- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- परमाणु हथियारों का...
अभिषेक कुमार सिंह: जबसे दुनिया में परमाणु तकनीक का विकास हुआ और 1945 में जापान के दो शहरों हिरोशिमा व नागासाकी ने परमाणु बमों की विभीषिका को साक्षात झेला, तबसे शायद ही कोई क्षण बीता होगा जब संसार ने परमाणु युद्ध की आशंका से बाहर आकर राहत की सांस ली हो। बीते कुछ दशकों से 'द बुलेटिन आफ द एटामिक साइंटिस्ट्स' से जुड़े वैज्ञानिक जिस प्रलय की आशंका की नजदीकी जताने के लिए 'डूम्डसे क्लाक' की भविष्यवाणी करते रहे हैं, उन्होंने इस साल की शुरुआत में दावा किया था कि अब यह दुनिया महाविनाश से महज सौ सेकेंड दूर है। इस घड़ी में महाविनाश के खतरे के कारकों के रूप में युद्धक हथियारों, जलवायु परिवर्तन, विध्वंसकारी तकनीक, फेक वीडियो, आडियो, अंतरिक्ष में सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिश और हाइपरसोनिक हथियारों की बढ़ती होड़ को दर्ज किया जाता है।
गौरतलब है कि रूस जिस तरह से यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों को निशाना बना रहा है, उसे देखते हुए यह कहना बेमानी नहीं है कि दुनिया परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। रूस की इस धमकी कि यूक्रेन पर उसके हमले और कब्जे के बीच अगर कोई आया, तो इसे परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के लिए उकसावा माना जाएगा, के बाद सिर्फ दो सवाल बचते हैं। एक तो यह कि क्या रूस को परमाणु हमला करने से रोका जा सकता है और दूसरा, क्या शांति और सैन्य संतुलन बनाने के लिए हरेक देश के लिए परमाणु हथियार का विकल्प रखना जरूरी हो गया है।
दूसरे प्रश्न को यदि प्राथमिकता में लें, तो इस संबंध में रूसी हमले की शुरुआत में यूक्रेन की ओर से इस पछतावे की खबरें मिली थीं कि काश, उन्होंने यूरोप की ओर से सुरक्षा के आश्वासनों को अहमियत न देकर अपने परमाणु हथियार अतीत में रूस को नहीं सौंपे होते, तो आज हालात अलग होते। आशय यह है कि एक समय में परमाणु हथियारों के मामले में दुनिया में तीसरे देश के रूप में हैसियत रखने वाले यूक्रेन के पास यदि आज भी परमाणु हथियार होते, तो संभव था कि रूस उस पर इतने बड़े हमले के बारे में भूल कर भी नहीं सोचता। तब उसे इसका भय रहता कि युद्ध में अपनी पराजय को निकट जान कर यूक्रेन उस पर परमाणु बम फोड़ देता। ऐसे में परमाणु हथियार युद्ध-प्रतिरोधक या शांति व सैन्य संतुलन बनाए रखने के काम आते।
इस परिप्रेक्ष्य में हाल में जापान की ओर से आई एक टिप्पणी का उल्लेख जरूरी है।
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कहा है कि जापान को अब परमाणु हथियारों की जरूरत पर बहस शुरू करनी चाहिए। आबे ने यहां तक कहा कि यदि कोई देश खुद परमाणु शक्ति संपन्न नहीं है, तो उसे परमाणु-साझेदारी (न्यूक्लियर शेयरिंग) की किसी योजना पर अमल करना चाहिए। उन्होंने अपने बयान के मंतव्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर यूक्रेन ने सोवियत संघ से अलग होने के वक्त एक सुरक्षा गारंटी के रूप में कुछ परमाणु हथियार रख लिए होते, तो शायद आज रूस की ओर से उसे यह हमला नहीं झेलना पड़ा होता।
जापान की तरफ से उठी इस मांग के औचित्य और इसकी गंभीरता को इस तरह समझा जा सकता है कि परमाणु जंग को मानवता के विरुद्ध गंभीरतम अपराध मान कर दुनिया के जो देश सुरक्षा गारंटी मिलने पर अपने परमाणु हथियार और इससे संबंधित कार्यक्रम छोड़ने के लिए प्रेरित हुए, आज वही इन हथियारों की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
