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इसी हफ्ते एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक पत्रकार से कहते हुए नजर आते हैं
संयम श्रीवास्तव। इसी हफ्ते एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एक पत्रकार से कहते हुए नजर आते हैं कि मुझे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के नहीं आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के आम ज्यादा पसंद हैं. उनके इस बयान को बीजेपी (BJP) ने लपक लिया. पहले गोरखपुर के बीजेपी सांसद रवि किशन (BJP MP Ravi Kishan) ने मजे लिए फिर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने भी ट्वीट करके राहुल को निशाने पर ले लिया. दरअसल सार्वजनिक जीवन जीने वालों को तलवार की धार पर चलना होता है. थोड़ी सी गलती होते ही उसे मुद्दा बना दिया जाता है. पर राहुल गांधी इस तरह की गलती बार-बार कर रहे हैं, जो उन्हें उत्तर भारत की राजनीति में हमेशा के लिए अलग-थलग कर देगा.
उत्तर भारत को कमतर आंकने वाले उनके बयान करीब 3 बार आ चुके हैं. हर बार बीजेपी ने उनको निशाने पर लिया है पर उनको कोई फर्क नहीं पड़ता. जब एक गलती कोई बार-बार करता है तो यह मान लिया यह उसके अंतकरण में चली गई है. कहीं यह राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव हारने का इफेक्ट तो नहीं है? लगता है कि राहुल गांधी के दिल में उत्तर भारत के प्रति बहुत क्लेश पैदा हो गया है, जो बार-बार किसी न किसी रूप में निकलता रहता है.
दक्षिण के लोग मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं, न केवल सतही रूप से बल्कि गहराई से
कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने यह बयान देकर बीजेपी को निशाना बनाने का मौका दे दिया था. जब देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हों तो इस तरह का बयान किसी राष्ट्रीय पार्टी के सबसे बड़े नेता द्वारा देना कभी अच्छा नहीं माना जा सकता. और हुआ भी ऐसा ही. राहुल गांधी के बयान का मतलब निकाला गया कि दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत के लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर राजनीतिक समझ रखते हैं. राहुल गांधी का यह बयान उत्तर भारत में कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता था क्योंकि यह कहीं ना कहीं उत्तर भारतीयों का अपमान करने जैसी बात थी. राहुल गांधी के इस बयान को बीजेपी ने हाथों-हाथ लिया और उन पर लगातार हमले किए. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो इसे अपना मुख्य हथियार ही बना लिया था. कांग्रेस का 5 राज्यों की विधानसभा चुनावों में सफाया होने का कारण भले ही यह स्टेटमेंट न रहा हो पर इस तरह के कई कारण मिलकर जरूर हार का कारण बनते हैं.
दक्षिण में महिलाओं के साथ उत्तर के मुकाबले ज्यादा अच्छा व्यवहार होता है
राहुल गांधी ने महिलाओं के साथ अच्छे व्यवहार में भी उत्तर भारत को पीछे बताया था. दरअसल जब चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज फॉर वूमेन की छात्रा ने राहुल गांधी से भारत में महिलाओं की स्थिति पर सवाल किया और उनके साथ होने वाले भेदभाव पर उनकी राय जानी चाही तो उसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि मेरा मानना है कि भारतीय महिलाओं के साथ जिस तरह का व्यवहार किया जाता है उसमें सुधार की जरूरत है. हालांकि अपने आगे के बयान में उन्होंने दक्षिण भारत और उत्तर भारत में तुलना करते हुए कहा कि दक्षिण भारत में उत्तर भारत के मुकाबले महिलाओं के साथ ज्यादा अच्छे से व्यवहार किया जाता है और यहां महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर है. उन्होंने कहा अगर आप बिहार या उत्तर प्रदेश जाएंगे तो वहां की महिलाओं के साथ जैसा व्यवहार होता है उसे देखकर आप हैरान रह जाएंगे. राहुल गांधी का मानना है कि इसके पीछे कई सांस्कृतिक कारण हैं. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल है जहां महिलाओं के साथ बेहतर व्यवहार किया जाता है.
दक्षिण की तरफ राहुल गांधी का झुकाव ज्यादा क्यों है
राहुल गांधी का दक्षिण की तरफ झुकाव होना जायज है, क्योंकि उत्तर भारत से उन्हें हार के अलावा कुछ नहीं मिला. पिछले तीन बार से जिस लोकसभा क्षेत्र अमेठी का प्रतिनिधित्व राहुल गांधी कर रहे थे, जिसे उनकी पुश्तैनी विरासत मानी जाती थी वह सीट 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को हारनी पड़ गई. जबकि वहीं केरल के वायनाड के मतदाताओं ने उन्हें जीत दिलाकर उनकी इज्जत बचा ली. राहुल गांधी पहले से जानते थे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका अमेठी से अपनी सीट बचाना मुश्किल हो जाएगा, यही वजह थी कि उन्होंने अमेठी के साथ-साथ केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा था. अमेठी से तो वह हार गए लेकिन वायनाड की वजह से उन्हें आज भी संसद में बैठने का मौका मिल गया है.
दक्षिण ने पहली बार गांधी परिवार की इज्जत नहीं बचाई है, इसके पहले 1977 में भी दक्षिण ने गांधी परिवार की इज्जत बचाई है. जब कांग्रेस और इंदिरा गांधी के खिलाफ पूरे उत्तर भारत में विरोध की बयार बह रही थी तब अपनी इज्जत बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने दक्षिण के ही एक संसदीय क्षेत्र चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था और जीती थीं. जबकि अपनी पारंपरिक सीट रायबरेली से उन्हें उसी वर्ष हार का मुंह देखना पड़ा था. इंदिरा गांधी को पता था कि इस बार रायबरेली से वह चुनाव हार सकती हैं इसलिए उन्होंने 77 के चुनाव में चिकमंगलूर से भी पर्चा दाखिल कर दिया था.
केवल 1977 के लोकसभा चुनाव में ही नहीं, बल्कि 1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में भी दक्षिण ने कांग्रेस का खूब साथ दिया. इन लोकसभा चुनावों में जब उत्तर भारत में कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया गया, तब दक्षिण भारत ही था जिसने कांग्रेस की लाज बचाए रखी थी.
अब कांग्रेस को दक्षिण भारत से ही उम्मीद है
उत्तर भारत में कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर हो गई है. यूपी-बिहार जैसे राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों और भारतीय जनता पार्टी के वर्चस्व ने कांग्रेस को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. यही वजह है कि अब कांग्रेस पार्टी दक्षिण भारत में अपना भविष्य तलाश रही है. राहुल गांधी भी उत्तर से ज्यादा दक्षिण पर ध्यान देते हैं, उन्हें लगता है कि फिलहाल कांग्रेस के लिए दक्षिण में ही अपना किला मजबूत करना बेहतर होगा. हालांकि दक्षिण भारत में भी क्षेत्रीय पार्टियां हैं जिनसे कांग्रेस को मुकाबला करना पड़ेगा और अब धीरे-धीरे बीजेपी भी दक्षिण की ओर अपने पांव पसार रही है.
Rani Sahu
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