सम्पादकीय

सांप काटने से होने वाली हजारों मौतों को रोका जा सकता है

Gulabi
12 Aug 2021 12:10 PM GMT
सांप काटने से होने वाली हजारों मौतों को रोका जा सकता है
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हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ ने अपने अध्ययन में पाया है

प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ।

हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ ने अपने अध्ययन में पाया है कि साल 2000 से लेकर 2019 तक भारत में तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत सांप के काटने से हुई है, जो कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है. अध्ययन के नतीजे 'प्लोस वन' जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं. इस अध्ययन के मुताबिक इस खतरे की गिरफ्त में सबसे ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण आबादी है, क्योंकि उनमें सर्पदंश यानी सांप के काटने को लेकर जागरूकता की भारी कमी है.

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि सर्पदंश से होने वाली 70 प्रतिशत मौतें देश के आठ कृषि प्रधान और घनी आबादी वाले राज्यों में हुई हैं. ये राज्य हैं- बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में हर साल तकरीबन 54 लाख सर्पदंश की घटनाएं होती हैं, जिनमें से आधे का ताल्लुक भारत से है! सर्पदंश से दुनिया भर में हर साल 81,000 से 1,38,000 लोगों की मौतें होती है. वहीं, भारत में हर साल तकरीबन 58,000 लोग सांप काटने से अपनी जान गंवा देते हैं.
इससे तीन गुना ज्यादा लोग इस कारण अंग विकार, नेत्रहीनता या गंभीर शारीरिक-मानसिक बीमारियों से जीवन भर के लिए पीड़ित हो जाते हैं. गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या और भी अधिक हो सकती है. वैसे भी सरकारी आंकड़ों में सर्पदंश की केवल वे मौतें ही रिकॉर्ड होती हैं, जो अस्पताल में होती हैं या जिसकी सूचना पुलिस को दी जाती है. जबकि तथ्य यह है कि सर्पदंश के शिकार कई लोग तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही काल के गाल में समा जाते हैं और दुरूह कानूनी झमेले से बचने के लिए ग्रामीण लोग अक्सर ऐसे मामलों की थानों में रिपोर्ट नहीं करते हैं.
सर्पदंश से होने वाली मौतों को पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन इनकी संख्या में बड़ी कमी जरूर लाई जा सकती है. सर्पदंश से होने वाली अधिकतर मौतें (60 प्रतिशत) जून से सितंबर के महीनों में होती हैं. इनमें से भी 97 प्रतिशत मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में, जबकि तीन प्रतिशत मौतें शहरी क्षेत्रों में होती हैं. ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश की ज़्यादातर वारदातें इसलिए भी जानलेवा बन जाती हैं, क्योंकि यहां उपचार सुविधाओं तक लोगों की आसानी से पहुंच नहीं होती है.
ज़्यादातर मौतें सर्पदंश के शिकार व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में देरी की वजह से हो जाती हैं. जड़ी-बूटी, नीम हकीमी, देसी इलाज और झाड़-फूंक में वक्त बर्बाद करने से समस्या और भी बढ़ जाती है. झाड़-फूंक जैसी प्रथाएं न सिर्फ अवैज्ञानिक और प्रभावहीन होती हैं, बल्कि सर्पदंश के शिकार व्यक्ति के लिए भी जानलेवा होती हैं. लब्बोलुबाब यह है कि भारत में सर्पदंश मुख्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की समस्या है और यहां के लोग सांप के जहर से नहीं, बल्कि अंधविश्वास और मेडिकल सुविधाओं की कमी की वजह से ज्यादा मरते हैं.
इस कारण हजारों ऐसी मौतें होती हैं, जिन्हें रोका जा सकता है. इसके लिए जागरुकता और उपयुक्त समय पर उपयुक्त मेडिकल उपचार की जरूरत है. सर्पदंश के ज़्यादातर मामले मानसून के दिनों में होते हैं क्योंकि बारिश का पानी सांपों के बम्बियों और उनके शिकार (चूहों) के बिलों में घुस जाता है, जिसकी वजह से सांप को बाहर निकालना पड़ता है. मानसून के दौरान सांपों को मेंढक जैसे भोजन भी आसानी से मिल जाते हैं. सांपों के प्रजनन या संभोग का मौसम भी अमूमन यही समय होता है, इस वजह से भी उनका अंदाज थोड़ा आक्रामक हो जाता है.
