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- सामाजिक परिवर्तन के...
दस्यु आत्म-समर्पण में विनोबा भावे के बाद जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा और अगुआई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही है। उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश में फैली डाकुओं की समस्या के निदान को लेकर जेपी क्या सोचते थे? उनके मुताबिक आतंक और हिंसा की इस कठिनाई से कैसे निपटा जा सकता था? 'सप्रेस' में पचास साल पुराने उसी दौर में छपे जेपी के लेख का हम पुनरुप्रकाशन कर रहे हैं। दस्यु समर्पण के साथ एक बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न हुआ। इतना बड़ा काम परमात्म-शक्ति का परिणाम है। आप सबकी प्रार्थना भगवान ने सुनी। उन्होंने दस्युओं को प्रेरणा दी और परिणाम है आत्म-समर्पण। 405 दस्युओं ने आज, 2 जून तक आत्म-समर्पण किया है। इनमें 84 बुंदेलखंड के और बाकी इसी चंबल क्षेत्र के हैं। इस प्रकार एक परिच्छेद समाप्त हो गया। परिच्छेद क्या, यह तो किताब की एक जिल्द पूरी हो गई है। अब दूसरी किताब का काम है। आगे जो समस्याएं शेष हैं, उनका सामना करना है। वास्तव में जन्म से कोई डाकू नहीं बनता। माधोसिंह, मोहरसिंह आदि सभी इनसान हैं। सामाजिक परिस्थितियों, आर्थिक रचना, गरीबी-अमीरी, परस्पर राग-द्वेष, स्वभाव की भिन्नता, वैमनस्य, पंचायत चुनाव से लेकर राजनीतिक दलबंदी तक कई कारण हैं जिनके कारण इतने लोग बागी बन गए थे। इन कारणों को समाप्त नहीं किया गया तो 405 की जगह 810 और पैदा हो जाएंगे। बाकी बचों में से कई बम्बई चले जाएंगे और डाकू समस्या घटने के बजाय बढ़ जाएगी। इस समस्या को मिटाने के लिए क्या करना चाहिए? समाज की रचना, ऊंच-नीच, भेदभाव, जातिप्रथा, सामंतवाद, पूंजीवाद आदि के कारण जो शोषण और अन्याय होता है, उसे रोकना होगा। आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। परिवर्तन के लिए क्या करें, यह एक प्रश्न है, और इस प्रश्न के तीन उत्तर हैं।