सम्पादकीय

Drive My Car: सफर में खुलते मन के धागे

Rani Sahu
16 April 2022 10:30 AM GMT
Drive My Car: सफर में खुलते मन के धागे
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एक बड़ी मशहूर कहानी है, हाथी और छह अंधों की. जिसमें छह अंधों ने हाथी के शरीर के अलग अलग हिस्सों को स्पर्श किया और फिर हाथी की अलग अलग व्याख्या की

मोहन जोशी

एक बड़ी मशहूर कहानी है, हाथी और छह अंधों की. जिसमें छह अंधों ने हाथी के शरीर के अलग अलग हिस्सों को स्पर्श किया और फिर हाथी की अलग अलग व्याख्या की. जो एक दूसरे से बिलकुल जुदा थी. हर अंधे ने अपने हिस्से के अनुभव से अपने हाथी की प्राण प्रतिष्ठा की. इस तरह एक ही हाथी के छह अवतार दिखने लगे.
कुछ फ़िल्में हाथी की इस देह की तरह होती हैं, जिनसे हम अपने अपने हिस्से के सच को चुन लेते हैं. इन्हीं सच के टुकड़ों के जरिये हम उन फ़िल्मों को मुकम्मल देख पाते हैं. कुछ ऐसा ही अनुभव हाल में सर्वश्रेष्ठ गैर-अंग्रेजी फिल्म श्रेणी में ऑस्कर सम्मानित जापानी फ़िल्म 'ड्राइव माय कार' को देखते हुए हुआ. यह फ़िल्म अर्थ की कई तहों में लिपटी है, एक सिरा जो मेरे हिस्से आया वो मेरी व्याख्या है.
'ड्राइव माय कार' कई नामी अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सम्मानित, प्रशंसित और पुरस्कृत हो चुकी है. फ़िल्म ने इस साल ऑस्कर में विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार तो जीता ही, इसके अलावा फिल्म को प्रतिष्ठित कान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में बेहतरीन पटकथा के लिए भी सम्मानित किया गया. 'ड्राइव माय कार' विशेष चर्चित इसलिए भी रही क्योंकि इसकी पटकथा विश्व प्रसिद्ध लेखक हारुकी मुराकामी की कहानियों को आधार बना कर लिखी गयी है. हालांकि मुराकामी अपनी कहानियों से ज्यादा अपने उपन्यास के लिए जाने जाते रहे हैं.
बहरहाल, यूसुके हमागुची के निर्देशन में बनी इस फिल्म का केन्द्रीय पात्र युसुके काफुकु है. काफुकु अपने जीवन में दो अलग-अलग दुनिया का निवासी है. एक उसकी निजी दुनिया है, जहाँ सिर्फ काफुकु और उसकी पत्नी ओटो ही नज़र आते हैं. उनका ये एकांतवास इस हद तक अकेला है कि वो वास्तविक दुनिया से परे एक स्वप्निल दुनिया का भ्रम पैदा करता है. इसके समानांतर काफुकु की एक रंगमंचीय दुनिया भी है, जहाँ उसके साथी कलाकारों का जमघट है, विराट प्रेक्षागृह है और दर्शकों का जमावड़ा है. पर यह दोनों दुनिया उस वक़्त टूट कर एक हो जाती हैं जब इस दुनिया में किसी तीसरे का प्रवेश होता है.
काफुकु एक बार घर लौट रहा होता है तो वह ओटो को एक युवा एक्टर ताकात्सुकी के साथ हमबिस्तर देख लेता है. काफुकु ओटो को खो देने के डर से कभी इस घटना का ज़िक्र पत्नी से नहीं कर पाता. इधर ओटो का काफुकु के प्रति प्यार बरकरार रहता है. लेकिन इस बीच अचानक ओटो की मौत ब्रेन हेमरेज से हो जाती है . उसी दौरान काफुकु को एक नाटक के निर्देशन के लिए हिरोशिमा बुलाया जाता है जहाँ उसकी कार एक महिला ड्राइवर मिसाकी चलाती है. मिसाकी और काफुकु, दोनों के मन में कई अनसुलझे सवाल दर्द, क्रोध और आक्रोश का रूप लेकर अपने जवाब के लिए भटक रहे हैं. दोनों के सवालों में इतनी समानता है कि वह एक दूसरे का प्रतिरूप दिखते हैं. पर क्या एक सवाल दूसरे सवाल के लिए ढाढ़स का कंधा बन सकता है? अपने अपने सवाल से हम क्या एक दूसरे के जवाब को ढूंढ सकते हैं? इन्ही को खंगालती है फिल्म 'ड्राइव माय कार'.
फिल्म में कार को बिम्ब के रूप में इस्तेमाल किया गया है. कहानी की भीतरी तहों को समझने के लिए 'कार' रुपी रोशनदान से फिल्म को देखना होगा. कार काफुकु के जीवन का प्रतिनिधि है. या ये कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि वो कार ही काफुकु का जीवन है. ये रिश्ता इतना नितांत व्यक्तिगत है कि कार में किसी का भी प्रवेश निषेध है. इसलिए जब मिसाकी को उसकी कार की कमान संभालने को दी जाती है तो काफुकु इसका पुरजोर विरोध करता है. वो अपनी जीवन यात्रा में अकेला चलना चाहता है. फिर मिसाकी को जान लेने के बाद काफुकु कहता है कि उसने इससे अच्छी कार-चालक नहीं देखी. मिसाकी भी कहती है वो दूसरों के लिए कार चलाने से पहले एक कूड़े का ट्रक चलाया करती थी.
ताकात्सुकी और काफुकु के संबंध अपनी यात्रा तभी पूर्ण कर पाते हैं जब उसमें कार शामिल होती है. काफुकु और ताकात्सुकी की पूर्व में कई मुलाकातें हुई थी लेकिन ताकात्सुकी का दृष्टिकोण भी काफुकु पूरी हमदर्दी और बिना पूर्वाग्रह के तब समझ पाता है, जब वो उसे कार में साथ सफ़र करने की अनुमति दे देता है यानी जब वो उसे अपने जीवन में शामिल होने का आमंत्रण देता है.
फिल्म 'ड्राइव माय कार' रंगमंच की तरह बर्ताव करती है . जिसकी सफलता या असफलता का मुख्य दारोमदार अभिनेताओं की अभिनय क्षमता पर टिका था. फिल्म का 'फॉर्म' और 'कंटेंट' दोनों इस बात की तस्दीक भी करते हैं. इसलिए फिल्म को जो अपार कामयाबी मिली है उसका श्रेय भी इस फिल्म के सभी एक्टर्स को जाता है.
तकनीकी पक्ष की बात करें तो हितेतोशी शिनोमिया का कैमरा खूबसूरत शॉट्स लेने का आडम्बर किये बिना एकाग्रचित हो कर सिर्फ भावनाओं को समेटकर संवेदनाओं को स्पर्श करने की कोशिश करता है. लाइट का कोण और मात्रा इतनी सटीक है कि कभी अकृत्रिम होने का आभास नहीं देती. पटकथा का नदारद होना ही (जहाँ कहानी की जगह जीवन-अनुभव नज़र आयें) इस फिल्म की पटकथा को फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष बनाती है. अजुसा शिनोमिया की एडिटिंग इतनी चुस्त है कि फिल्म निर्बाध बहती चलती है, इसके बावजूद भी लगभग तीन घंटे लम्बी इस फिल्म का आस्वादन लेने के लिए 'धैर्य' अनिवार्य शर्त है.


Rani Sahu

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