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- परमाणु युद्ध की धमकी
नवभारत टाइम्स: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना का जिक्र करके अचानक सबको सकते में डाल दिया। दुनिया शीत युद्ध के दौरान इस तरह की परिस्थितियों की गवाह रही है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के पास भी इसके जवाब में अपनी सेना को परमाणु हमले के लिए तैयार रहने का आदेश देने का ऑप्शन था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अमेरिका के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत ने रविवार की दोपहर को सुरक्षा परिषद को भरोसा दिलाया कि रूस पर उनकी ओर से कोई खतरा नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पुतिन का यह कदम गैरजरूरी है और इससे सबकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है। वाइट हाउस ने भी स्पष्ट किया है कि उसकी ओर से अलर्ट के स्टेटस में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसके बावजूद पुतिन के इस अलर्ट संबंधी आदेश का परिणाम यह हुआ कि परमाणु युद्ध की आशंका दुनिया के सामने एक वास्तविक खतरे के रूप में आ खड़ी हुई है। इसके साथ ही यूक्रेन पर रूस का हमला, जिसे खुद पुतिन एक सीमित सैन्य कार्रवाई बता रहे थे, उसे एक ऐसे युद्ध के रूप में देखा जाने लगा, जिसके प्रभावों की व्यापकता किसी के काबू में नहीं रह गई है।
सवाल है कि हमले के बाद के इन चार दिनों में आखिर ऐसा क्या हुआ कि खुद पुतिन अपने शुरुआती दावों के उलट संकेत देने को मजबूर हो गए? जवाब चाहे जो भी हो, इससे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि यूक्रेन के खिलाफ शुरू की गई उनकी सैन्य कार्रवाई उतनी आसान साबित नहीं हुई, जितनी पुतिन को लगी थी। पुतिन के आह्वान के बावजूद यूक्रेनी सेना में फूट, विभाजन या बगावत के कोई संकेत अभी तक नहीं दिखे हैं बल्कि आम यूक्रेनवासियों में इस हमले के खिलाफ जिस तरह का जज्बा दिख रहा है, उससे लगता नहीं कि आगे की राह भी रूसी सेना के लिए आसान रहने वाली है। इस बीच नाटो देशों ने यूक्रेन के पक्ष में सेना भले न भेजी हो, उनकी तरफ से हथियारों की सप्लाई भी खासी महत्वपूर्ण साबित होने वाली है। रविवार को यूरोपियन यूनियन ने इतिहास में पहली बार किसी युद्धरत देश को हथियारों की आपूर्ति करने का फैसला किया। मगर रूस के लिए इससे ज्यादा चिंताजनक है आर्थिक प्रतिबंधों का एलान।
यूरोपियन यूनियन कमिशन और अमेरिका की ओर से रूसी केंद्रीय बैंक पर प्रतिबंध लगाने और रूस को स्विफ्ट सिस्टम से आंशिक तौर पर निकालने का फैसला बेहद गंभीर है। स्विफ्ट एक मेसेजिंग प्लैटफॉर्म है जिसके जरिए तमाम देश वित्तीय लेन देन का निर्देश देते हैं और इससे 11,000 बैंकिंग और वित्तीय संस्थान जुड़े हुए हैं। इन कदमों से रूस के लिए आयात-निर्यात बिलों का भुगतान तो मुश्किल हो ही सकता है, उसकी पूरी वित्तीय व्यवस्था के बैठ जाने की भी नौबत आ सकती है। इसलिए रूस ने ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी के साथ कैपिटल कंट्रोल जैसे कदम उठाए हैं। ये घटनाएं एक बार फिर साबित कर रही हैं कि आज के दौर में युद्ध किसी के लिए भी आसान विकल्प नहीं होता। पर क्या ये संकेत दोनों पक्षों को युद्ध विराम की ओर ले जाकर शांति की कोई सम्मानजनक राह ढूंढने को प्रेरित करेंगे? मौजूदा स्थितियों में हम इसकी बस उम्मीद ही कर सकते हैं।