सम्पादकीय

विचार: परिवार संस्कार है, आज स्वार्थ और व्यक्तिवाद इस पर हावी

Neha Dani
16 May 2022 1:42 AM GMT
विचार: परिवार संस्कार है, आज स्वार्थ और व्यक्तिवाद इस पर हावी
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शालीनता के साथ स्नेह और संस्कार का वातावरण बने, संयुक्तप्रगति और समृद्धि का पथ प्रशस्त हो।

भौतिकता के बाजार में सब कुछ उपलब्ध है और उसे पैसे द्वारा खरीदा जा सकता है, पर क्या बहन का पवित्र स्नेह, मां की ममता, पिता का वात्सल्य, पत्नी का प्यार कीमत देकर खरीदा जा सकता है, कदापि नहीं। विश्व भर में कोई संगठन, कंपनी ऐसी नहीं है, जो इसका व्यापार करती हो। परिवार नाम की संस्था ही एकमात्र ऐसी संस्था है, जहां यह मिल सकता है।

पति-पत्नी, पिता-पुत्र, मां-बेटी, भाई-बहन आदि के सुमधुर संबंध मानव परिवार में ही दिखाई देते हैं। संसार में जितने भी जीव हैं, उनमें परिवार नाम की संस्था केवल मनुष्यों को ही मिली है, जो जीवनपर्यंत संबंधों की स्थिरता और प्रगाढ़ता को बनाए रखती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री हेलेन बोसा ने अपनी पुस्तक द फैमिली में लिखा है कि 'संसार बिना परिवार के उसी प्रकार होगा, जैसे सूर्य बादल से ढक सकता है किंतु उसकी आभा कभी खत्म नहीं हो सकती। वैसे ही कुटुंब-व्यवस्था की दीवार कोई अपने आचरण से हिला तो सकता है, परंतु उसका महत्व कभी कम नहीं होगा।'

परिवार परिष्कार है, संस्कार है, कुरीतियों का परिमार्जन है, परमात्मा की प्राप्ति का साधन है, इसलिए परिवार जैसी कोई संस्था अभी तक न बनी है और न बन पाएगी। परिवार की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि पेट और प्रजनन की जरूरत पूरी कर लेने के बाद भी व्यक्ति की दृष्टि में वास्तविक विकास नहीं आ पाता, इसलिए वह व्यवस्था और सृष्टि क्रम चलाने के लिए एक संस्था की तरफ जाता है, और वह संस्था परिवार है। परिवार पालना है, जिसमें सीखने, अनुभव प्राप्त करने और प्रवीणता प्राप्त करने की प्राथमिक ट्रेनिंग होती है। संस्कारों और व्यक्तित्व के विकास का बीजारोपण परिवार रूपी संस्था में ही होता है। सही मायने में व्यक्ति के व्यक्तित्व का बीज परिवार रूपी संस्था ही अपनी नर्सरी में तैयार करती है, इसलिए हमें परिवारों को सुगठित और सुरक्षित बनाने के लिए कुछ न कुछ परिवार के बारे में जानकारी अवश्य करनी चाहिए।
आज के इस परिवेश में जब परिवार में स्वार्थ, व्यक्तिवाद का गुण विकसित हो गया है, ऐसे में परिवार टूटा-सा जा रहा है। एक जमाना था कि परिवार संयुक्त पूजा, भोजन, संपत्ति, निवास, सामान्य धर्म और पारिवारिक दायित्वों से बंधा रहता था। यह हर प्रकार के परिवार में होता था, चाहे वह मातृवंशी परिवार हो या पितृवंशी परिवार।
सार्वभौमिकता और भावनात्मक आधार ने ही परिवार जैसी संस्था को संपूर्ण दुनिया में बनाए रखा है। संसाधनों से अगर सुख मिलना संभव होता, तो उसका उपयोग बहुत लोग कर लेते, लेकिन संसाधन अगर नीतियुक्त नहीं रहेगा, तो परिणाम अच्छा नहीं आएगा, इसलिए समृद्धि भी तभी फलदायक होगी, जब उसमें संस्कार होगा। परिवार इसी संस्कार को देने वाली संस्था है। प्रगति और समृद्धि की आकांक्षा प्रत्येक व्यक्ति का स्वाभाविक लक्षण है, इसकी पूर्ति हो। अर्थ उपार्जन करना भी प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है, परंतु इस अर्थ उपार्जन में शिक्षा, संस्कार, ज्ञान संवर्धन और असहाय सदस्यों की जिम्मेदारी भी परिवार रूपी संस्था का अप्रतिम कार्य है।
आज परिवार सिकुड़ रहा है, संयुक्त परिवार अब एकाकी परिवार बनता जा रहा है, इसे भी समझना होगा। परिवार का वास्तविक सुख संयुक्त परिवार में है। संयुक्त परिवार प्रथा के गुणों को अगर हम कायम रखते हैं, मेल-जोल और पारस्परिक सामंजस्य बनाए रखते हैं, तो हमें परिवार रूपी संस्था को और विकसित करने का अवसर मिलेगा। पारिवारिक निर्माण का उद्देश्य अपने परिवार के सदस्यों को आत्मिक दृष्टि से प्रगतिशील और भौतिक दृष्टि से समृद्धवान बनाना है। घर के उत्तरदायी विवेकशील लोगों का कर्तव्य है कि वे सभी मिल-जुल कर इस संदर्भ में सभी का सहयोग करें और सृजनात्मक गतिविधियों के आधार पर अच्छे परिवार का निर्माण करें। परिवार में घनिष्ठता व सहकारिता जितनी अधिक होगी, परिवार उतना ही अच्छा होगा। अतिरेक आवश्यकता और उपेक्षा रूपी विष से परिवार टूट जाता है। इसका हमेशा ध्यान रखना होगा कि परिवार में शालीनता के साथ स्नेह और संस्कार का वातावरण बने, संयुक्तप्रगति और समृद्धि का पथ प्रशस्त हो।

सोर्स: अमर उजाला

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