सम्पादकीय

ये पूरा घटनाक्रम संदिग्ध

Gulabi Jagat
11 Aug 2022 4:26 AM GMT
ये पूरा घटनाक्रम संदिग्ध
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सम्पादकीय न्यूज
By NI Editorial
अनुमान लगाया गया था कि तालिबान की सरकार बनने से अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों के लिए अनुकूल स्थितियां बनेंगी। लेकिन फिलहाल उसका उलटा होते दिख रहा है। इसलिए इस घटनाक्रम को लेकर जिज्ञासा पैदा हुई है।
कुछ रोज पहले खबर आई कि अमेरिका के ड्रोन हमले में अल-कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी मारा गया है। बाद में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इससे जुड़े कई कयास लगाए गए। कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि अल-जवाहिरी को मार गिराने में अमेरिका का सहायक पाकिस्तान बना। इस सिलसिले में उल्लेख किया गया कि कुछ रोज पहले पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिकी विदेश उप मंत्री वेंडी शरमन से बात की थी। इस दौरान उन्होंने आईएमएफ से पाकिस्तान को कर्ज दिलवाने में अमेरिका की मदद मांगी थी। कयास यह लगाया गया कि इस मदद के बदले अमेरिका ने अल-जवाहिरी का पता पूछा। अल-जवाहिरी अफगानिस्तान में जहां छिपा था, वह मकान हक्कानी गुट के नेता का था। ये गुट अब अफगानिस्तान सरकार का हिस्सा है। तो अल-जवाहिरी मारा गया। उसके कुछ ही रोज बाद खबर आई कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का एक बड़ा आतंकवादी अफगानिस्तान में अपने तीन सहयोगियों के साथ मारा गया है।
टीटीपी पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना हुआ है। मारे गए एक आतंकवादी के सिर पर 30 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम था। अब्दुल वली नाम के इस दहशतगर्द को उमर खालिद खोरासानी के नाम से भी जाना जाता था। तो अब यह सवाल उठा है कि आखिर इस घटना में तालिबान और हक्कानी गुट की क्या भूमिका है? क्या तालिबान शासन के तार अब पाकिस्तान के मार्फत अमेरिका से जुड़ रहे हैं? अनुमान लगाया गया था कि तालिबान की सरकार बनने से अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों के लिए अनुकूल स्थितियां बनेंगी। लेकिन फिलहाल उसका उलटा होते दिख रहा है। इसलिए इस घटनाक्रम को लेकर जिज्ञासा पैदा हुई है। खोरासानी की मौत पर पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान सरकार ने भी टिप्पणी करने से इनकार किया है। खोरासानी कभी पाकिस्तान सरकार के साथ किसी भी तरह की बातचीत के खिलाफ था। हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि जब पाकिस्तान ने शांति वार्ता के लिए धार्मिक विद्वानों का एक प्रतिनिधिमंडल काबुल भेजा, तो इस प्रतिनिधिमंडल के साथ चर्चा करने वाले टीटीपी प्रतिनिधिमंडल में खोरासानी को भी शामिल किया गया था। वैसे ये वार्ता अधर में ही थी, जिसमें प्रगति के संकेत ना के बराबर थे।
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