सम्पादकीय

ये काम करने वाले…

Rani Sahu
19 May 2023 11:02 AM GMT
ये काम करने वाले…
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वे कुछ काम करते, लेकिन घुटनों में दर्द है। वे काम करते, लेकिन ठण्ड ज्यादा पड़ रही है-ठण्ड के कारण कहीं जाना-आना नहीं हो पाता। वे कमाते-खाते लेकिन गर्मी की धूप इतनी प्रचण्ड है कि निकलना ही नहीं हो पाता और इस बरसात ने तो कहीं का नहीं छोड़ा। दम ही नहीं ले रही। इस समय हमारे काम सीजन इसलिए इस ऑफ सीजन में क्या काम करें? वे दिल्ली जाकर व्यवसाय का सामान लेकर आते, लेकिन वैवाहिक सावों के कारण रेलों-बसों भीड़ जा रही है। हाथ-पांव टूट जायें तो घर के रहेंगे न घाट के। ये वे जुमले हैं जो नाकारा और फालतू बैठे लोगों ने कामचोरी के बहाने ढूंढ लिये हैं। डिसूजा को तो आप भी जानते होंगे, जो अपनी दुकान में बैठा मक्खी मारता रहता है, परन्तु व्यवसाय के लिए कोई सक्रिय पहल नहीं कर पाता। बात करो तो यही रोना कि ग्राहक ही पता नहीं कहां मर गये, मेरी दुकान पर तो आते ही नहीं। अरे डिसूजा दुकान में कुछ होगा, तब आयेगा न ग्राहक तो। खाली दुकान में आकर तुम्हारी तरह मक्खी थोड़े ही मारनी है। पत्नी स्कूल टीचर है, बस उसी से चल रहा है घर का खर्च। वरना डिसूजा के भरोसे तो आमरण अनशन पर बैठ जाओ। मैंने कई बार कहा भी डिसूजा इस काया को थोड़ा कष्ट दे, वरना काम कैसे चलेगा। थर्ड ग्रेड टीचर पत्नी के भरोसे कैसे होंगे आगे के कामकाज, परन्तु उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती। इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देता है।
अब तो मैंने भी कहना छोड़ दिया है क्योंकि उस पर कोई असर नहीं होता। भूल से कोई ग्राहक आ भी जाये तो उससे इतने रूखेपन से पेश आता है कि ग्राहक दोबारा न आने की कसम खा लेता है। इधर डिसूजा को मक्खी मारना बेहद पसंद है। अब आपको भयानक जी से मिलवाता हूं। जैसा नाम वैसा ही गुण। वे डिजायनर हैं। ग्राहक आयेगा तो घनी मूंछों से वाक्य भी भयानक निकलते हैं। उनकी पत्नी किसी प्राइवेट कम्पनी में कम्प्यूटर ऑपरेटर है। डिजायन बनाने वाला समझायेगा तो वे आंख बन्द कर लेंगे। ग्राहक जब पूछेगा कि वे इसका आशय समझा क्या, तो वे आंख निकालकर कहेंगे कि यह आयडिया उनकी समझ में नहीं आया। इसलिए वे नहीं कर सकते यह काम। जबकि वे पूरे हुनरमंद हैं तथा प्रोफेशनल डिजायनर हंै, लेकिन काम करने के आलस्य ने उनका जीवन चौपट कर रखा है। मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि वे किराया दुकान का कैसे पे करते होंगे। आये हुये काम को धकेल देना उनकी फितरत है। मुझे मिलेंगे तो कहेंगे आज का क्लाइंट बहुत चतुर हो गया है। कला की वैल्यू तो समझता नहीं और कौडिय़ों में काम करना चाहता है। मधुसूदन जी से भी मिल ही लीजिये।
फोटोग्राफी की दुकान करते हैं। पुराने होने से व्यावसायिक सफलता का इतना अहंकार है कि अपने मुकाबले में शहर में दूसरे किसी को फोटोग्राफर नहीं मानते। दुकान पर आने वाले की फोटो उतारने की एवज उसकी इज्जत उतारने में लग जाते हैं। आपसे फोटो खिंचवाना ही नहीं आता। मैं कहता हूं वह करिये। उपदेश देने और अपना सुनहरा काल गिनाने में दो घण्टे बिता देंगे। ग्राहक लौटकर ही नहीं आता। शादी-ब्याह, पार्टियों की फोटोग्राफी करना अपने व्यवसाय की तौहीन समझते हैं। मिलते हैं तो यही कहते हैं यार क्या जमाना आ गया, कला और कलाकार की महत्ता ही नहीं जाते। बीस रुपए में खरीदना चाहते हैं कलाकार की कला। उनकी भी पत्नी एक मॉल में सेल्समैनशिप करती है। कहने का आशय यह है कि अपने काम को निष्ठा से करते नहीं और कमाई न होने के लिए घरों में बहाने मारते हैं। आप अपने आसपास नजर फैलाइये, डिसूजा, भयानक जी और मधुसूदन जी बेतादाद मिल जायेंगे। ये हैं आजकल के काम करने वाले, बदमिजाज, आलसी और कामचोर बहानेबाज!
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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