मानसून के आगमन के साथ ही किसान धान सहित अधिकांश खरीफ फसलों की बुवाई भी करते हैं, जिस कारण सर्पदंश की वारदातें बढ़ जाती हैं. इसलिए इस अवधि (जून से सितंबर) में उपयुक्त सावधानी बरतकर सर्पदंश की घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है. जैसे रात में खेत की देखरेख या सिंचाई आदि के लिए जाना हो या घर के आसपास निकलना हो तो टार्च का इस्तेमाल करना, पांव ढंकने के लिए जूते पहनना, जमीन पर सोने से बचना, पौधों और फूलों को खिड़की-दरवाजों से दूर लगाना आदि, मुख्य सावधानी होगी.
विषधर सांपों की चौकड़ी!
सभी सांप जहरीले और हानिकारक नहीं होते हैं. पूरी दुनिया में ज्ञात सांपों की तकरीबन 26 हजार प्रजातियों में से महज 450 ही जहरीले होते हैं और इन जहरीले सांपों में से भी लगभग 270 ही ऐसे हैं, जिनका जहर इंसान के लिए जानलेवा हो सकता है और इनमें से भी सिर्फ 25 प्रजातियां ही ज़्यादातर मौतों के लिए जिम्मेदार होती हैं. भारत में मुख्यत: चार प्रकार के विषैले सांप पाए जाते हैं: कॉमन करैत या थुगरा, कोबरा या नाग, रसेल वाइपर (दुबोइया) और सॉ-स्केल वाइपर.
इन चारों सांपों को 'बिग-4' नाम से जाना जाता है. कॉमन करैत एवं कोबरा का जहर न्यूरो-टॉक्सिक होता है और रसेल वाइपर व सॉ-स्केल वाइपर का विष हीमो-टॉक्सिक. जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है कि हीमो-टॉक्सिक जहर रक्त परिसंचरण और हृदय से जुड़ी शारीरिक गतिविधियों को प्रभावित करता है और न्यूरो-टॉक्सिक इंसानी मन-मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के क्रियाकलापों को प्रभावित करता है.
सर्पदंश के इलाज के लिए एंटी स्नेक वेनम (एएसवी) का इस्तेमाल किया जाता है. एंटीवेनम सांप के जहर से सुरक्षा के लिए एक प्रकृति प्रदत्त हथियार है, जिसका इस्तेमाल और उत्पादन करना इंसान ने सीख लिया है. एंटीवेनम सांप के जहर से मिलकर उसे निष्क्रिय कर देता है, जिससे जहर द्वारा शरीर में किया जाने वाला नुकसान रुक जाता है. लेकिन, यह पहले से हो चुकी शारीरिक क्षति को ठीक नहीं कर सकता. इसलिए इसका इस्तेमाल सर्पदंश के बाद जितना जल्दी हो सके करना चाहिए.
दिलचस्प बात यह है कि एंटीवेनम को सांप के ही जहर को भेड़ों और घोड़ों में कम मात्रा में प्रविष्ट कराकर बनाया जाता है. दरअसल, एंटीवेनम के प्रयोग का सिद्धांत टीकाकरण के सिद्धांत पर आधारित है. फर्क सिर्फ इतना है कि रोगी में सीधे प्रतिरक्षा विकसित करने की बजाय, इसे किसी जानवर के शरीर में विकसित की जाती है और उस जानवर के खून से प्रतिरक्षित सीरम को अलग करके एंटीवेनम बनाया जाता है, जिसे रोगी के शरीर में इंजेक्शन के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है.
वर्तमान में एंटीवेनम ही किसी जहरीले सांप के काटे जाने का इकलौता पक्का इलाज है. एंटीवेनम का इस्तेमाल केवल अस्पताल में डॉक्टर की देखरेख में ही होनी चाहिए, ताकि अगर रोगी में एलर्जी हो, तो उसे संभाला जा सके.
ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम की किल्लत
भारत के ज़्यादातर गांवों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम की भारी कमी है, जबकि भारत सरकार द्वारा एंटीवेनम को 'आवश्यक दवा' के रूप में चिन्हित किया गया है. चूंकि, इसे फ्रिज में रखना होता है और ज़्यादातर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में वातनाकुलन की सुविधा नहीं होती है, इसलिए मजबूरन लोग निजी अस्पताल या सरकारी जिला अस्पताल की ओर रुख करते हैं. लेकिन वहां तक पहुंचने से पहले ही सर्पदंश का शिकार व्यक्ति दम तोड़ देता है.
सर्पदंश के बाद के एक से दो घंटे बेहद निर्णनायक होते हैं और इस काल-अवधि में एंटीवेनम इंजेक्शन देकर पीड़ित की जान बचाई जा सकती है. ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में एंटीवेनम की उपलब्धता सुनिशित करने से हर साल होने वाली हजारों मौतों को रोका जा सकता है. मौजूदा जानकारी के आधार पर भी सर्पदंश से होने वाली मौतों में कमी लाने का एक समग्र कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है. राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को भी इसको लेकर गंभीरतापूर्ण रुख अख़्तियार करनी चाहिए, ताकि लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट (जीवन रक्षक उपचार) में देरी और सांप कांटने से होने वाली मौतों दोनों में ही कमी लाई जा सके. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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