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- तीन बरक्स अड़तालीस
सुधीश पचौरी; इधर ज्ञानवापी का मामला सुना जा रहा है, उधर मथुरा का मामला सुना जा रहा है। एक दिन एक ज्ञानवापी जैसा मामला कर्नाटक में निकल आता है, तो एक दिन दिल्ली में कुतुब मीनार परिसर में पहुंच कर कुछ लोग पूजा करने और सर्वे की मांग करने लगते हैं।
एक दिन एक एंकर चीखने लगता है : कुछ लोग लेख लिख कर कोर्ट की तौहीन करते हैं कि ज्ञानवापी सुनवाई का फैसला 1991 के 'पूजा स्थलों की यथास्थिति' कानून के खिलाफ है…
कांग्रेसी प्रवक्ता का मासूम जवाब है : कोर्ट तो सत्ता के दबाव में होते हैं। हमें आलोचना का हक है!
एक बहस में मुसलिम प्रवक्ता कहता है : बीजेपी मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैला रही है। फिर एक मुसलिम नेता का ऐलान आता है : हर जिले से दो लाख मुसलमान जेल भरो आंदोलन चलाएं। और उसकी दूसरी 'बाइट' भी धमकाती आती है : एक दिन 'महाभारत' होगा!
एक अन्य मुसलिम नेता कहने लगते हैं : हिजाब, हलाल, अजान, चालीसा, ज्ञानवापी, ताजमहल, कुतुबमीनार, ये मुसलमानों के खिलाफ साजिश है…
फिर एक दिन कई चैनल केरल में 'पीएफआइ' के एक प्रदर्शन में किसी के कंधे पर चढ़ा पांच बरस का बालक हिंदुओं और ईसाइयों को 'निपटाने' की धमकी देने वाले नारे लगाता रहता है और भीड़ उनको दोहराती रहती है : 'हिंदू अपने अंतिम संस्कार के लिए चावल खरीद लें…
केरल में रहना है तो सही तरह से रहना है…
अगर सही तरह से नहीं रहोगे तो हम तुमको 'आजाद' कर देंगे… तुम्हारा अंत निकट आ रहा है…' इस पर एक चर्चा में एक मुसलिम प्रवक्ता कहता है : केरल का यह वीडियो मुसलिमों के डर को बताता है…
एक हिंदुत्ववादी प्रवक्ता का जवाब आता है : ऐसे बच्चे कश्मीर में तैयार किए जाते थे, ऐसे ही शाहीनबाग में दिखे थे, वही अब केरल में दिख रहे हैं…
दूसरा प्रवक्ता कहता है : 'जनसंहार' की खुली धमकी दी जा रही है।
एक एंकर पूछता : इस आग उगलने वाली पीएफआइ को सरकार बैन क्यों नहीं करती?
जवाब आता है : 'सिमी' बैन की, तो वह कुछ और बन गई। पीएफआइ को बैन करेंगे, तो कुछ और बन जाएगी। बैन करेंगे तो लोग कहेंगे कि यह तानाशाही है।
फिर एक रोज ओवैसी के ऐसे 'दुर्वचन' चैनलों में सुनाई पड़ते हैं : मुगलों का भारत के मुसलिमों से कोई रिश्ता नहीं, तो ये बताओ, मुगलों की बीवियां कौन थीं?
इस गर्हित 'यौनवादी' और घोर मर्दवादी दुर्वचन के प्रतिकार में कथित उदारतावादियों और स्त्रीत्ववादियों में से एक नहीं बोलता, लेकिन एक चैनल पर 'करणी सेना' के अम्मू इसका इसी भाषा में जवाब देते हैं कि इतिहास को पढ़ लो। अमुक अमुक राजपूत राजा ने तमुक तमुक मुगल बादशाह की बेटियों को अपनी बीवी बनाया था, लेकिन हम किसी की बहू-बेटी का अपमान नहीं करते।
एक भाजपा प्रवक्ता बोलते हैं : ओवैसी मुसलमानों के भस्मासुर हैं! ये विद्वेष फैलाते हैं। मातृशक्ति का अपमान करते हैं!
एक बहस अदालत में है, तो हजार बहसें चैनलों में हैं और हर रोज हैं। एक के लिए ज्ञानवापी की सुनवाई कानूनी है, दूसरे के लिए गैरकानूनी! एक कहता है कि 1991 के कानून का उल्लंघन हो रहा है, तो दूसरा कहता है कि कानून आड़े नहीं आता और आया तो हटा देंगे।
एक कहता है कि सर्वे गैरकानूनी है, तो दूसरा कहता है कि सर्वे से इतना डर क्यों? एक कहता है कि औरंगजेब ने ज्ञानवापी मंदिर तोड़ा, तो दूसरा 'औरंगजेब' को 'रहमुतल्ला' कहता है। एक कहता है कि एएसआइ से शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करा लीजिए। उससे डर कैसा? तो दूसरा कहता है कि यह 1991 के कानून का उल्लंघन होगा।
हर खबर हर बहस में हाय-हाय और वाह-वाह है: प्रधानमंत्री 'क्वाड' में गए, तो हाय हाय और वाह वाह! वे चेन्नई जाएं तो भाषा पर हाय हाय और वाह वाह! यासीन मलिक को उम्रकैद हो तो हाय हाय और वाह वाह। और लीजिए, शुक्रवार की सुबह आया महाराणा प्रताप सेना का दावा कि 'अजमेर की दरगाह की दीवार में स्वस्तिक क्यों है? यह हिंदू मंदिर पर बनी है, जांच कराइए!' और ये लीजिए, अब लखनऊ की टीले वाली मस्जिद लक्ष्मण टीला बताई जा रही है और लक्ष्मण की मूर्ति लगाने की मांग हो रही है!
एक चैनल पर हिंदुत्ववादी विश्लेषक एलान करता है : अभी तो हम तीन मंदिरों की मांग कर रहे हैं, अड़तालीस हजार की नहीं, और जब किसान कानून वापस हो सकते हैं, तो 1991 वाला भी वापस हो सकता है।