दौरान दिल्ली जेल के मौजूदा महानिदेशक (DG Tihar Jail) संदीप गोयल ने खुद भी स्वीकार किया था कि, "हमारी कुछ जेलों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल होता है. इस मोबाइल फोन नेक्सस को तबाह करना बहैसियत डीजी दिल्ली जेल मेरी पहली चुनौती होगी."
डीजी तिहाड़ जेल ने खुद स्वीकारा था
तमाम सुरक्षा इंतजामों के बाद भी आखिर जेल में मोबाइल फोन कैसे पहुंच जाते है? इस सवाल के जवाब में तब डीजी दिल्ली जेल संदीप गोयल ने कहा था कि, "दरअसल जेल के ही कुछ स्टाफ की मिली भगत से अपराधी जेल की दीवारों के ऊपर से जेल के अंदर मोबाइल फोन फिंकवा लेते हैं. ऐसी मिलीभगत करने कराने वाले जेलकर्मियों के खिलाफ हमेशा कड़े कानूनी कदम भी उठाए जाते हैं." मौजूदा डीजी दिल्ली जेल संदीप गोयल तो अपनी जेलों में मोबाइल के ही इस्तेमाल की बात बता रहे हैं. दिल्ली जेल के पूर्व (रिटायर्ड) कानूनी सलाहकार सुनील गुप्ता से और भी रूह कंपाता सच बयान करते हैं.
टीवी9 भारतवर्ष से विशेष बातचीत के दौरान सुनील गुप्ता ने कहा,"दिल्ली की जेलों में मोबाइल पहुंचने या मोबाइल के इस्तेमाल पर हाय-तौबा मच मचाइए. मोबाइल-मोबाइल के शोर में असली बात और तिहाड़ के सुरक्षा इंतजामों की पोल खोलने वाली सच्चाई पाताल में ही दबी रह जाएगी. मैंने तो अपनी नौकरी के दौरान सन् 1983-1984 के दौर में इसी तिहाड़ सेंट्रल जेल के भीतर बम तक बरामद होते देखा था." सुनील गुप्ता की दो-टूक बानगी तो बयान करती है कि दिल्ली की जेलों से आम-आदमी डरता है तो डरे. यहां बंद खूंखार अपराधियों का दम तिहाड़ की ऊंची मगर बेहद कमजोर चार-दिवारी में कतई नहीं घुटता है. बस तिहाड़ के सींखचों में बंद अपराधी की जेब में दाम और दिमाग होना चाहिए.
तार-तार होती अरबों की फुलप्रूफ सुरक्षा
इन तमाम मुद्दों पर टीवी9 भारतवर्ष ने बुधवार (1 जून 2022) को दिल्ली जेल महानिदेशक संदीप गोयल से बात करनी चाही. उनसे बात नहीं हो सकी. हां, इस संवाददाता ने तिहाड़ जेल के पूर्व महानिदेशक और 1976 बैच के आईपीएस अधिकारी (दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर) नीरज कुमार से बात की. तिहाड़ जेल के पूर्व महानिदेशक नीरज कुमार ने तो तिहाड़ के तिलिस्म की बखिया ही उधेड़ कर रख डाली. टीवी9 भारतवर्ष के कुछ सवालों के जवाब में अगर नीरज कुमार कई जगहों पर दिल्ली जेलों की सुरक्षा में तमाम खामियों पर बेबाकी से बोलते नजर आए. तो कहीं-कहीं उन्होंने हमारे सवालों को सही मानने से इनकार कर दिया.
बकौल नीरज कुमार,"तिहाड़ जेल की सुरक्षा बाहर से देखने में और अंदर भी फुलप्रूफ है. इसमें शक नहीं है. हां इतना जरूर है कि अच्छाईया-बुराईयां और अच्छे-बुरे लोगों की मौजूदगी समाज में सब जगह होती है. तो ऐसे में भला दिल्ली की जेलें या उनके अफसर-सुरक्षाकर्मी फिर दूध के धुले कैसे हो सकते हैं? जेल में बंद अपराधियों से सांठगांठ करते पकड़े जाने वाले तमाम जेल अधिकारी और कर्मचारी आज भी अपनी ही जेल की सलाखों में गिरफ्तार हुए पड़े हैं." नीरज कुमार आगे कहते हैं, "दरअसल जेल में मोबाइल पहुंचना या पहुंचाने की कुरीति बहुत पुरानी है. हां, यह कहना गलत होगा कि दिल्ली की ही जेलों में यह सब कुकर्म होते हैं."
