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कृषि क्षेत्र के लिए फीका रहा इस बार का बजट
देवेद्र शर्मा।
यह देखते हुए कि प्रधानमंत्री ने यह वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आय (Farmers Income) दोगुनी हो जाएगी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) से बहुत उम्मीदें थीं कि वे इस बात पर प्रकाश डालेंगी कि किसानों की आय दोगुनी करने के सम्बन्ध में कितना लक्ष्य हासिल किया गया या अभी कितने और समय की आवश्यकता है. यहां तक कि बजट भाषण में 'किसानों की आय दोगुनी' करने के वादे का जिक्र तक नहीं किया गया. ऐसे समय में जब किसानों के विरोध की यादें अभी ताजा ही हैं, यह उम्मीद थी कि ऐसे बजटीय प्रावधान किए जाएंगे जिससे किसानों के हाथों तक और नकदी पहुंचेगी. यह उम्मीद थी कि दोगुना न सही, लेकिन पीएम-किसान (PM Kisan) योजना के तहत वार्षिक हकदारी में मौजूदा 60,000 करोड़ रुपये को बढ़ा कर 80,000 करोड़ रुपये कर दिया जाएगा. वह भी नहीं हुआ.
पीएम-किसान योजना के लिए बजटीय आवंटन में मामूली वृद्धि करते हुए इसे पिछले साल के 60,000 करोड़ रुपये से बढाकर बस 68,000 करोड़ रुपये कर दिया गया. यह देखते हुए कि महामारी के दो वर्षों के दौरान कृषि ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया था. और जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण में भी स्वीकार किया गया था, यह भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे चमकदार सेक्टर बना हुआ था, यह अनुमान लगाया गया था कि किसानों की क्षतिपूर्ति करने के लिए कृषि सेक्टर को एक बूस्टर मिलेगा. इस उम्मीद को भी झुठला दिया गया.
MSP पर खरीद का बजट भी घटाया गया
सरकार ने अभी तक विरोध करने वाले किसानों की मांग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी वैधता के मुद्दे पर गौर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की औपचारिक घोषणा नहीं की है, उल्टा गेहूं और धान की MSP का बजटीय खर्च भी पिछले साल के 2.48 लाख करोड़ रुपये से घटाकर इस साल 2.37 लाख करोड़ रुपये कर दिया. कृषि सेक्टर के लिए बजटीय आवंटन भी लगभग पिछले साल की तरह ही रहा है, जो इस साल केवल 3,000 करोड़ रुपये की वृद्धि के साथ 1.38 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.
कुछ घोषणाएं जैसे कि किसानों के लिए डिजिटल और हाई-टेक सेवाओं का वितरण, फसल मूल्यांकन के लिए 'किसान ड्रोन' का आवेदन, भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, कीटनाशकों और पोषक तत्वों का छिड़काव, स्टार्टअप के लिए इंफ्रा फंड स्थापित करना और एफपीओ की स्थापना के लिए जरूरी फाइनेंस की जिम्मेदारी नाबार्ड पर छोड़ने के अलावा यह बजट कृषि और किसानों के लिए बेहद निराशाजनक रहा. जहां इनके लिए (और कुछ अन्य योजनाओं के लिए) व्यय अपेक्षाकृत छोटा रखा गया, इसके साथ सरकार ने आने वाले वर्षों में कृषि की नींव मजबूत करने के लिए बेहतरीन प्रौद्योगिकी मुहैया कराने का आश्वासन भर दे दिया.
पाम वृक्षारोपण पर्यावरण की दृष्टि से अवांछनीय
इसके अलावा वित्त मंत्री ने गंगा नदी के दोनों किनारों पर जैविक खेती से शुरुआत कर गैर-रासायनिक खेती को प्रोत्साहित करने के सरकार के वादे को दोहराया, लेकिन एक स्थायी परिवर्तन लाने के लिए पर्याप्त पैकेज की घोषणा करने में विफल रहीं. यह देखते हुए कि आंध्र प्रदेश में अनुसरण करने के लिए एक उदाहरण मौजूद है, जहां सामुदायिक प्रबंधित सतत खेती (CMSF) कार्यक्रम के तहत कृषि विस्तार सेवाओं में उचित बदलाव और वैकल्पिक रूप से अनुसंधान और विकास के साथ तकनीक के प्रयोग से रासायनिक से गैर-रासायनिक खेती मुमकिन हो गया है.
निर्मला सीतारमण ने तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक योजना की घोषणा की, जिसके लिए 1,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. हालांकि सरकार ने पहले ही अंडमान और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में ताड़ के बागानों को बढ़ावा देने के लिए एक योजना की घोषणा की थी ताकि खाद्य तेलों की घरेलू आपूर्ति को बढ़ाया जा सके. तिलहन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने पर जोर महत्वपूर्ण है. वास्तव में, देश में उपलब्ध पारंपरिक और स्वस्थ खाद्य तेलों के व्यापक स्पेक्ट्रम को देखते हुए, तिलहन को पाम ऑयल वृक्षारोपण क्षेत्र के विस्तार की तुलना में अधिक महत्व मिलना चाहिए. पाम ऑयल वृक्षारोपण पर्यावरण की दृष्टि से अवांछनीय हैं और यह मलेशिया और इंडोनेशिया में साबित भी हुआ है.
…लेकिन उम्मीद कायम
लेकिन मुझे अब भी उम्मीद है कि किसान की आय दोगुनी करने और एमएसपी पर विशेषज्ञ समिति गठित करने के वादों को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जाएगा. आखिरकार, ग्रामीण भारत भयानक कृषि संकट के दौर से गुजर रहा है और एक उचित और गारंटीकृत मूल्य से इनकार ने इस संकट को न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में बढ़ा दिया है.
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(लेखक भारतीय कृषि के विशेषज्ञ हैं और एक प्रतिष्ठित खाद्य और व्यापार नीति विश्लेषक हैं)
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