सम्पादकीय

यह बेहतरी का वर्ष

Rani Sahu
1 Jan 2022 10:15 AM GMT
यह बेहतरी का वर्ष
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आज बहुप्रतीक्षित नववर्ष का स्वागत है

आज बहुप्रतीक्षित नववर्ष का स्वागत है। हां, कुछ वर्ष ऐसे होते हैं, जिनके बारे में लगता है कि जल्दी बीत जाएं, 2021 भी एक ऐसा ही बोझिल वर्ष था। आज धूल, कोहरे और बादल में सूर्य के दर्शन कई जगह दुर्लभ होंगे, कई जगह धूप भले न खिली हो, लेकिन स्याह रात ढलने के बाद जो प्रकाश पसरा है, वह सूर्य के होने का प्रमाण है। इस धूल, कोहरे और बादल में हमारी कितनी नाकामी छिपी है, यह इस वर्ष हमारे विमर्श का पहला विषय होना चाहिए। जलवायु की चिंता के इस महत्वपूर्ण समय में हमें प्रकृति का ऋण भलीभांति चुकाना होगा। हवा, जल, आकाश से हमें जो नि:शुल्क स्नेह और जीवन मिलता है, क्या उसके बारे में कभी हम सोचते हैं? हमने क्या प्रकृति से केवल लेना-छीनना ही सीखा है, हम प्रकृति को देते क्या हैं? प्रकृति का हम पर जो ऋण है, उसे लौटाने का वर्ष आ गया है। हमें तय करना होगा कि हम समस्या का हिस्सा हैं या समाधान के माध्यम। पिछले वर्ष हमने ऑक्सीजन की जिस किल्लत का सामना किया है, उसके स्थायी समाधान के लिए हमें काम करना होगा। पिछले वर्ष पुरानी बीमारियों ने जिस तरह से दर्द दिया है, उसे याद रखते हुए हमें छोटी से छोटी बीमारी को भी गंभीरता से लेना होगा।

यह इंसानों की प्रवृत्ति व प्रकृति को समझने का वर्ष होना चाहिए। हमारे बारे में कोई दूसरा फैसले ले, उससे पहले हमें अपनी बेहतरी के लिए खुद फैसले लेने पड़ेंगे। खुद के लिए क्या बेहतर है और अपनी बेहतरी किसी दूसरे के लिए दुख-दर्द का कारण तो नहीं बन रही है? आज के समय में संसाधनों की कमी से ज्यादा दुख व्यवहार की कमी से मिल रहे हैं। विपदा के समय हमने जो व्यवहार किया था, विपदा के समय हम कैसे किसी के काम आए थे, यह सोचकर हमें नए वर्ष में सुधार की सीढ़ियां चढ़नी चाहिए। नए वर्ष में लोग और देश किसी बुराई नहीं, किसी अच्छाई का अनुकरण करें, तभी हम इंसानियत के पैमाने पर कोई आदर्श सामने रख पाएंगे। आपदा और टीकाकरण के समय हमने देखा है, अमीर देश गरीब देशों को और अमीर लोग अपने जरूरतमंद दोस्तों-रिश्तेदारों को अपने हाल पर छोड़कर एक अलग ही अकेलेपन की ओर बढ़ रहे हैं। उम्मीद कीजिए, इस कमी पर ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान जाएगा।
बड़ी उम्मीद है कि नववर्ष में भारत की चौतरफा चुनौतियों को जवाब मिले। पड़ोसियों को समझ आए, सीमाओं पर सभ्यता और शालीनता लौटे। तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीयों को केवल उपभोक्ता न समझें, अपने सामाजिक दायित्व भी वे ढंग से निभाएं। विधि का कोरा कारोबार नहीं, बल्कि न्याय की सेवा हो, तो शासन-प्रशासन का उदार स्वरूप सामने आए। बीता वर्ष किसान आंदोलन की सफलता के साथ यह संदेश दे गया है कि एकजुटता और आंदोलन की सुनवाई सुनिश्चित है, तो दबे, कुचले, वंचित लोगों, वर्गों को एकजुटता के साथ अपनी बात रखनी चाहिए। जरूरतमंद लोगों के बढ़े हुए उत्साह के साथ हम नए वर्ष में आए हैं, क्योंकि सरकारों ने भी अपने स्तर पर राहत देने की पूरी कोशिश की है। नए वर्ष में भी सुनिश्चित करना होगा कि किसी गरीब को अन्न-धन के अभाव का सामना न करना पड़े। यह बेहतर सामाजिक योजनाओं और उनके क्रियान्वयन का वर्ष होना चाहिए। यह बेहतर काम-धंधे और रोजगार का वर्ष होना चाहिए।

हिन्दुस्तान

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