पहला प्रश्न मौजूदा स्थितियों में काफी महत्त्वपूर्ण है। सवाल यह है कि क्या रूस को परमाणु हमले से रोका जा सकता है। पुतिन जिस तरह की आक्रामकता दिखा रहे हैं, उससे पूरी दुनिया चिंतित है कि वे अपने खिलाफ किसी भी कार्रवाई को उकसावा मान सकते हैं और परमाणु जंग छेड़ सकते हैं। अभी तक उनकी सेना ने यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों पर जिस तरह का हमला बोला है, उसे किसी परमाणु त्रासदी को जन्म देने का बेहद करीबी मामला माना जा सकता है। रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के नौंवे दिन रूसी सेनाओं ने यूक्रेन के जोपोरिजझिया परमाणु संयंत्र पर हमला कर दिया था।
यह यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र है। हमले की वजह से वहां एक इमारत में आग लग गई थी। गनीमत रही कि इस परमाणु संयंत्र में विस्फोट नहीं हुआ। आग पर भी समय रहते काबू पा लिया गया। यदि किसी कारण से संयंत्र में विस्फोट हो जाता, तो चेर्नोबिल हादसे से दस गुना ज्यादा विनाशकारी विकिरण फैल सकता था। इससे पूरा यूरोप खतरे में पड़ जाता।
तात्पर्य यह है कि सिर्फ परमाणु बम फोड़ कर ही एटमी जंग की शुरुआत नहीं होती। किसी परमाणु संयंत्र से विकिरण के रिसाव की स्थिति बना देना भी परमाणु जंग को दावत देना है। यदि ऐसा हुआ तो यह सिर्फ दो देशों के बीच युद्ध का मामला नहीं रह जाएगा। ऐसे में किसी भी वक्त बड़े परमाणु युद्ध का खतरा पैदा हो सकता है।
यूक्रेन पर युद्ध थोपने के विरोध में दुनिया ने जिस तरह से रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, उनके मद्देनजर पुतिन परमाणु हथियारों की तैनाती का आदेश दे चुके हैं। उनके आदेश के तहत रूसी सेना की परमाणु हमले वाली इकाई (न्यूक्लियर डिटरेंट फोर्सेज) हाई अलर्ट पर है। इन तैयारियों की देखते हुए पूरी दुनिया इस आशंका से सिहर उठी है कि 1945 के बाद कहीं एक बार फिर दुनिया में एटम बम का इस्तेमाल न हो जाए।
पर क्या रूस को जंग से बाज आने के लिए जरूरी है कि यूक्रेन को परमाणु हथियार मुहैया कराए जाएं। यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसे भारत के संदर्भ में भी देखे जाने की जरूरत है। खासतौर से इसलिए क्योंकि भारत ने चीन-पाकिस्तान जैसे शत्रु पड़ोसियों के साथ सैन्य संतुलन बनाने के लिए पोखरण की धरती पर दो बार परमाणु परीक्षण किए और प्रतिबंध झेल कर भी खुद को परमाणु अप्रसार की संधि (सीटीबीटी) से बाहर रखा। यह जगजाहिर है कि भारत परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण इस्तेमाल और दुश्मन पर पहला परमाणु प्रहार नहीं करने की नीति का पक्षधर है। लेकिन उसने अपनी सुरक्षा और सैन्य शक्ति के संतुलन की नीति के तहत हथियारों के जखीरे में एटम बम शामिल कर रखे हैं।
हालांकि संख्या के मामले में भारत के पास चीन ही नहीं, पाकिस्तान के मुकाबले भी कम परमाणु बम हैं। चीन न सिर्फ गिनती में हमसे आगे है, बल्कि पिछले साल उसने जिस तरह अपने पश्चिमी प्रांत गांझू प्रांत के यूमेन शहर के पास रेगिस्तान में मिसाइल रखने के लिए सौ से अधिक ठिकाने (मिसाइल साइलोज) बनाए हैं, उसने भारत की चिंताएं काफी ज्यादा बढ़ा दी हैं। लेकिन भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने से यह खतरा न्यूनतम है कि चीन या पाकिस्तान अत्यधिक आक्रामक होकर भारत पर हमला कर देंगे और हमें परमाणु हथियारों का भय दिखाएंगे।
हालांकि रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच जिस प्रकार दुनिया में परमाणु अलर्ट किया गया है, उससे यह आशंका बढ़ गई है कि दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ सकती है। यह भी हो सकता है कि दुनिया के कई देश ज्यादा से ज्यादा संख्या में परमाणु हथियार बनाएं और उन्हें तैयार स्थिति में रखें। इससे यह तय लग रहा है कि अब बात परमाणु हथियार सिर्फ प्रतिरोध (डिटरेंट) के लिए जरूरी नहीं माने जाएंगे, बल्कि उनकी संख्या में इजाफे से दुनिया में परमाणु हथियारों की नई होड़ पैदा हो सकती है। ऐसे में आवश्यकता इसकी है कि दुनिया परमाणु शक्ति के बारे में भारतीय नीति का अनुपालन करे और शांतिपूर्ण इस्तेमाल व सैन्य संतुलन साधने की जरूरत को समझे।