दुनिया भर की जेलों की दुश्वारियां समान
अपनी बात जारी रखते हुए नीरज कुमार आगे बोले, "मैं जब दिल्ली का जेल महानिदेशक था तब दुनिया भर के जेल अधिकारियों की एक इंटरनेशनल कांफ्रेंस सिंगापुर में आयोजित हुई थी. मुझे उस अंतरराष्ट्रीय जेल सम्मेलन में ऐसा कोई देश नहीं मिला, जिस देश के अधिकारियों ने अपनी जेलों की सिक्योरिटी 100 फीसदी फुलप्रूफ होने का दावा किया हो. किसी की समस्याएं कम या छोटी थीं. तो बहुत से देश के जेल अधिकारियों ने माना कि उनकी जेलों में बंद अपराधी सलाखों के अंदर भी, अपनी खतरनाक सोच को अंजाम देने का जुगाड़ भिड़ा ही लेते हैं." क्या आप यह कहना चाहते हैं कि दिल्ली की जेलों के ढीले बंदोबस्तों पर सवाल न उठाया जाए? इसके जवाब में नीरज कुमार ने कहा, "नहीं मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं. मैं तो कह रहा हूं कि दिल्ली की ही जेलों में मोबाइल के इस्तेमाल या फिर अपराधियों की साठगांठ पर शोर क्यों मचता है? इस समस्या से तो दुनिया की हर जेल कोई ज्यादा कोई कम पीड़ित है. जहां तक बात दिल्ली की जेलों की है तो इनकी सुरक्षा में तो चार-पांच स्तर की फोर्स तैनात है. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), आईटीबीपी (भारत तिब्बत सीमा पुलिस), दिल्ली की सशस्त्र पुलिस, तमिलनाडू स्पेशल पुलिस (टीएसपी) के साथ ही साथ दिल्ली जेल के सुरक्षाकर्मी और अधिकारी भी. दिल्ली की सभी 16 जेलों में दो-दो जैमर लगे हैं. मोबाइल ब्लॉकिंग सुविधा अमल में लाए जाने के इंतजाम जल्दी ही होने वाले हैं."
दूध के धुले लोग तो किसी भी जेल में नहीं
इतने चाक-चौबंद इंतजामों के बाद भी दिल्ली की जेलों में कैद गैंगस्टर नीरज बवानिया, लॉरेंस बिश्नोई से खूंखार बदमाश बेकाबू होना क्या शर्म की बात नहीं है? सवाल के जवाब में दिल्ली जेल के पूर्व डीजी नीरज कुमार कहते हैं, "हां है शर्म की बात. दूध के धुले हुए तो सब लोग दिल्ली की जेलों में भी नहीं है. यही वजह है कि सुकेश चंद्रशेखर से कैदियों की मदद करने के आरोप में, दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके जेल के ही 7-8 अधिकारी-सुरक्षाकर्मी अपनी ही जेल में मुलजिम बनकर कैद हैं." दिल्ली जेल की जिन ऊंची चार-दिवारों के इर्द-गिर्द कहते हैं कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता है, फिर उन्हीं जेलों की दीवारों को ऊपर से जेल के भीतर मोबाइल फोन फेंककर आखिर कैसे अपराधियों तक जेल में पहुंचा दिए जाते है? पूछे जाने पर नीरज कुमार ने कहा, "यह सब जेल के ही कुछ कर्मचारियों की मिली भगत से संभव होता है." बेबाक और टीवी9 भारतवर्ष से विशेष बातचीत के दौरान नीरज कुमार इस बात से इत्तिफाक रखते नजर नहीं आए कि, सबकुछ जेल अफसर-कर्मचारियों की मिली भगत से ही होता है. उन्होंने कहा कि, मैं जेल में मोबाइल इस्तेमाल की कुरीति पनपे होने की बात से इनकार नहीं करता, लेकिन यह भी बताना चाहता हूं कि सबकुछ जेल के अंदर मोबाइल से ही 'मैनेज' नहीं होता है.
