सम्पादकीय

काशी के जरिए पीएम मोदी ने देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव डाल दी है

Rani Sahu
18 Dec 2021 7:23 AM GMT
काशी के जरिए पीएम मोदी ने देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव डाल दी है
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बनारस, फिर वाराणसी और अब काशी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) अब बनारस या वाराणसी (Varanasi) को बार-बार काशी के नाम से सम्बोधित कर रहे हैं

विजय त्रिवेदी बनारस, फिर वाराणसी और अब काशी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) अब बनारस या वाराणसी (Varanasi) को बार-बार काशी के नाम से सम्बोधित कर रहे हैं. काशी यानि सिर्फ़ एक शहर नहीं, बाबा विश्वनाथ (Kashi Vishwanath Temple) की नगरी यानि धर्म और आध्यात्म की नगरी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इससे आगे बढ़कर इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़ दिया है. काशी यानि हिंदुत्व की पहचान, हिन्दुस्तान की पहचान और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सशक्त पहचान. साल 2014 में जब मोदी ने गुजरात से आकर वाराणसी को अपना संसदीय क्षेत्र चुना तब उन्होंने कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है.

मां गंगा के उस बेटे ने इन सात साल में उसकी तस्वीर बदलने की भरपूर कोशिश की है. गंगा के घाटों की सूरत बदल गई है. शहर की गलियों, इमारतों और मंदिरों की हालत में सुधार आया है. बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने तंग से इलाके में जाते लोग अब महसूस कर पाएंगे कि विश्वनाथ कॉरिडोर ने पूरा नक्शा ही बदल दिया है. एक अहम बात कि इस दौरान विध्वंस नहीं हुआ, सिर्फ निर्माण हुआ, कोई दबाव या विरोध दिखाई नहीं दिया. पुराने मंदिरों की जकड़न को मुक्ति मिल गई. और गंगाधर का सीधे गंगा से मिलान हो गया.
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती
मोदी के वाराणसी से सांसद बनने के बाद से अब तक हज़ारों करोड़ रुपए की योजनाएं वहां शुरू हुईं, बहुत सी पूरी हो गई और कई पर काम चल रहा है. कुछ लोग कह सकते हैं कि अपने संसदीय क्षेत्र में काम कराना तो हर सांसद की ज़िम्मेदारी होती है, इसमें क्या बड़ी बात हुई. लेकिन यह सिर्फ संसदीय क्षेत्र का विकास भर नहीं है, यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रास्ते पर चलने का नया सफ़र है. इसकी बारीकियों को समझने की ज़रूरत है.
यह सच है कि भारतीय जनता पार्टी अरसे से धर्म की राजनीति कर रही है और इसका राजनीतिक फायदा भी उसे हुआ है. 90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बीजेपी ने जो अपनी हिन्दू धर्म के छाते तले राजनीति को उग्रता दी, उसने पार्टी को ना केवल सरकार तक पहुंचाया, बल्कि एक स्पष्ट बहुमत वाली मजबूत सरकार भी नरेन्द्र मोदी को दी. बहुत से समझदार लोग अक्सर कहते रहे कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती, यानि उनका इशारा था कि राम मंदिर का मुद्दा हर बार चुनावी जीत नहीं दिला सकता. यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने शायद ज़्यादा बेहतर तरीके से समझी. वो जानते होंगें कि बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरने और फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद यह राजनीतिक मुद्दा होने के बजाय धार्मिक मुद्दा हो जाएगा और अब उनका वोटर श्रद्धालु में बदल जाएगा.
ज़ाहिर है कि फिर धर्म की राजनीति के लिए नए प्रतीकों की ज़रुरत पड़ेगी. पूजास्थल कानून बनने के बाद यह भी साफ हो गया कि अब विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी के उस नारे- अयोध्या तो झांकी है, मथुरा काशी बाकी है, पर चलना आसान नहीं होगा. खास तौर से दोनों स्थानों पर मस्जिद को तोड़ना फिलहाल ना तो मुमकिन दिखाई देता है और ना ही राजनीतिक तौर पर फायदेमंद, खासतौर से जब आप केन्द्र और राज्य दोनों जगहों पर सरकार में हों.
