सम्पादकीय

भविष्य पर खतरा: पांच दशक में तेजी से बढ़ा धरती का तापमान

Gulabi
12 Aug 2021 6:05 AM GMT
भविष्य पर खतरा: पांच दशक में तेजी से बढ़ा धरती का तापमान
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धरती का तापमान

पेप कैनेडेल, जोएल जेर्गिस, माल्टे मेनशाउसेन मार्क हेमर और माइकल ग्रोस।

आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक धरती का तापमान पूर्व औद्योगिक काल के बाद से 1.09 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जिसके कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि तथा हिमनद के पिघलने जैसी कई लगभग अपरिवर्तनीय घटनाएं हो चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मानव जनित जलवायु परिवर्तन से बचना अब संभव नहीं है। जलवायु परिवर्तन अब पृथ्वी पर हर महाद्वीप, क्षेत्र और महासागर और मौसम के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है। इस पैनल का गठन 1988 में हुआ था और जलवायु परिवर्तन पर यह उसका अपनी तरह का छठा आकलन है।
नवंबर में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में प्रस्तावित महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन से पहले इस रिपोर्ट ने दुनिया भर के नेताओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में सामयिक और सटीक जानकारी उपलब्ध कराई है। आईपीसीसी संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व मौसम विज्ञान संगठन की शीर्ष जलवायु विज्ञान संस्था है। यह रिपोर्ट दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार की है। दुखद यह है कि 3,900 पेज की इस रिपोर्ट में शायद ही कोई अच्छी खबर हो। लेकिन अब भी समय है, जब तबाही को टाला जा सकता है, बशर्ते कि मानवता इसके लिए तैयार हो। पहली बार आईपीसीसी ने संदेह के लिए बिल्कुल कोई जगह न छोड़ते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वातावरण, भूमि और महासागरों के बढ़ते तापमान के लिए मनुष्य जिम्मेदार है।

आईपीसीसी ने पाया कि 1850-1900 और पिछले दशक के बीच धरती के तापमान में 1.09 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई। यह आईपीसीसी की 2013 की पिछली रिपोर्ट की तुलना में 0.29 डिग्री सेल्सिस अधिक है। आईपीसीसी ने पृथ्वी की जलवायु में प्राकृतिक परिवर्तनों की भूमिका की पहचान की है। हालांकि इसने पाया कि तापमान में 1.09 डिग्री सेल्सियस वृद्धि में से 1.07 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि मानवीय गतिविधियों से संबद्ध ग्रीनहाउस गैसों के कारण है। दूसरे शब्दों में कहें तो ग्लोबल वार्मिंग के लिए मनुष्य ही लगभग पूरी तरह से जिम्मेदार है। कम से कम पिछले दो हजार सालों में किसी अन्य पचास वर्ष के कालखंड में धरती का तापमान इतनी तेजी से नहीं बढ़ा, जितना कि यह 1970 के बाद से बढ़ा है और इसका प्रभाव समुद्र के भीतर दो हजार मीटर तक पहुंच चुका है। आईपीसीसी का कहना है कि मानवीय गतिविधियों ने वैश्विक वर्षा (बारिश और हिमपात) को भी प्रभावित किया है।

1950 के बाद से, कुल वैश्विक वर्षा में वृद्धि हुई है, लेकिन कुछ क्षेत्र जहां आर्द्र हो गए हैं, वहीं कुछ अन्य क्षेत्र सूखे हो गए हैं। अधिकांश भूमि क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि गर्म वातावरण अधिक नमी धारण करने में सक्षम है— प्रत्येक अतिरिक्त तापमान के लिए लगभग सात फीसदी अधिक— जो कि आर्द्र मौसम और वर्षा की घटनाओं को और आर्द्र बनाता बनाता है। वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड की वर्तमान वैश्विक सांद्रता कम से कम पिछले बीस लाख वर्षों में किसी भी समय की तुलना में और तेजी से बढ़ रही है।

औद्योगिक क्रांति (1750) के बाद से जिस गति से वायुमंडलीय कार्बन डाऑक्साइड में वृद्धि हुई है, वह पिछले 8,00,000 वर्षों के दौरान किसी भी समय की तुलना में कम से कम दस गुना तेज है, और पिछले 5.6 करोड़ वर्षों की तुलना में चार से पांच गुना तेज है। लगभग 85 फीसदी कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन के जलने से होता है। शेष 15 फीसदी भूमि उपयोग परिवर्तन, जैसे वनों की कटाई और क्षरण से होता है। आईपीसीसी का ताजा आकलन चौंकाने वाला है। लेकिन वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और इसे लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए कोई भौतिक या पर्यावरणीय बाधा मौजूद नहीं है, जबकि यह पेरिस समझौते का विश्व स्तर पर सहमत लक्ष्य है। मानवता को अब आगे आना ही चाहिए।
- द कान्वर्सेशन से
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