ढीले जेल प्रशासन के साथ यह भी कम नहीं हैं
अक्सर दिल्ली पुलिस का वह स्टाफ (दिल्ली पुलिस थर्ड बटालियन आर्म्ड फोर्स का कुछ स्टाफ) जो जेल में बंद कैदियों को कोर्ट में पेशी या फिर अस्पताल लाने-ले जाने की जिम्मेदारी निभाता है, उसकी भी मिली-भगत के चलते जेल में कैद अपराधी बेकाबू-बेखौफ हो जाते हैं. अक्सर अपराधी जेल में बंदी के दौरान वहां उनसे मिलाई करने आए अपने परिचितों-रिश्तेदारों के जरिए भी बाहर कई आपराधिक घटनाओं का तानाबाना बुनने में कामयाब हो जाते हैं. नीरज कुमार की इन तमाम दलीलों के बीच मगर इस बात को भी हमें याद रखना होगा कि, दिल्ली की जेलों की सुरक्षा में तमिलनाडू स्पेशल पुलिस की तैनाती इसीलिए की गई है ताकि, भाषा की जानकारी के अभाव में कैदी और सुरक्षाकर्मी (तमिलनाडू स्पेशल पुलिस के जवान) ले-देकर सैटिंग न बैठा सकें. इसके बाद भी मगर तिलिस्मी तिहाड़ जेल में सुरक्षा इंतजामों का मटियामेट करना बदस्तूर जारी है. फिर चाहे वो दिल्ली की जेल में किसी कैदी के पास उसकी गर्लफ्रेंड पहुंचाने का मसला हो या फिर मादक पदार्थों पहुंचाने की बात. मतलब दिल्ली की जेलों की सुरक्षा दो नावों पर झूलती हुई चलती है. सुरक्षा इंतजामों में कोई कमी नहीं. हां, इन सुरक्षा इंतजामों में छेद करके उन्हें तार-तार करने के उपाए, सुरक्षा इंतजामों से भी कहीं आगे मौजूद हैं.
तिहाड़ जेल के तिलिस्म में एंटेलिया कांड के तार
जब बात तिलिस्मी तिहाड़ या फिर दिल्ली की बाकी किसी भी जेल के सुरक्षा इंतजामों में पैबंद या छेद की हो तो फिर, वह घटना भी याद दिलाना जरूरी है जब सन् 2019 में यहां तैनात जेल महानिदेशक को रातों-रात पद से हटा दिया गया था. तब चर्चाओं का बाजार गरम था कि वे जेल महानिदेशक खुद ही हरियाणा के एक बदनाम और सजायाफ्ता बुजुर्ग राजनीतिक मुजरिम को मोबाइल मुहैया कराने में जुटे थे. हालांकि, उन बे-सिर पैर की बातों की पुष्टि आज तक कभी नहीं हो सकी. सवाल मगर फिर वही कि जब कोई गड़बड़ उन डीजी तिहाड़ ने नहीं की थी तो फिर, उन्हें डीजी के पद से रातों-रात हटाकर मौजूदा डीजी आईपीएस संदीप गोयल की तैनाती.
आखिर हुकूमत को क्यों करनी पड़ गई थी? मतलब कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ रही ही होगी! ऐसा नहीं है कि तिहाड़ जेल अभी पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड में ही बदनाम हुई हो. बीते साल जब इंडियन मुजाहिद्दीन के तिहाड़ जेल में बंद आतंकवादी तहसीन अख्तर का नाम-काम-कुकर्म, मुंबई के एंटीलिया कांड से जुड़े थे तब भी ऐसा ही बवाल मचा था. उस वक्त भी दिल्ली की ही तिहाड़ जेल से मोबाइल के इस्तेमाल का राग अलापा गया था. मतलब तिलिस्मी दिल्ली की तिहाड़ हो या फिर कोई और जेल. हर जेल में कुछ न कुछ 'डर्टी गेम' हमेशा होता ही रहता है. बस जो उजागर हो जाए उस पर हो-हल्ला कुछ दिन मचा रहता है. उसके बाद कोई नया तमाशा बाहर आ जाता है.
कैदी ने DG से कबूली जेल में मोबाइल की बात
दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान दिल्ली जेल महानिदेशक पद पर तैनात रहने वाले नीरज कुमार बताते हैं कि, "मैं जब तिहाड़ जेल का डीजी था. उन्हीं दिनों एक ऐसा भी वाकया मेरे साथ पेश आया कि, जेल में बंद रह चुके एक कैदी ने मुझसे खुद ही कहा था कि जेल के भीतर उसके पास मोबाइल फोन था. उसने बताया था कि वह मोबाइल उस तक तिहाड़ की सुरक्षा में तैनात टीएसपी (तमिलनाडू स्पेशल पुलिस ) उसकी बात सुनकर मुझे हैरत तो नहीं हुई हां, मैं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया था. मैं सोच रहा था कि आखिर जेल की सुरक्षा में तैनात निचले स्तर के कर्मचारियों या फिर जेलों की सीधे सुरक्षा में तैनात अफसरों पर किसी भी तरह से अंकुश लगाना बेहद जरूरी है."