काशी और मथुरा में बनी मस्जिद को तोड़ा तो नहीं जा सकता, लेकिन बिना उसे तोड़े काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का काम पूरा करके प्रधानमंत्री ने एक नया केन्द्र बना दिया, जहां से धर्म के बहाने राजनीति को चलाना मुश्किल काम नहीं होगा. अब बीजेपी के लिए अयोध्या ही नहीं, काशी भी हिन्दू आस्था का आकर्षण बन गया है. खासतौर से 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में अयोध्या के बजाय काशी मुद्दा बना रहेगा.
बीजेपी अपने एजेंडे में सफल होती दिख रही है
काशी को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पहचान के तौर पर देश भर में आगे बढ़ाया जाए, शायद इसीलिए कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री ने वहां बीजेपी शासित राज्यों के 12 मुख्यमंत्रियों के साथ क्रूज पर बैठक की. फिर वो मुख्यमंत्री अयोध्या भी गए. शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने देश भर के मेयर के साथ संबोधन में भी काशी के विकास को अपने शहरों तक ले जाने की बात की. प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मेयर अपने-अपने शहरों के लिए काशी से सीख कर जाएं कि उनके इलाकों की नदियों, शहरों, गलियों की हालत को कैसे सुधारा जाए.
बीजेपी की धर्म की इस राजनीति की काट तो फिलहाल दूसरे राजनीतिक दलों के पास दिखाई नहीं देती, अलबत्ता वो बीजेपी के इस राजनीतिक जाल में फंसते ज़रूर दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी अब अपने हिन्दू प्रेम को जाहिर कर रही है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर या राम मंदिर निर्माण के विरोध की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही, लेकिन इसका फायदा उन्हें मिले, ऐसा राजनीतिक विशेषज्ञ नहीं मानते हैं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अभी तक अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है, लेकिन अब दोनों ही पार्टियां मुसलमानों का नाम लेने तक से कतरा रही हैं, यानि बीजेपी अपने एजेंडा पर सफल होती दिख रही है.
विपक्ष हिंदुत्व की राजनीति का विरोध नहीं कर पा रहा है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी ने मुझसे कहा कि हिन्दू राष्ट्र का मतलब संवैधानिक तौर पर या सत्ता के तौर पर हिन्दू धर्म को स्थापित करना नहीं है, यह मसला इस्लामिक राज्य जैसा नहीं है. हमारी मंशा सांस्कृतिक धरातल पर हिन्दुत्व या हिन्दू धर्म को स्थापित करना है. लगता है कि संघ और बीजेपी अपने इस मकसद में कामयाबी के रास्ते पर बढ़ रहे हैं. बीजेपी विरोधी दलों के पास फिलहाल हिन्दुत्व की राजनीति का विरोध करने का विकल्प नहीं रह गया है और राहुल गांधी हिन्दू और हिन्दुत्व में अंतर दिखाने या विरोधाभास की बात कर रहे होते हैं तो उनकी पार्टी में भी इसे कोई गंभीरता से लेता हो, इसकी गुंज़ाइश कम दिखती है.
उत्तरप्रदेश का विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए ना केवल 2022 के नजरिए से अहम है, बल्कि यह साल 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए भी महत्वपूर्ण है. यूपी के चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ औपचारिक तौर पर भले ही चेहरा हों, लेकिन इसकी कमान अब प्रधानमंत्री ने पूरी तरह संभाल ली है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस धार्मिक एजेंडा में विकास का तड़का भी लगा दिया है ताकि उसका विरोध ना किया जा सके. पिछले दो महीनों में प्रधानमंत्री ने करीब 70 हज़ार करोड़ की योजनाएं यूपी में शुरू की हैं या उनका उद्घाटन किया है. इनमें से ज्यादातर योजनाएं साल 2014 यानि मोदी के आने के बाद शुरू हुई थीं.