बातचीत के दौरान नीरज कुमार आगे कहते हैं कि, "जेल में पैसे खिलाकर अपराधी अपने काम निकलवाते रहते हैं. इसमें कोई शक नहीं है. मगर ऐसे जेल अफसरों-कर्मचारियों को अपनी ही जेल में बंद भी रहना पड़ता है. जैसा कि बीते साल ही दिल्ली जेल के कुछ दागी अफसर कर्मचारियों के साथ किया गया था." नीरज कुमार की बात को बल देते हुए दिल्ली जेल के पूर्व कानूनी सलाहकार सुनील गुप्ता बेबाकी से बयान करते हैं,"तिहाड़ (दिल्ली की जेलों) की जेलों में खूब बदमाशी होती है. प्रशासन पर अक्सर यहां बंद करके रखे गए खूंखार अपराधी भारी पड़ते हुए मैंने अपनी आंखों से देखे हैं."
मोबाइल की छोड़ो बम फेंक गया तब की सोचो?
सुनील गुप्ता आगे कहते हैं, "तिहाड़ को तमाशा बनने से रोका जा सकता है. बशर्ते महानिदेशक की कुर्सी पर मौजूद अफसर को मातहतों से काम लेने का तरीका आता हो." क्या आप दिल्ली जेल के मौजूदा महानिदेशक की कार्यशैली पर सवाल उठाकर उसे ढुलमुल करार दे रहे है? पूछने पर सुनील गुप्ता बोले, "नहीं मैं किसी व्यक्ति या अफसर विशेष पर कोई टिप्पणी कतई नहीं कर रहा हूं. मैं तिहाड़ जेल के महानिदेशक की कुर्सी पर बैठे अफसर के कार्य करने की शैली पर सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर रहा हूं न कि कोई विरोधाभासी या ज्ञान बांचती कोई टिप्पणी. जेल की नौकरी का मैं अपना 30-35 साल का अनुभव बांट रहा हूं न कि किसी को नौकरी करना सिखा रहा हूं.
मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर जेल अफसर-कर्मचारी अपनी पर उतर आएं तो जेल की चार-दिवारी के करीब से वाकई परिंदा भी गुजरने से कन्नी काटेगा. ऐसा अगर हो जाता तो फिर आज दिल्ली हो या कहीं की भी कोई जेल, जेल के अंदर उसी की दीवारों के उछालकर मोबाइल फोन मंगवाने की हिमाकत खूंखार से खूंखार अपराधी भी नहीं कर सकता था. आज को अपराधी जेल की दीवारों से मोबाइल फोन फिंकवा कर अंदर मंगवा रहे हैं कल को अगर कोई दीवार के ऊपर से जेल के भीतर बम फेंककर भाग जाएगा, तब भी क्या जेल प्रशासन खुद को ऐसे ही साफ बचा ले जाएगा जैसा कि जेलों में बदमाशों के पास मोबाइल मिलने पर बयानबाजी करके बच जाते हैं?"
जेलों को कोसते वक्त यह भी मत भूलिए
वहीं दूसरी ओर दिल्ली के पूर्व जेल महानिदेशक नीरज कुमार यह भी कहते हैं कि,"तिहाड़ का तिलिस्म जैसा है वैसा ही बना रहने दीजिए. जब आप किसी में बुराइयां तलाशते हैं तो उसकी अच्छाइयों को भी आंख मूंदकर नजरंदाज मत कीजिए. मैं मानता हूं कि वक्त-बे-वक्त दिल्ली की जेलों पर सवालिया निशान लगते रहे हैं. जिनकी मैं तरफदारी नहीं कर रहा हूं. इस बीच मगर आप यह क्यों भूल जाते हैं कि हिंदुस्तान के बाकी तमाम राज्यों के खूंखार से खूंखार अपराधियों को, इसी तिहाड़ (दिल्ली की जेलों) के नाम से पसीना आता है. छोटा राजन सा अंडरवर्ल्ड गुंडा हो या फिर बिहार का कुख्यात अपराधी सैय्यद शहाबुद्दीन, सजायाफ्ता मुजरिम यासीन मलिक या फिर फारूख अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे. या और भी तमाम अपराधी.
जो अपने राज्यों की जेलों में खुलेआम दरबार लगाने के लिए बदनाम या कहिए कुख्यात थे. तिहाड़ की सलाखों में लाकर बंद किए जाने की खबर से ही हलकान होने लगते थे. तिहाड़ में पहुंचते ही इन सबको सांप क्यों सूंघ जाता है? कुछ तो असरदार तासीर तिहाड़ की होगी ही. तभी तो शाहबुद्दीन सा अपराधी तिहाड़ जेल लाए जाने के नाम से ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था कि, उसे तिहाड़ में कैद करके न रखा जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट से उसे कोई राहत नहीं मिली थी. अंतत: उसके जीवन का अंत समय भी तिहाड़ की सलाखों में ही बीता-गुजरा."
सोर्स -tv9hindi. com
Rani Sahu
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