प्रधानमंत्री मोदी यूपी का लगातार दौरा कर रहे हैं
मोदी औसतन हर हफ्ते में दो बार यूपी का दौरा कर रहे हैं और वो हर इलाके में पहुंच गए हैं. चाहे वो पश्चिमी उत्तरप्रदेश हो या फिर बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तरप्रदेश में तो कोई इलाका छोड़ा ही नहीं. अगले दस दिनों में वो चार बार यूपी जा रहे हैं, शनिवार को शाहंजहापुर में गंगा एक्सप्रेस वे के लिए, फिर 21 दिसम्बर को प्रयागराज, 23 दिसम्बर को वाराणसी और 28 दिसम्बर को कानपुर में होगें. दूसरी तरफ एक ज़माने तक यूपी को अपनी पारिवारिक राजनीतिक कर्मभूमि और जन्मभूमि मानने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने तो 2019 में अमेठी हारने के बाद से रिश्ता ही मानो तोड़ दिया है.
अब फिर से वो शायद आना-जाना शुरू करेंगें. फिलहाल अकेली प्रियंका गांधी बीजेपी के दिग्गजों से मुकाबला करती दिखाई दे रही हैं. रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी के खराब स्वास्थ्य की वजह से वैसे ही उनका आना जाना कम होता है. केरल के चुनावों के वक्त तो राहुल गांधी ने उत्तर भारतीय वोटर की बुद्धिमत्ता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे, अब उनसे ही उनको सामना करना है.
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वांचल में 20 अक्टूबर को कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का लोकार्पण किया था. फिर 25 अक्टूबर को इसी इलाके के नौ ज़िलों में मेडिकल कालेजों का लोकार्पण किया, भले ही इनमें से ज़्यादातर पहले के जिला अस्पताल बताए जाते हैं. और जब 16 नवम्बर को सुल्तानपुर में लखनऊ से गाजीपुर को जोड़ने वाले 341 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया तो उससे पहले उस पर उतरते लड़ाकू जहाजों ने एक बार फिर मोदी के राष्ट्रवाद के झंडे को बुलंद कर दिया. इस योजना पर 22 हज़ार 500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं.
RSS को पता है कि उसका एजेंडा कौन आगे ले जाएगा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर और क्षेत्र गोरखपुर में एम्स के साथ बड़े फर्टिलाइजर प्लांट के साथ 9 हज़ार 600 करोड़ की कई परियोजनाओं की शुरूआत की. इसके बाद 11 दिसम्बर को मोदी ने गोंडा, बलरामपुर और बहराइच ज़िलों में करीब दस हज़ार करोड़ की लागत की सरयू कैनाल परियोजना का लोकार्पण किया. 13 दिसम्बर को 339 करोड़ रुपए के विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया तो वो धर्म, आध्यात्म और विकास के संगम के तौर पर पेश किया गया.
संभावना है कि अगले साल जनवरी में चुनाव आयोग विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम का ऐलान कर दे और आचार संहिता लागू हो जाए. इसलिए उससे पहले ही बीजेपी ने विभिन्न परियोजनाओं की शुरूआत करके अपनी ज़मीन को पुख्ता करने की कोशिश की है. इस तड़के वाली राजनीतिक दाल के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों और गरीबों के लिए कई हज़ार करोड़ की योजनाओं को मंजूरी दे दी. यानि अब यह कहना बेमायने होगा कि भूखे भजन ना होय गोपाला. वोटर का पेट भरने की कोशिश की गई है, उसकी कोरोना में भयावह हालात, ऑक्सीजन की कमी और नदियों में तैरती लाशों की स्मृति को धुंधला करने के लिए भी विकास के ढोल बज रहे हैं. बीजेपी की चुनावी बारात का दूल्हा भी तय है, जबकि विपक्षी पार्टियों को अभी बारात इकट्ठा करनी है, दूल्हा तय नहीं है. बीजेपी के पास इस बारात के दूसरे इंतज़ामों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मजबूत फौज भी है जो समझते है कि उनके एजेंडा को कौन आगे बढ़ा सकता है.
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